ऐसा चाहू राज मैं,जहां मिले सबन को अन्न।

Guru Ravidas ji 


ऐसा चाहू राज मैं,जहां मिले सबन को अन्न।
छोट-बड़ सब सम बसै,रविदास रहे प्रसन्न।। 


व्याख्या

संतो के ज्ञान को खाली दार्शनिकता तक ही सीमित रखना ग़लत है । यह समाज के बड़े चिंतक और मार्ग दाता भी थे। संतजन राज पाट की कामना भी करते थे । कहते थे कि आप का अपना  राज होना चाहिए , ताकि अपने प्राचीन धम्म को सलामत रखा जा सके।  सभी वर्गों के लोगों को , बगैर भेदभाव से,  समान अधिकार हासिल हो । उनको सलामत रखने के लिए राजसत्ता का होना निहायत जरूरी है । इसलिए सतगुरु रविदास साहब राज प्राप्ति की कामना करते हैं और साथ में एक शर्त रखते हैं कि उस राज के अंदर की प्रजा के सब लोगों को खाने को भोजन उपलब्ध हो । कोई छोटा - बड़ा नहीं होना चाहिए। सभी समानता के आधार पर बसेरा करें । सतगुरु रविदास साहब कहते हैं उसी में मेरी प्रसन्ता है । 

इस दो लाइन के इस दोहे के अंदर सतगुरु रविदास जी भारतीय संविधान की उद्देशिका के न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता का समर्थन करते है। 

मैं हूं अमर, कबूह नहीं मरता ,खड़ग विज्ञान चलाउ रे साधो, 
सामर्थ साहिब कहलाउ।। 
बिरमा, बिसनु का शीश काट मैं, शिव को मार भगाऊँ।
आदि शक्ति को पैरों से रौंदू, काल को पकड़ नाचाऊ।। 
दस अवतार डरै, डर मेरे , सूर्य चंद्र राहु ।
इंदरपुरी के देव सब डरते ,मैं धर्मराज बुलवाऊ।। 
चौदह लोक का करूं निबेड़ा, एक ठिकाने लाऊँ।
जात बरन की मेट कल्पना, सतोसत नाम कहाऊ।। 
सुरता म्हारे चरणों की दासी,  मुक्ति ठौर न थाउ।
कह रविदास सरण जो आवै, उसको भी मुक्त कराउ। 

Equality 


व्याख्या 

यह उपरोक्त वाणी सतगुरु रविदास महाराज की है।  इस वाणी में गुरुजी समता, समानता की जबरदस्त पैरवी कर रहे हैं ।सतगुरु साहब फरमाते हैं कि मैं अमर हूं,  मुझे कोई नहीं मार सकता क्योंकि मैं इतिहास पुरुष हूं।  मैं कभी नहीं मरता क्योंकि मैं खड़ग यानी दो धारी तलवार,  विज्ञान रूपी खड़ग से, झूठ, पाखंड और भरम आदि दुष्प्रचार को काट देता हूं इसलिए साधक लोगों में मैं सामर्थ यानी कि जीवित यानी सक्षम साहिब, नेता या मार्गदर्शन कहलाता हूं । सारे विचार और विकार सिर में आते हैं मस्तिष्क में आते हैं । मिथ्या वादी विचार, भरम, भय आदि  मनुष्य के दिमाग में रहते हैं । ऐसे गुरु जी कहते कि मैं ब्रह्मा, विष्णु आदि का शीश काट देता हूँ यानि इन के अस्तित्व को अपने दिमाग से निकाल कर के फेंक देता हूँ। शिव को भी मन मस्तिक से मारकर भगा देता हूँ। काल्पनिक आदि शक्ति को पैरों से रौंदा देता हूँ यानी में उनको भी कुछ नहीं समझूंगा और काल ( समय ) रूपी मौत को पकड़कर के नचाता हूँ क्योंकि महापुरुष किसी समय के अधीन नहीं होते।  वे अकाल पुरुष होते हैं । उनका नाम सभी कालों में यानी हर समय, युगों युगों में विद्यमान रहता है । दस अवतारों ने बड़े-बड़े योद्धाओं को मारा मगर मेरे सामने यह अवतारी भी डरते हैं । सूर्य चंद्रमा राहु और इंद्रपुरी के तथाकथित देवता मुझसे डरते हैं।  मैं नहीं डरता । मैं तर्कों के आधार पर धर्मराज के न्याय को चुनौती देता हूं कि मेरी तर्क बुद्धि के अनुसार न्याय करके दिखाएं । मैं इनके द्वारा निर्मित 14 लोकों को समानता के आधार पर इनका फैसला करता हूँ और तर्क रूपी तलवार के प्रहार से इन्हें वास्तविक धरातल पर ले आता हूँ।  जो इन्होंने जाति और वर्ण व्यवस्था बना रखी है । इन जातियों और वर्णों की कल्पना ही खत्म कर दूं ताकि कभी कोई इनके बारे में सोचें नहीं,  ताकि सभी एक समान हो जाए । सबको मैं बराबर कर दूं,  ताकि कोई ऊंच-नीच का भेदभाव ही ना कर पाए । अतः तब मैं सच्चा ज्ञानी कह लाऊंगा  (यह संविधान की प्रस्तावना है) 

