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सामाजिक न्याय सामाजिक परिवर्तन से सम्भव- कांशी राम ज़ी

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आज बात मान्यवर कांशीराम साहब के आत्मविश्वास की, साहब ( कांशीराम ) में आत्मविश्वास कूट कूट कर भरा था । यह साहब का आत्मविश्वास ही था जोकि भारत में  बहुजनों के इतने बड़े आंदोलन को खड़ा कर गया । मेरे एक उदाहरण से बात बिल्कुल ही साफ हो जाएगी । बात आज से 35 साल पुरानी है । उत्तर प्रदेश के आम चुनाव का मौका था । मैं साहब को इटावा चुनाव प्रचार हेतु फरुखाबाद से लेने के लिए गया हुआ था । सुबह तड़के ही फरुखाबाद पहुंच गया था । मैं साहब के साथ साथ उस दिन फरुखाबाद में चुनाव प्रचार हेतु घूमा भी था । जनाब श्री  सादिक नवाज़ जी  ( पूर्व RPI लीडर ), जिनके बेटे चुनाव लड़ रहे थे शायद , वह भी हमारे साथ में थे । कुल मिलाकर साहब के साथ हम चार या पांच लोग मात्र ही थे । जहाँ भी प्रचार हेतु जाते वहाँ भी बामुश्किल चार पाँच लोग ही जुट पाते थे । मुझे बड़ी ही शर्मिदगी महसूस हो रही थी यह सब देखकर वहीँ साहब का चेहरा आत्मविश्वास से लबरेज़ था । साहब के चेहरे पर कोई शिकन रंच मात्र भी नहीं थी । संलग्न फोटो भी उसी समय 10 फरवरी 1985 की ही है , जोकि मेरे द्वारा तब खींचीं गई थी । फोटो में जितने लोग फ्रेम में दिखाई दे रहे हैं ,

किसान आंदोलन - झूठ पर सच्चाई की जीत

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दिनांक 11/01/2021 को  सुप्रीम कोर्ट ने  चार सदस्य की  कमेटी  बनाकर आंदोलन को  विफल करने का अप्रत्यक्ष षडयंत्र रचाया है।  चारो सदस्य पहले से  ही अखबार लेख के  माध्यम से एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से तीनों किसान विरोधी कानून के  पक्ष मे  अपनी  राय  जाहिर  कर  चुके  हैं। किसानों की  मांग है कि सरकार ने कानून बनाए हैं तो सरकार ही  इनको  वापिस ले  मगर सरकार किसानों को थका कर परेशान करके आंदोलन खतम करने की कोशिश कर रही है। किसान भारी ठंड में खुले आसमान के  नीचे रात  बिताने पर मजबूर है ।वर्तमान बीजेपी  सरकार अपने ही नागरिकों, अपने ही समर्थक वोटर को विवश कर रही  है  ! भारत के  इतिहास मे  ये  आंदोलन सुनहरे अक्षरों मे  लिखा जाएगा जिसको  कामयाब करने के लिए अब तक साठ से ज्यादा किसान अपनी जान गंवा चुके है और शहीदी को  प्राप्त हो चुके  हैं ।सरकार गरीबों की  नहीं कुछ पूंजीपतियों साहुकारों की सोच को भारत के आम जनमानस पर थोपने का काम कर  रही है। आम गरीब किसान मजदूर का विश्वास वर्तमान बीजेपी की सरकार ने  खो दिया है। अविश्वास की स्थिति एक ही दिन में पैदा नहीं हुई इसको पैदा होने में  लगभग सात साल लगे हैं । स

