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जनवरी, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सामाजिक न्याय सामाजिक परिवर्तन से सम्भव- कांशी राम ज़ी

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आज बात मान्यवर कांशीराम साहब के आत्मविश्वास की, साहब ( कांशीराम ) में आत्मविश्वास कूट कूट कर भरा था । यह साहब का आत्मविश्वास ही था जोकि भारत में  बहुजनों के इतने बड़े आंदोलन को खड़ा कर गया । मेरे एक उदाहरण से बात बिल्कुल ही साफ हो जाएगी । बात आज से 35 साल पुरानी है । उत्तर प्रदेश के आम चुनाव का मौका था । मैं साहब को इटावा चुनाव प्रचार हेतु फरुखाबाद से लेने के लिए गया हुआ था । सुबह तड़के ही फरुखाबाद पहुंच गया था । मैं साहब के साथ साथ उस दिन फरुखाबाद में चुनाव प्रचार हेतु घूमा भी था । जनाब श्री  सादिक नवाज़ जी  ( पूर्व RPI लीडर ), जिनके बेटे चुनाव लड़ रहे थे शायद , वह भी हमारे साथ में थे । कुल मिलाकर साहब के साथ हम चार या पांच लोग मात्र ही थे । जहाँ भी प्रचार हेतु जाते वहाँ भी बामुश्किल चार पाँच लोग ही जुट पाते थे । मुझे बड़ी ही शर्मिदगी महसूस हो रही थी यह सब देखकर वहीँ साहब का चेहरा आत्मविश्वास से लबरेज़ था । साहब के चेहरे पर कोई शिकन रंच मात्र भी नहीं थी । संलग्न फोटो भी उसी समय 10 फरवरी 1985 की ही है , जोकि मेरे द्वारा तब खींचीं गई थी । फोटो में जितने लोग फ्रेम में दिखाई दे रहे हैं ,

किसान आंदोलन - झूठ पर सच्चाई की जीत

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दिनांक 11/01/2021 को  सुप्रीम कोर्ट ने  चार सदस्य की  कमेटी  बनाकर आंदोलन को  विफल करने का अप्रत्यक्ष षडयंत्र रचाया है।  चारो सदस्य पहले से  ही अखबार लेख के  माध्यम से एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से तीनों किसान विरोधी कानून के  पक्ष मे  अपनी  राय  जाहिर  कर  चुके  हैं। किसानों की  मांग है कि सरकार ने कानून बनाए हैं तो सरकार ही  इनको  वापिस ले  मगर सरकार किसानों को थका कर परेशान करके आंदोलन खतम करने की कोशिश कर रही है। किसान भारी ठंड में खुले आसमान के  नीचे रात  बिताने पर मजबूर है ।वर्तमान बीजेपी  सरकार अपने ही नागरिकों, अपने ही समर्थक वोटर को विवश कर रही  है  ! भारत के  इतिहास मे  ये  आंदोलन सुनहरे अक्षरों मे  लिखा जाएगा जिसको  कामयाब करने के लिए अब तक साठ से ज्यादा किसान अपनी जान गंवा चुके है और शहीदी को  प्राप्त हो चुके  हैं ।सरकार गरीबों की  नहीं कुछ पूंजीपतियों साहुकारों की सोच को भारत के आम जनमानस पर थोपने का काम कर  रही है। आम गरीब किसान मजदूर का विश्वास वर्तमान बीजेपी की सरकार ने  खो दिया है। अविश्वास की स्थिति एक ही दिन में पैदा नहीं हुई इसको पैदा होने में  लगभग सात साल लगे हैं । स

बहन कुमारी मायावती सामाजिक परिवर्तन की आदर्श मिसाल

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 #मायावती_जी के जीवन संघर्ष पर जवाहर लाल नेहरू(JNU) विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र विभाग के प्रमुख #प्रो.#विवेक_कुमार ने अपने एक लेख में लिखा था, यह विडंबना है कि लोग आज मायावती के गहने देखते हैं, उनका लंबा संघर्ष और एक-एक कार्यकर्ता तक जाने की मेहनत नहीं देखते. वे यह जानना ही नहीं चाहते कि संगठन खड़ा करने के लिए मायावती कितना पैदल चलीं, कितने दिन-रात उन्होंने दलित बस्तियों में काटे. मीडिया और कुछ मायावती विरोधी लोग इस तथ्य से आंखें मूंदे है. सजातिय और मजहब की बेड़ियां तोड़ते हुए मायावती ने अपनी पकड़ समाज के हर वर्ग में बनाई है. वह उत्तर प्रदेश की पहली ऐसी नेता हैं, जिन्होंने नौकरशाहों को बताया कि वे मालिक नहीं, जनसेवक हैं । सर्वजन का नारा देकर उन्होंने बहुजन के मन में अपना पहला दलित प्रधानमंत्री देखने की इच्छा बढ़ा दी है. दलित आंदोलन और समाज अब मायावती में अपना चेहरा देख रहा है. भारतीय लोकतंत्र को समाज की सबसे पिछली कतार से निकली एक सामान्य महिला की उपलब्धियों पर गर्व होना चाहिए.’ आगामी चुनाव में हम BSP को ही क्यों चुनें ? इसके लिए हजार कारण हो सकते है उसमें से कुछ नीचे दिए गए है  बीएसपी क