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अम्बेडकर गांव: विकास की नयी सुबह का आगाज- बहन जी

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chief minsiter Km Maywati ji  सितंबर 1996  मे उत्तर प्रदेश की 13 वी विधानसभा के लिए हुए चुनाव मे जनता ने किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया  ! बीजेपी को  174 सीटें मिली थी तथा समाजवादी पार्टी  को  110 सीटें! यह चुनाव बसपा ने काँग्रेस पार्टी के साथ मिलकर लड़ा था हम दोनों को क्रमश: 67 और 33 सीटें  मिली थी! तब मई 1996 के लोकसभा चुनाव के बाद केन्द्र मे काँग्रेस की मदद से संयुक्त मोर्चा की सरकार चल रही थी, जिसमें श्री मुलायम सिंह यादव प्रतिरक्षा मंत्री बने हुए थे  !  काँग्रेस पार्टी को मगर इतनी अक्ल नहीं आयी की केन्द्र मे संयुक्त मोर्चा की सरकार को समर्थन देने के एवज मे उत्तर प्रदेश मे सरकार के गठन हेतु सहयोग मांगे और सहयोग न मिलने पर केंद्रीय सरकार से काँग्रेस द्वारा समर्थन वापिस लेने की कारवाई करे !  इस प्रकार उत्तर प्रदेश मे चुनाव के बाद भी त्रिशंकु सदन के कारण राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया  ! लेकिन सभी राजनीतिक पार्टियों को आने वाले समय मे यह एहसास हुआ कि उत्तर प्रदेश मे वास्तव मे राष्ट्रपति शासन न  होकर श्री मुलायम सिंह यादव की पर्दे के पीछे से हुकूमत चल रही है! फिर राजनीतिक हलचल

सामाजिक क्रांति के पितामह- ज्योति राव फूले जी

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ज्योतिबा फुले जी का जीवन परिचय:- जोतिराव गोविंदराव फुले का जन्‍म 11 अप्रैल 1827 को पुणे में महाराष्‍ट्र की एक  माली जाति में हुआ था। ज्योतिबा के पिता का नाम गोविन्‍द राव तथा माता का नाम विमला बाई था । एक साल की उम्र में ही ज्योतिबा फुले की माता का देहान्‍त हो गया । पिता गोविन्‍द राव जी ने आगे चल कर सुगणा बाई नामक विधवा जिसे वे अपनी मुंह बोली बहिन मानते थे उन्‍हें बच्‍चों की देख-भाल के लिए रख लिया । ज्योतिबा को पढ़ाने की ललक से पिता ने उन्‍हें पाठशाला में भेजा था मगर स्‍वर्णों ने उन्‍हें स्‍कूल से वापिस बुलाने पर मजबूर कर दिया । अब ज्योतिबा अपने पिता के साथ माली का कार्य करने लगे । काम के बाद वे आस-पड़ोस के लोगों से देश-दुनिया की बातें करते और किताबें पढ़ते थे । उन्‍होंने मराठी शिक्षा सन् 1831 से 1838 तक प्राप्‍त की । सन् 1840 में तेरह साल की छोटी सी उम्र में ही ज्योतिबा का विवाह नौ वर्षीय सावित्री बाई (1831-1897) से हुआ । आगे ज्योतिबा का नाम स्‍काटिश मिशन नाम के स्‍कूल (1841-1847) में लिखा दिया गया । जहाँ पर उन्‍होंने थामसपेन की किताब 'राइट्स ऑफ मेन' एवं 'दी एज ऑफ रीजन'

अछूत राज बिछुड़े दुख पाइया, सो गति भई हमारी - गुरु रविदास जी महाराज

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नरपति एक सिंहासन सोया,  सुपने भया भिखारी। अछूत राज बिछुड़े दुख पाइया,  सो गति भई हमारी ।।  उपरोक्त दोहे में सतगुरु, संत ,महानायक रविदास जी एक उदाहरण के साथ बड़ा संदेश दे रहे हैं तथा दुखों को समूल खत्म करने का तरीका बता रहे हैं । इस दोहे में सतगुरु जी देश के बहुजनों के दुखों का कारण बता रहे हैं ,जैसा कि बुद्ध ने बताया था कि दुनिया में दुख है ,दुख का कारण है ,कारण को जानकर दुखों का निवारण किया जा सकता है ,बगैर कारण जाने किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता । अतः सतगुरु रविदास जी बहुजनों के दुखों का कारण और निवारण बता रहे हैं ।  सतगुरु रविदास महाराज जी कहते हैं कि एक राजा सिंहासन पर सोया हुआ था वैसे सिंहासन सोने के लिए जगह नहीं होता। मगर वह राजा था।  राज सिंहासन पर बैठा था और नींद आ गई। नींद में सपना आया कि उसका राज पाट दुश्मन ने छीन लिया है और वह दर बदर की ठोकरें खाता फिर रहा है और भिखारी का जीवन जी रहा है।  वह जोर-जोर से रो करके हड़बड़ा कर के उठ गया । सभी सभासदों ने रोने का कारण पूछा तो राजा और जोर जोर से रोने लगा और बोला कि मेरे सपने में मेरा राज पाठ किसी ने मुझसे छीन लिया। मैं भिखारी