बहन कुमारी मायावती सामाजिक परिवर्तन की आदर्श मिसाल

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 #मायावती_जी के जीवन संघर्ष पर जवाहर लाल नेहरू(JNU) विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग के प्रमुख #प्रो.#विवेक_कुमार ने अपने एक लेख में लिखा था, यह विडंबना है कि लोग आज मायावती के गहने देखते हैं, उनका लंबा संघर्ष और एक-एक कार्यकर्ता तक जाने की मेहनत नहीं देखते. वे यह जानना ही नहीं चाहते कि संगठन खड़ा करने के लिए मायावती कितना पैदल चलीं, कितने दिन-रात उन्होंने दलित बस्तियों में काटे. मीडिया और कुछ मायावती विरोधी लोग इस तथ्य से आंखें मूंदे है. सजातिय और मजहब की बेड़ियां तोड़ते हुए मायावती ने अपनी पकड़ समाज के हर वर्ग में बनाई है. वह उत्तर प्रदेश की पहली ऐसी नेता हैं, जिन्होंने नौकरशाहों को बताया कि वे मालिक नहीं, जनसेवक हैं । सर्वजन का नारा देकर उन्होंने बहुजन के मन में अपना पहला दलित प्रधानमंत्री देखने की इच्छा बढ़ा दी है. दलित आंदोलन और समाज अब मायावती में अपना चेहरा देख रहा है. भारतीय लोकतंत्र को समाज की सबसे पिछली कतार से निकली एक सामान्य महिला की उपलब्धियों पर गर्व होना चाहिए.’ आगामी चुनाव में हम BSP को ही क्यों चुनें ? इसके लिए हजार कारण हो सकते है उसमें से कुछ नीचे दिए गए है  बीएसपी क

बहुजन समाज पार्टी को आर्थिक सहयोग भारत हितैषी

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हमारा प्यारा देश भारत सदियों परतंत्र रहा उसके पीछे एक ही कारण कुछ मुट्ठी भर लोग वयपार करने के बहाने धीरे धीरे कब भारतीयों को ग़ुलाम बना गये मूलभारतीयों को आभास तक ना हुआ ।आज़ादी हासिल करना  जितना मुश्किल है उतना ही मुश्किल लोकतंत्र को अर्थात आज़ादी को बनाए रखना है एक तथ्य के साथ इसको समझने का प्रयास करते हैं !  अमेरीका भी लोकतांत्रिक और संसार में एक शक्तिशाली राष्ट्र है। वर्तमान में अमेरिका में डोनलड टर्म एक बड़ा पेशेवर वयपारी राष्ट्रपति के पद पर है। वंहा का एलेक्ट्रोनिक मीडिया पक्षपाती है मीडिया दो राजनीतिक पार्टियों में बँटा हुआ है कुछ एलेक्ट्रोनिक मीडिया डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ है और कुछ मीडिया रेपब्लिकन पार्टी के साथ है इसलिए अमेरिकन को अपने राष्ट्र हित को समझने में आसानी होती है ।  बसपा अमीरों से नहीं ग़रीबों से लेती है आर्थिक सहयोग : The Newyork Times and Washington post दो मुख्य समाचार पत्र हैं जिनका 80 प्रतिशत तक धन आम जनता के subscription (अंशदान) से आता है और ये अख़बार सही सूचना तथ्य के साथ जो अमेरिकन के हितकारी है अपने समाचार पत्र के माध्यम से लोगों तक भेजते हैं ।अख़बार ना

2022 का चुनाव लोकतन्त्र की जीत या तानाशाह ? आखिरी मौका

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dictatorship जब जब भारत देश में ग़रीबी भुखमरी  और शोषण होता है कोई ना कोई महापुरुष बन कर व्यवस्था परिवर्तन की जंग में कूद पड़ता है ! ऐसे बहुत से महारथी और योद्धा हैं जिन्होंने  हमेशा अखंड भारत के मिशन को ज़िंदा रखा है लेकिन अब लड़ाई निर्णायक दौर में पंहुच गई है । घर पर नही युद्ध क्षेत्र में लड़ना सैनिक की असली परीक्षा है निर्णायक इसलिए भी है अगर 2022 मे विरोधियों के रथ को नही रोका तो 2024 के चुनाव के बाद वोट के अधिकार को ख़त्म कर दिया जाएगा ! ये अधिकार ख़त्म होते ही सभी निसहाय हो जाएँगे और आरएसएस के मनुवादी लोग युद्ध जीत जाएँगे ,जिनका समानता में विश्वास नही है । इस बात को पाठकों,नागरिकों और मतदाताओं को गहराई से विचार करने का समय आ गया है  । “ना रहेगा बाँस ना बजेगी बांसुरी “ ये वक्त रूठों का मनाने का और सोये हुओं का जगाने का है ! अब कोई, ज्योति राव फूले जी, दीनबंधु छोटू राम जी ,बाबा साहेब dr अम्बेडकर जी, सरदार पटेल जी, ललई सिंह यादव चौधरी देवी लाल जी  मान्यवर कांशीराम जी नही आएँगे । आप उन महारथियों की संतान है जिन्होंने युद्ध जीतें हैं जश्न मनाए है फिर आप कैसे मायूश हो सकते हैं ? उठ लड़

