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मई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

धार्मिक गुरु का चुनाव करते वक़्त कुछ बातों का रखे ध्यान

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spirtual quotes यंहा गुरु का मतलब धार्मिक  है इसका मतलब स्कूल की शिक्षा से नहीं है स्कूल में अध्यपक हैं जो अध्ययन करवाते है और छात्र के दिमाग को जीवन में आगे बढ़ने के लिए तैयार करते हैं जैसे एक किसान फसल तैयार होने से पहले अच्छी तरह खेत को तैयार करता है और अच्छी फसल के सपने के साथ बीज रोपण करता है मगर बेमौसम बारिस , प्राकर्तिक आपदा और अन्य बहुत सी दुर्घटनाए होती है जिसकी  वजह से किसान अपने आपको निसहाय महसूस करता है ऐसे ही जीवन में कुछ लोग गरीब शोषित भोले भाले लोगों का परमात्मा अल्लाह गॉड के नाम पर  पंथ बनाकर शोषण करते है ! अध्यात्म व्यक्तिगत विषय है इसलिए किसी भी  विश्विद्यालय में नहीं पढ़ाया जा सकता !   गुरु का होना जरूर होता है ? चेतन पुरुष के लिए गुरु का होना कोई जरूरी नहीं है क्योंकि उसका गुरु खुद का ज्ञान होता है । इसलिए संत कहते हैं कि कौन गुरु कौन चेला रे साधौ, कौन गुरु कौन चेला।।  शब्द गुरु चित् चेला रे साधौ,  शब्द गुरु चित् चेला।। जब इंसान प्रज्ञा की ऊंचाइयों को छूता है तो वह स्वयं का गुरु हो जाता है उसको गुरु की जरूरत नहीं होती है मगर मनुवादी क

संत शिरोमणि गुरू रविदास जी महाराज - एक क्रांतिकारी भिक्षु

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guru ravidas bani  1. वैखरी 2 . मध्यमा 3. पशयन्ति 4. परा संतो  की चार प्रकार की बाणी होती है। परा, पश्यन्ती ,मघ्यमा और वैखरी। वैखरी बाणी जिनमें आम बातें बताई जाती है उन्हें आप चेतावनी भी कह सकते हैं ।इसमे शब्द न होकर अक्षर होते हैं।और जब शब्द ,अक्षर में बदलते है तो इन्द्रियों का प्रसार बढ़ जाता है। इसकी अवस्था जाग्रत होती है मगर ज्ञान बगैर यह बाणी और अवस्था दोनो भरम में रहती हैं। मध्यमा बानी के शब्द कंठ तक होते है अवस्था स्वपन सी होती हैं। मिथ्या स्वपन आते हैं। दुख और दुख को ज्यादा मानने  व करुणा प्रज्ञा न होने से भरम स्थिति होने की वजह ज्ञान रहित बाणी है। पश्यंती बाणी में शब्द ह्रदय तक पहुचते है और इसकी अवस्था सुखोपति होती है। मनुष्य गलत, ठीक का आंकलन कर सकता है। वह शीलवान और चेतन मानव हो जाता है मगर पूर्ण मुक्त नही हो सकता। परा की बाणी शब्द ही रहतीं हैं अक्षर नही बनती तथा नाद प्रकट करती है। भरम और तृष्णा को खत्म करती है। इसमें चेतन चिंतन की अवस्था होती है जिसे तुरिया कहते हैं  पर हमें आने के बाद तुरिया अवस्था में जिव से हंस हो जाता है विवेकशील होकर के पारख बन जात

हिन्दू धर्म और बौद्ध धम्म में क्या अंतर है?

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gautam buddha  हिन्दू धर्म और बौद्ध धम्म में क्या अंतर है? परिभाषा हिन्दू धर्म में धर्म की परिभाषा दी गई है कि धर्म वह है जिसे धारण किया जा सके। जैसे अच्छाई, बुराई, जनेऊ, भगवा, माला, अंगूठी आदि। जबकि बौद्ध धर्म कहता है कि धर्म एक स्वभाव है। जैसे पानी का धर्म है बहना, बर्फ का धर्म है शीतलता, वायु का धर्म प्राण है, अग्नि का धर्म जलाना आदि। बनावटी ईश्वर 2) हिन्दू धर्म मे ईश्वर की संकल्पना की गई है। वही बौद्ध धर्म ने ईश्वर की सत्ता को नकारा है। वह कहता है कि यदि ईश्वर है तो उसे किसने बनाया? साथ ही ईश्वर को प्रमाणित भी नही किया जा सकता। यदि कोई मर रहा है या कष्ट मे है तो ईश्वर को बुलाओ, वह कँहा है। गतिशीलता 3) हिन्दू धर्म जगत को मिथ्या मानता है। वही बुद्ध कहते है कि जो चीज तुम्हारे सामने है वह मिथ्या कैसे हो सकती है। पहाड़ है, नदियां हैं, झरने हैं, यह सब मिथ्या कैसे? कारण सिद्धांत 4) अब यह प्रश्न उठता है कि यह सब किसने बनाया? बुद्ध कहते है कि यह सब स्वमेव है, हो रहा है। इसके पीछे कारण सिद्धांत है। यदि कोई भुखमरी से मर रहा है तो उसे खाना दे दो, बच जा