ऐसा चाहू राज मैं,जहां मिले सबन को अन्न।

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Guru Ravidas ji  ऐसा चाहू राज मैं,जहां मिले सबन को अन्न। छोट-बड़ सब सम बसै,रविदास रहे प्रसन्न।।  व्याख्या संतो के ज्ञान को खाली दार्शनिकता तक ही सीमित रखना ग़लत है । यह समाज के बड़े चिंतक और मार्ग दाता भी थे। संतजन राज पाट की कामना भी करते थे । कहते थे कि आप का अपना  राज होना चाहिए , ताकि अपने प्राचीन धम्म को सलामत रखा जा सके।  सभी वर्गों के लोगों को , बगैर भेदभाव से,  समान अधिकार हासिल हो । उनको सलामत रखने के लिए राजसत्ता का होना निहायत जरूरी है । इसलिए सतगुरु रविदास साहब राज प्राप्ति की कामना करते हैं और साथ में एक शर्त रखते हैं कि उस राज के अंदर की प्रजा के सब लोगों को खाने को भोजन उपलब्ध हो । कोई छोटा - बड़ा नहीं होना चाहिए। सभी समानता के आधार पर बसेरा करें । सतगुरु रविदास साहब कहते हैं उसी में मेरी प्रसन्ता है ।  इस दो लाइन के इस दोहे के अंदर सतगुरु रविदास जी भारतीय संविधान की उद्देशिका के न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता का समर्थन करते है।  मैं हूं अमर, कबूह नहीं मरता ,खड़ग विज्ञान चलाउ रे साधो,  सामर्थ साहिब कहलाउ।।  बिरमा, बिसनु का शीश काट मैं, शिव को मार भगाऊँ। आदि शक्ति को पै

संत पलटु दास जी- अपना दीपक स्वयं बनो

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तुझे पराई क्या परी, अपनी ओर निबेर। अपनी और निबेर, छोडि गुड़ बिष को खाए ।। कुवां में तो तू परै, और को राह दिखावै। औरन को उजियार,  मसालची जाए अंधेरे ।। तयों ज्ञानी की बात, मया में रहते घेरे। बेचत फिरे कपूर, आप को खारी खावै।। घर में लागी आग, दौरि के धूर बुतावै। पलटू यह सांची कहे , अपने मन का फेर।। तुझे पराई क्या परी, अपनी ओर निबेर।।  संत गुरु पलटू दास जी कहते हैं कि तुम्हें दूसरों की समस्याओं से क्या लेना । पहले अपनी समस्या का समाधान तो कर ले। पहले अपनी बात सुलझा ले , जिन बातों में तू खुद उलझा हुआ है । जो तू गुड़ (अच्छी बातों ) को छोड़कर विष (बुरी बातें ) खा रहा है।  खुद तो कुए की गर्त में पड़ा है औरों को रास्ता दिखा रहा है।  भला कुए में गिरा हुआ व्यक्ति दूसरों को कैसे राह बता सकता है।  जैसे मसालची दुनिया को उजाला दिखाता है मगर खुद अंधेरे में रहता है,  ठीक ऐसे ही तथाकथित ज्ञानी खुद तो माया यानी मनुवाद के जाल में फंसे रहते हैं और औरों को मुक्ति का मार्ग बताते हैं।  जैसे कपूर बेचने वाले को पता नहीं है की कपूर कितना गुणकारी होता है वह कपूर बेच कर नमक खरीद कर खा रहा है। घर की आग को बुझाने के लि