धार्मिक गुरु का चुनाव करते वक़्त कुछ बातों का रखे ध्यान

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spirtual quotes यंहा गुरु का मतलब धार्मिक  है इसका मतलब स्कूल की शिक्षा से नहीं है स्कूल में अध्यपक हैं जो अध्ययन करवाते है और छात्र के दिमाग को जीवन में आगे बढ़ने के लिए तैयार करते हैं जैसे एक किसान फसल तैयार होने से पहले अच्छी तरह खेत को तैयार करता है और अच्छी फसल के सपने के साथ बीज रोपण करता है मगर बेमौसम बारिस , प्राकर्तिक आपदा और अन्य बहुत सी दुर्घटनाए होती है जिसकी  वजह से किसान अपने आपको निसहाय महसूस करता है ऐसे ही जीवन में कुछ लोग गरीब शोषित भोले भाले लोगों का परमात्मा अल्लाह गॉड के नाम पर  पंथ बनाकर शोषण करते है ! अध्यात्म व्यक्तिगत विषय है इसलिए किसी भी  विश्विद्यालय में नहीं पढ़ाया जा सकता !   गुरु का होना जरूर होता है ? चेतन पुरुष के लिए गुरु का होना कोई जरूरी नहीं है क्योंकि उसका गुरु खुद का ज्ञान होता है । इसलिए संत कहते हैं कि कौन गुरु कौन चेला रे साधौ, कौन गुरु कौन चेला।।  शब्द गुरु चित् चेला रे साधौ,  शब्द गुरु चित् चेला।। जब इंसान प्रज्ञा की ऊंचाइयों को छूता है तो वह स्वयं का गुरु हो जाता है उसको गुरु की जरूरत नहीं होती है मगर मनुवादी क

संत शिरोमणि गुरू रविदास जी महाराज - एक क्रांतिकारी भिक्षु

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guru ravidas bani  1. वैखरी 2 . मध्यमा 3. पशयन्ति 4. परा संतो  की चार प्रकार की बाणी होती है। परा, पश्यन्ती ,मघ्यमा और वैखरी। वैखरी बाणी जिनमें आम बातें बताई जाती है उन्हें आप चेतावनी भी कह सकते हैं ।इसमे शब्द न होकर अक्षर होते हैं।और जब शब्द ,अक्षर में बदलते है तो इन्द्रियों का प्रसार बढ़ जाता है। इसकी अवस्था जाग्रत होती है मगर ज्ञान बगैर यह बाणी और अवस्था दोनो भरम में रहती हैं। मध्यमा बानी के शब्द कंठ तक होते है अवस्था स्वपन सी होती हैं। मिथ्या स्वपन आते हैं। दुख और दुख को ज्यादा मानने  व करुणा प्रज्ञा न होने से भरम स्थिति होने की वजह ज्ञान रहित बाणी है। पश्यंती बाणी में शब्द ह्रदय तक पहुचते है और इसकी अवस्था सुखोपति होती है। मनुष्य गलत, ठीक का आंकलन कर सकता है। वह शीलवान और चेतन मानव हो जाता है मगर पूर्ण मुक्त नही हो सकता। परा की बाणी शब्द ही रहतीं हैं अक्षर नही बनती तथा नाद प्रकट करती है। भरम और तृष्णा को खत्म करती है। इसमें चेतन चिंतन की अवस्था होती है जिसे तुरिया कहते हैं  पर हमें आने के बाद तुरिया अवस्था में जिव से हंस हो जाता है विवेकशील होकर के पारख बन जात

हिन्दू धर्म और बौद्ध धम्म में क्या अंतर है?

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gautam buddha  हिन्दू धर्म और बौद्ध धम्म में क्या अंतर है? परिभाषा हिन्दू धर्म में धर्म की परिभाषा दी गई है कि धर्म वह है जिसे धारण किया जा सके। जैसे अच्छाई, बुराई, जनेऊ, भगवा, माला, अंगूठी आदि। जबकि बौद्ध धर्म कहता है कि धर्म एक स्वभाव है। जैसे पानी का धर्म है बहना, बर्फ का धर्म है शीतलता, वायु का धर्म प्राण है, अग्नि का धर्म जलाना आदि। बनावटी ईश्वर 2) हिन्दू धर्म मे ईश्वर की संकल्पना की गई है। वही बौद्ध धर्म ने ईश्वर की सत्ता को नकारा है। वह कहता है कि यदि ईश्वर है तो उसे किसने बनाया? साथ ही ईश्वर को प्रमाणित भी नही किया जा सकता। यदि कोई मर रहा है या कष्ट मे है तो ईश्वर को बुलाओ, वह कँहा है। गतिशीलता 3) हिन्दू धर्म जगत को मिथ्या मानता है। वही बुद्ध कहते है कि जो चीज तुम्हारे सामने है वह मिथ्या कैसे हो सकती है। पहाड़ है, नदियां हैं, झरने हैं, यह सब मिथ्या कैसे? कारण सिद्धांत 4) अब यह प्रश्न उठता है कि यह सब किसने बनाया? बुद्ध कहते है कि यह सब स्वमेव है, हो रहा है। इसके पीछे कारण सिद्धांत है। यदि कोई भुखमरी से मर रहा है तो उसे खाना दे दो, बच जा