अभिवयक्ति महापुरुषों का सम्मान

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धर्म  हजार हो सकते हैं,  धम प्राकर्तिक  एक ही होता है ! धर्म बीमारी है प्रकर्ति स्वास्थ्य है ! धम/प्रकर्ति  तो एक ही होता है जैसे  सूर्य सबको ताप देता है प्रकृति सबको एक समान आक्सीजन हवा पानी पेड़ पौधे सब कुछ देती है धम ही अच्छा जीवन जीने का मार्ग मानव जगत के महान वैज्ञानिकों महापुरुषों ने मानवता को खोज करके दिया  है !  धर्म  कुछ षड्यंत्रकारी इंसानो  द्वारा निर्मित एक चाबुक है जो कमजोर वंचित असहाय अनपढ़  लोगों पर लगातार प्रहार करता रहता है  आश्चर्य की बात है कि साधारण धार्मिक आदमी हिन्दू मुसलमान होता है , सो ठीक, सन्यासी भी हिन्दू मुसलमान ईसाई और जैन होता है ! कम से कम सन्यासी तो सिर्फ मार्गदाता हो ! वह भी संभव नहीं हो पाया है ! धम पैदा हुआ, कुछ थोड़े से व्यक्तियों के जीवन में उसकी अनुभूति गहरी थी ! लेकिन आम जन के जीवन में वह तब तक नहीं पंहुच सकता था जब तक कि विज्ञानं ठीक भूमि साफ़ ना कर दे ! अब विज्ञानं ने भूमि ठीक से साफ़ कर दी है ! और अब धम  अवैज्ञानिक ढंग से स्वीकृत नहीं हो सकता इसलिए बड़ी कठिनाई पैदा हो रही है ! जो लोग अंधविश्वासों को पकडे हुए हैं, वे सोचते

आत्मविश्वास हासिल करने का सबसे अच्छा तरीका है ,आप वह करें ,जो आप करने से डरते हैं

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भूमिका  आत्मविश्वास का टूटना एक मानिसक रोग है!आत्मविश्वास मानव की उन्नति में सबसे सार्थक अंग है खुद से लगाव जो रखता है उसमे कुछ विशेष  गुण विध्यमान होते हैं और विश्वास अन्य लोगों से कईं  गुणा ज्यादा  होता है ! विश्वास  और आत्मविश्वास दोनों एक दूसरे के पूरक हैं दोनों अपने ढंग  से प्रयोग किये जाते हैं विश्वास  बाहरी आवरण है जो बाहरी वयवस्था एवंम  सौन्दर्यकरण पर ज्यादा जोर देता है ! आंतरिक मजबूती व् सौन्दर्यकरण को आत्मविश्वास अपने अधीन रखकर पुरे जीवन को आनंदमय बना देता है !और मानव  बाहरी चीजों को  ज्यादा व्यवस्थित करने में अपना आंतरिक आत्मविश्वास को कमजोर कर लेता है  जिसका अहसास नहीं होता ! जब वो विशवास हमारी आंतरिक शक्तियों को कमजोर करने लगे औऱ  विशेष गुण अपने ही विशवास से खतरा महसूस करे  उसको ही  हम आत्मविश्वास का टूटना कहते हैं ! आत्मविश्वास को दोबारा हासिल करने के कुछ निरंतर तरीके अपनी दिनचर्या में अपनाकर दोबारा हासिल किया जा सकता है जैसे : आलस का त्याग  जब आत्मविश्वास कमजोर होता है तो पुरे शरीर से ऊर्जा शक्ति गायब हो जाती है और आलस चारो तरफ से घेर लेता है !अकर्मण्यता कुछ भ

धार्मिक अंधविश्वास में शक्ति की खोज ?