अब हम खूब वतन घर पाया , ऊंचा खेर सदा मन भाया।
बेगमपुर शहर को नाउ , दुख अन्दोह नहि तेहि ठाउ।।
न तसबीस खिराज न माल, खौफ न खता न तरस जुबाल।
आबादान रहम औजूद,  जहां गनी आप बसै माबूद।।
काइम दाइम सदा पतिसाही, दोम न सोम एक सों आही।
जोई सैलि, करै सोई भावै, मरहम महल ताको अटकावै।।
कह रविदास खलास चमारा, जो हमसहरी सो मीत हमारा। 

Finland happiest country


व्याख्या

सतगुरु रविदास महाराज जी कहते हैं कि अब  हमें हमारा, अपना देश और अपना घर मिल गया है । मेरा घर बहुत ऊंचे दर्जे का है जो मेरे मन को भा गया है । मेरी इच्छा है कि मेरा देश,  मेरा नगर बेगमपुर यानि बिना गमों का पूरा ( नगर) हो। दुख रहित हो । ना वहां पर कोई शंका का वास हो।  ना वहां कोई मानसिक पीड़ा हो । न हीं किसी तरह की माल की लूट हो । न हीं कोई शुल्क यानि टैक्स देना पड़े । वह बेगमपुर शहर भयरहीत और अपराधरहित हो। वहां पर ना कोई अभाव हो । न हीं कभी उस शहर का विनाश हो । और वह बेगमपुरा शहर सदा सदा के लिए आबाद रहे और दया और करुणा का वास हो।  वहां पर सदा सदा के लिए हमारी बादशाही कायम रहे । यानी कि हमारा शासन चले तथा वहां पर हर नागरिक बराबर हो । कोई भी दोयम दर्जे का नागरिक ना हो । यह एक ऐसा सहर हो , जिसे जो देखे,  वह पसंद करें और महलों को टकटकी बांधकर देखता  रहे।  मैं रविदास चंवर वंशी कहता हूं कि जो हमारी इस सोच को स्वीकार करता है,जो हमारी सोच रूपी बेगमपुर नगर को बसाना चाहता है , हमारी इस व्यवस्था का जो समर्थक है,  वही हमारा सच्चा मित्र है । वही हमारा साथी है। 

नोट:- इस बाणी में भी सतगुरु रविदास जी कह रहे है कि एक बेगमपुर सहर बसे और उस पर सदा सदा के लिए हमारा राज रहे।


 तुम मखतूल सुपेद सपीअल, हम बपुरे जस कीरा।

सतसंगति मिलि रहीए माधव, जैसे मधुप मखीरा ।। 

व्याख्या

यहां पर सतगुरु रविदास महाराज जी राज सत्ता प्राप्ति का एक फिर से संदेश देते हैं । कहते हैं कि तुम सफेद सिप्पी के मोती जैसे मखमल हम उससे कीड़े हैं । इसलिए सच्चे लोगों से मिलजुल कर के रहना , अच्छी , सच्ची संगत में रहना जैसे शहद के छत्ते के ऊपर मधुमक्खियां मिलजुलकर रहती हैं । 

कहने को तो यह दो लाइने है मगर इसमें भी सतगुरु सत्ता प्राप्ति की बात करते करते हैं और कहते हैं की मधुमक्खी अपने लिए शहद का छत्ता बनाती है।  मधुमक्खियों के शहद के छत्ते और मधुमक्खियों का अथक मेहनत से हमें यह समझ में आता है कि उन्हें यह पता है की जब फूल नहीं रहेंगे , तो उन्हें पराग नहीं मिलेगा । वह तब शहद नहीं बना पाएंगी।  उस समय उनका और उनके परिवार का भरण पोषण कैसे होगा  तो ऐसे समय के लिए,  अपने लिए शहद इकट्ठा करती हैं और अपने छत्ते  की रखवाली करती हैं । मधुमक्खियों के छत्ते पर कोई हाथ डालता है तो मधुमक्खियां उस पर टूट पड़ती है । उन्हें अपना छत्ता और अपना शहद बचाना है । किसी पर निर्भर नहीं रहना । यह शिक्षित बनो वाली बात है।  मिलजुल कर के रहना है यह संगठित रहने वाली बात है और मिलकर के दुश्मन पर हमला करना है यह संघर्ष वाली बात समझ में आती है । तो सतगुरु रविदास जी ने इस बानी के अंदर गूढ़ रहस्य को दर्शाया है कि किसी पर आश्रित मत रहिए । मधुमक्खियों की तरह अपने शासन की स्थापना कीजिए। अपना बेगमपुरा बनाइए 

व्याख्या कर्ता मान्यवर धर्मवीर सौरान जी 


जय गुरुदेव, जय भीम 

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