अभिवयक्ति महापुरुषों का सम्मान

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धर्म  हजार हो सकते हैं,  धम प्राकर्तिक  एक ही होता है ! धर्म बीमारी है प्रकर्ति स्वास्थ्य है ! धम/प्रकर्ति  तो एक ही होता है जैसे  सूर्य सबको ताप देता है प्रकृति सबको एक समान आक्सीजन हवा पानी पेड़ पौधे सब कुछ देती है धम ही अच्छा जीवन जीने का मार्ग मानव जगत के महान वैज्ञानिकों महापुरुषों ने मानवता को खोज करके दिया  है !  धर्म  कुछ षड्यंत्रकारी इंसानो  द्वारा निर्मित एक चाबुक है जो कमजोर वंचित असहाय अनपढ़  लोगों पर लगातार प्रहार करता रहता है  आश्चर्य की बात है कि साधारण धार्मिक आदमी हिन्दू मुसलमान होता है , सो ठीक, सन्यासी भी हिन्दू मुसलमान ईसाई और जैन होता है ! कम से कम सन्यासी तो सिर्फ मार्गदाता हो ! वह भी संभव नहीं हो पाया है ! धम पैदा हुआ, कुछ थोड़े से व्यक्तियों के जीवन में उसकी अनुभूति गहरी थी ! लेकिन आम जन के जीवन में वह तब तक नहीं पंहुच सकता था जब तक कि विज्ञानं ठीक भूमि साफ़ ना कर दे ! अब विज्ञानं ने भूमि ठीक से साफ़ कर दी है ! और अब धम  अवैज्ञानिक ढंग से स्वीकृत नहीं हो सकता इसलिए बड़ी कठिनाई पैदा हो रही है ! जो लोग अंधविश्वासों को पकडे हुए हैं, वे सोचते

आत्मविश्वास हासिल करने का सबसे अच्छा तरीका है ,आप वह करें ,जो आप करने से डरते हैं

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भूमिका  आत्मविश्वास का टूटना एक मानिसक रोग है!आत्मविश्वास मानव की उन्नति में सबसे सार्थक अंग है खुद से लगाव जो रखता है उसमे कुछ विशेष  गुण विध्यमान होते हैं और विश्वास अन्य लोगों से कईं  गुणा ज्यादा  होता है ! विश्वास  और आत्मविश्वास दोनों एक दूसरे के पूरक हैं दोनों अपने ढंग  से प्रयोग किये जाते हैं विश्वास  बाहरी आवरण है जो बाहरी वयवस्था एवंम  सौन्दर्यकरण पर ज्यादा जोर देता है ! आंतरिक मजबूती व् सौन्दर्यकरण को आत्मविश्वास अपने अधीन रखकर पुरे जीवन को आनंदमय बना देता है !और मानव  बाहरी चीजों को  ज्यादा व्यवस्थित करने में अपना आंतरिक आत्मविश्वास को कमजोर कर लेता है  जिसका अहसास नहीं होता ! जब वो विशवास हमारी आंतरिक शक्तियों को कमजोर करने लगे औऱ  विशेष गुण अपने ही विशवास से खतरा महसूस करे  उसको ही  हम आत्मविश्वास का टूटना कहते हैं ! आत्मविश्वास को दोबारा हासिल करने के कुछ निरंतर तरीके अपनी दिनचर्या में अपनाकर दोबारा हासिल किया जा सकता है जैसे : आलस का त्याग  जब आत्मविश्वास कमजोर होता है तो पुरे शरीर से ऊर्जा शक्ति गायब हो जाती है और आलस चारो तरफ से घेर लेता है !अकर्मण्यता कुछ भ