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           धार्मिक अंधविश्वास में शक्ति की खोज  अभी सारी मानवता का  एक धम खड़ा नहीं हो सका  है इसलिए धम की हार हो रही है रोज , इसलिए नहीं कि मानवता  कम ताकतवर है बल्कि इसलिए कि मानवता का खेमा आपस में बंटा हुआ है तो सवभावतय   अधर्म की शक्तिया अपने  आप बड़ी हो उठती हैं कुछ सवार्थी लोगों ने मानवता को हिन्दू मुसलमान ईसाई जैन बौद्ध पारसी आदि में बाँट दिया और पूरी मानवता को मानवता के ही विरोध में खड़ा कर दिया ! विज्ञानं का कसूर नहीं है कसूर है तो अधर्मी लोगों का !  विज्ञानं का बुनियादी सम्बन्ध वस्तुओं को अधिकतम सुविधापूर्ण बनाने से है और धम का समबन्ध मानवता को अधिकतम आंनद प्रदान करने से है विज्ञानं के बिना धर्म तो अधूरा ही रहेगा !  विज्ञानं के बिना धर्म एक ेंदिन मानवता के लिए घातक सिद्ध होगा ! इस लिए तो विज्ञानं  विश्ववि द्यालयों  में  पढ़ाया जा सकता है ! धर्म नहीं पढ़ाया जा  सकता ! पढ़ाने का कोई उपाय नहीं है ! विज्ञानं  सामूहिक सम्पति बन जाता है ! धर्म निरंतर वयक्तिगत अनुभव है ! और जब भी हम इसे सामूहिक सम्पति बनाते हैं तब धर्म के रूप में मुसलमान हिन्दू ईसाई  जैन पारसी इत्यादि 

संत शिरोमणी कबीरदास जी मार्ग दाता - आचार्य धर्मवीर सौरान

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ये बाणी कबीरदास जी के शिष्य गरीब दास जी की है। गजब की सोच और समर्पण है।। रे हँसा , तू है आप सदाता। तेरे ऊपर औऱ ना कर्ता, ये ढक्कन किस नै ढाका।। ईश्वर ,ब्रह्म, आत्म, परमात्म, किया सपन सम हाका। अंतक जाल रचै बहु भांति, इनमे मिलै ना काखा।। गुरु शिकारी बन कै पंछी, करें अकाल समाका। इन नै निर्मल ज्ञान पै पर्दा डाल कै, मिथ्या भरम भराटा।। भाष, अभाष, अनुमान कल्पना, आर पार सब फाँसा। अब निर्णय करके समझ आप को, कौन सबन का आका।। तू है सबका जाणनहारा, अनुभव ज्ञान सलाका। सारे व्यापक और ना कोई, महापुरुषों नै भाख्या।। अजर अमर स्वरूप तेरा, जनम मरण ना वा का। गरीबा कहै , भेट गुरु बुद्धमय, निर्भय उड़ै है खुलासा।। आचर्य धर्मवीर सौरान

पूछता है अर्नब कैसा लग रहा है ?

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पू पूछता है अर्नब कैसा लग रहा है ? 

मान्यवर इनामी लाल जी कांशीराम जी को सत सत नमन

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मान्यवर इनामी लाल जी गाँव अभयपुर सोहना गुडगाँव  के छोटे कांशीराम जी की तीसरी पुण्य तिथि पर हम सब आपको नमन करते हैं ।  और परिवार व अन्य ग्रामवासियों से मज़बूती से आंदोलन को आगे बढ़ाने की अपेक्षा रखते हैं । बाबा साहेब के सच्चे सपूत विचारवान और दलित गरीब मूलनिवासी समाज के लिए हमेशा तत्पर रहने वाले मान्यवर इनामी लाल जी को हम नम आँखो से श्रधांजलि अर्पित करते हैं । जब जब हम अभयपुर गाँव में जाते थे तो हमेशा मिशन के सैनिकों का सम्मान करते थे । अभयपुर गाँव के स्कूल में बाबा साहेब की जयन्ती जन्मोत्सव मान्यवर इनामी लाल जी की ही देन रही  जो भव्य रूप में आयोजित होने लगा  । दबंगो से समाज के लिए लड़ना आपने सिखाया है  आपसे अन्य लोगों को शिक्षा मिलती रहेगी  । आप हमेशा यादों में विराजमान रहेंगे । होता रहेगा सम्मान मिशन में टिकने वालों का 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🌺🌺🌺🌺🌺 जय भीम जय भारत 