हमारा संघर्ष किसी जाति या वर्ग से नहीं,व्यवस्था के विरुद्ध है - बसपा

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बहुजन समाज डबल गुलाम है  बहुजन समाज पार्टी का संघर्ष किसी जाति,धर्म या वर्ग के विरोध में नहीं बल्कि मनुवादी व्यवस्था अर्थात ऊँच-नीच असमानता के विरोध में हैं! जातिगत भेदभाव खतम किये बिना भारत स्वस्थ्य लोकतांत्रिक देश नहीं बन सकता क्योंकि सामाजिक लोकतन्त्र के बिना राजनीतिक लोकतन्त्र सफल होना नामुमकिन है! भारतीय समाज में  आर्थिक असमानता का सबसे बड़ा कारण  भारतीय समाज मे सामाजिक लोकतन्त्र का  नहीं  होना है  ! अंग्रेजों के भारत छोड़ने से पूर्व बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर ने उनको चेताया कि आप दलितों पिछड़ों का हक दिलवाकर जाएं! इस देश का मूलनिवासी अर्थात बहुजन समाज डबल गुलाम है! सवर्णों का गुलाम  और सवर्ण अंग्रेजों के गुलाम !  baba saheb& kanshiram  बाबासाहेब का दूसरा नाम कांशीराम  बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर को अंतिम दिनों में यह चिंता थी कि मेरे पश्चात इस बहुजन समाज को  कौन देखेगा ! उनकी शंका सही सिद्ध हुई! बाबासाहेब के देहावसान के बाद दलित शोषित समाज का लंबे अर्से तक कोई अगवा नहीं रहा! जो लोग बाबासाहेब का कारवां आगे बढ़ाने की बात करते रहे वो मनुवादी राजनीतिक दलों में शामिल हो  गए और चाटुकारिता में

"आरक्षण-विरोधी आंदोलन " वादे तोड़ने की साज़िश है- मान्यवर कांशीराम जी

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Manywar Kanshiram Ji  पिछड़े वर्ग को आरक्षण के समर्थन में संसद पर धरना,रैली व प्रदर्शन   बहुजन समाज पार्टी ने बड़े पैमाने पर "आरक्षण समर्थक आंदोलन "चलाने की शुरुआत कर दी! विगत 26 दिसम्बर,1989 से  28 दिसम्बर 1989 तक आरक्षण के समर्थन में दिल्ली के बोट क्लब मैदान पर बहुजन समाज पार्टी के हज़ारों कार्यकर्ताओं ने धरना प्रदर्शन करने के बाद 29 दिसम्बर 1989 को दोपहर एक बजे पटेल चौक अर्थात संसद के समक्ष विशाल प्रदर्शन कर सरकार की कथनी और करनी के प्रति अपना रोष प्रकट किया  !  प्रदर्शनकारियों ने सरकार द्वारा चुनाव पूर्व 85 प्रतिशत दबे पिछड़े समाज से किए गए वादे पूरा करने की मांग की  ! "वी• पी• सिंह अपनी नियत साफ़ करो- मंडल आयोग रिपोर्ट लागू करो " तथा अनुसूचित जाति,जनजाति का आरक्षण कोटा पूरा करो,वी • पी• सिंह अपने वादे पूरे करो- वरना  कुर्सी खाली करो के नारों से आसमान गूंज उठा  ! प्रदर्शनकारी फिरोजशाह कोटला मैदान से,भीषण सर्दी के बावजूद हज़ारों की संख्या मे नारे लगाते हुए संसद पर पंहुचे! प्रदर्शनकारियों में बहुत सी महिलाएं भी थी  ! 27 दिसम्बर को बोट क्लब पर आंदोलनकारियों को बहुज

बुराई करने वालों से ना डरे अपना काम करते रहें- संत पलटु दास जी

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Sant Paltu das ji  मान्यवर साहब कहां करते थे कि आपकी बुराई करने वाला भी होना चाहिए । अगर कोई आपकी बहुत ज्यादा बुराई कर रहा है तो इसका मतलब आप सही काम कर रहे हैं ।इसलिए बुराई करने वाले से ना डरे और अपना काम करते रहे। निंदक जीवै जुगन-जुग , काम हमारा होए । काम हमारा होय,  बिना कौड़ी का चाकर।। कमर बांध कर फिरे, करै तिहुं लोक उजागर । उसे हमारी सोच , पलक भर नहीं बिसारी।।  लगा रहे दिन रात , प्रेम से देता गारी । संत कहे ,दृढ करे , जगत का भरम छुड़ावै।। निंदक गुरु हमार, नाम से वही मिलावे । सुनि कै निंदक मर गया,  पलटू दिया है रोए । निंदक जिवै जुगनू जुग, काम हमारा होय।।  इस बाणी में सतगुरु पलटू दास जी फरमाते हैं कि हमारी बुराई करने वाला होना चाहिए क्योंकि वह बुराई कर रहा है तो मान लो हम कुछ अच्छा काम कर रहे हैं अतः हमारी बुराई करने वाला युगों युगों तक जीवित रहे क्योंकि वह हमारा काम करता है । वह हमारा बगैर पैसे का नौकर होता है । निंदक हमारी बुराई करने के लिए कमर कस लेता है और हमें तीनों लोकों में प्रसिद्ध कर देता है । उसका ध्यान हर वक्त हम पर होता है । वह हमें एक पल के लिए भी नहीं भूलता है बेचारा नि