*_💁‍♂️ बाबा साहब डॉ आंबेडकर द्वारा दी गई 22प्रतिज्ञाएं /आज्ञाएं,_* *_निम्न प्रकार हैं⤵️_*

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*_💁‍♂️ बाबा साहब डॉ आंबेडकर द्वारा दी गई 22प्रतिज्ञाएं /आज्ञाएं,_* *_निम्न प्रकार हैं⤵️_* _☸️1-मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा/करूंगी और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा/करूंगी।_ _☸️2-मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा/रखूंगी और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा/करूंगी।_ _☸️3-मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूँगा /रखूंगी, और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा/करूंगी।_ _☸️4-मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँ/करती हूं।_ _☸️5-मैं यह नहीं मानता/मानती और न कभी मानूंगा/मानूंगी कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे. मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता/मानती हूँ।_ _☸️6-मैं श्रद्धा (श्राद्ध) में भाग नहीं लूँगा/लूंगी, और न ही पिंड-दान दूँगा/दूंगी।_ _☸️7-मैं बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का उल्लंघन करने वाले तरीके से कार्य नहीं करूँगा/करूंगी।_ _☸️8-मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगा/करूंगी।_ _☸️9--मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करता/करती

संविधान क्या है ?

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 संविधान ,नागरिक व सरकार के मध्य एक दस्तावेज है जिसमें मानव को आज़ादी,व सरकार शक्ति के लिये  उसको प्रयोग करना अपना अधिकार मानती है । मानव अधिकार व सरकारी शक्ति को संयमित करने के लिए  सभ्य समाज में संविधान कीं विशेष  ज़रूरत है ।  सरकार व मानव के बीच संतुलन जो पैदा करे वही संविधान  है ।  संविधान का मतलब है सर्वश्रेष्ठ विधान और विधान को ही आम बोलचाल की भाषा में  कानून अर्थात विधान  कहा जाता है !लोगों के वयवहार को राज्य और समाज में कानूनी  रूप से निर्देशित करने को ही सविधान कहा जाता है ! संविधान जो सरकार बनाता है और  सरकार जो कानून बनाती है वो संविधान के अनुसार होने चाहिए ! सारे के सारे कानून संविधान के निचे आते हैं ! वयवस्थापिका (संसद) जो कानून बनाए वो संविधान के अनुरूप होने चाहिए अर्थात संविधान जिन कानूनों को बनाने की इज्जाजत सरकार को देता है उसी प्रकार के कानून सरकार बना सकती है इसलिए प्रत्येक कानून को संविधान के अनुरूप होना जरुरी होता है ! कानून को लागू करने के लिए बहुत सारे नियम बनाने पड़ते हैं ! कुछ छोटे कानून होते हैं जिनको कार्यपालिका बनाती  है इन नियमो के बिना असली कानून को

पूना पैक्ट - ज़्यादा सीट ,कम अधिकार, बिना ताक़त के साथ

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round table conference  गोलमेज सम्मलेन  1930 में पहला गोल मेज सम्मलेन हुआ जिसमे भारत के राजाओं , विशिष्ट हस्तियों ,कांग्रेस व् महात्मा गाँधी को भी आमंत्रित किया था मगर गाँधी व् कांग्रेस ने इस सम्मलेन का बहिष्कार किया जिसमे महात्मा गाँधी ने भाग नहीं लिया  ! बाबा साहेब ने दलितों का व् सम्पूर्ण राष्ट्र्र का प्रतिनिधित्व किया !डॉ बी॰ आर॰अम्बेडकर ने  माँग रखी की अछूतों की हालत बहुत ही दयनीय और मानवीय अधिकारों से वंचित है ! हिन्दू  समाज ने कभी इनको मानवीय अधिकार नही दिए ।उनको गाँव से बाहर रखा , पीने के लिए पानी, खाने के लिए रोटी नही ,मजबूरन झूठन व् मरे  हुए जनावरों का मांस खाकर गुज़ारा करते हैं । उनको बसों रेलगाड़ियों व  सार्वजनिक गाड़ियों में यात्रा करने की मनाही हैं और हिन्दू लोगों के डर से अपनी आवाज़ भी नही उठा सकते । ब्रिटिश भारतीय सरकार ने भी उन अभागे अछुत्तों के लिए कुछ नहीं किया , मैं उन अछूतों का प्रतिनिधित्व करता हुँ ! बाबा साहेब ने दोहराया की हमें आज़ादी चाहिए ,हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं  सम्पूर्ण आज़ादी का पक्षधर हूँ आप भारत छोड़े ! बाबा साहेब के भाषण को  यूरोप के अख