सामाजिक न्याय सामाजिक परिवर्तन से सम्भव- कांशी राम ज़ी
आज बात मान्यवर कांशीराम साहब के आत्मविश्वास की, साहब ( कांशीराम ) में आत्मविश्वास कूट कूट कर भरा था । यह साहब का आत्मविश्वास ही था जोकि भारत में बहुजनों के इतने बड़े आंदोलन को खड़ा कर गया । मेरे एक उदाहरण से बात बिल्कुल ही साफ हो जाएगी । बात आज से 35 साल पुरानी है । उत्तर प्रदेश के आम चुनाव का मौका था । मैं साहब को इटावा चुनाव प्रचार हेतु फरुखाबाद से लेने के लिए गया हुआ था । सुबह तड़के ही फरुखाबाद पहुंच गया था । मैं साहब के साथ साथ उस दिन फरुखाबाद में चुनाव प्रचार हेतु घूमा भी था । जनाब श्री सादिक नवाज़ जी ( पूर्व RPI लीडर ), जिनके बेटे चुनाव लड़ रहे थे शायद , वह भी हमारे साथ में थे । कुल मिलाकर साहब के साथ हम चार या पांच लोग मात्र ही थे । जहाँ भी प्रचार हेतु जाते वहाँ भी बामुश्किल चार पाँच लोग ही जुट पाते थे । मुझे बड़ी ही शर्मिदगी महसूस हो रही थी यह सब देखकर वहीँ साहब का चेहरा आत्मविश्वास से लबरेज़ था । साहब के चेहरे पर कोई शिकन रंच मात्र भी नहीं थी । संलग्न फोटो भी उसी समय 10 फरवरी 1985 की ही है , जोकि मेरे द्वारा तब खींचीं गई थी । फोटो में जितने लोग फ्रेम में दिखाई दे रहे हैं , उससे दो या तीन गुने ही लोग मात्र साहब को सुनने के लिए सामने मौजूद थे ।
जनाब श्री सादिक नवाज़ साहब भी बड़ी ही शर्मिदगी महसूस कर रहे थे ज्यादा भीड़ न इक्कट्ठा कर पाने के लिए, क्योंकि सादिक साहब ( वक्ता गजब के थे ) जब भाषण देते थे तो लाखों की भीड़ में भी पिन ड्राप साइलेंस ( एकदम खामोशी छा जाना ) हो जाती थी लेकिन फरुखाबाद में कहीं भी हमें कोई भीड़ भाड़ नहीं मिली जबकि हमलोग चार या पाँच जगह मीटिंग के लिए गए थे । इसी बीच जनाब श्री सादिक नवाज़ जी हमलोगों को एक बहुजन ( जाटवों ) की बस्ती में ले जाते हैं वहाँ कुछ और जगहों की अपेक्षा कुछ ज्यादा लोग मिलते हैं । वहाँ साहब को एक "अम्बेडकर वाचनालय एवं पुस्तकालय" दिखाया जाता है । वह बड़ा ही जीर्ण शीर्ण अवस्था में अपने हालत आप ही बायां कर रहा था । उसका बोर्ड जिस पर अंबेडकर वाचनालय एवं पुस्तकालय लिखा हुआ था । टेढ़ा लटक रहा था लिखावट लगभग मिटने के कगार पर थी । दरवाजों पर मकड़ियों ने जाले बना रखे थे जिनसे साफ पता चल रहा था की वह पुस्तकालय शायद ही कभी खुलता भी होगा ? साहब ने वहाँ के निवासियों से यह सब हालात देखकर जो सबसे पहला सवाल पूछा था वह यह था कि यह "अम्बेडकर वाचनालय एवं पुस्तकालय" कभी खुलता भी है ? या यूँही बंद ही रहता है साहब ने चाबी मंगवा कर खुलवा कर देखना भी चाहा था , लेकिन चाबी न मिल पाने के कारण वह खुल भी नहीं सका था । तब साहब ने दूसरा सवाल पूछा था कि , कोई यहाँ पढ़ने भी आता है या नहीं ?? सभी स्थानीय निवासियों की ख़ामोशी देखकर साहब ( कांशीराम ) खुद ही सब कुछ भांप कर कहा था कि इसे खुला रहने देना बंद नहीं करना , पढ़ने वाले #कांशीराम पैदा कर देगा । आज पैंतीस साल पहले कही साहब की बात बिल्कुल ही सौ फीसदी सही साबित हो गई ।
बड़े बड़े व्याख्याता अपनी कक्षा में में बाबा साहेब को पढ़ाते नज़र आ रहे हैं । लेकिन हमें शिद्दत से ये भी ध्यान रखना होगा कि बाबा साहेब को पढ़ते पढ़ाते कहीं हम साहब ( कांशीराम ) को न भूल जाएं ? क्योंकि इस पढ़ने पढ़ाने के कार्यक्रम में साहब की निर्मित पार्टी बहुजन समाज पार्टी को ही टार्गेट किया जा रहा है । कहा जा रहा है कि बहनजी ने ये कश्मीर पर क्या बयान दे दिया ? बाबा साहेब ने तो फलानी किताब के फलाने सफे की फलानी लाइन में यह कहा है ? एक ओर साहब की आप तारीफों के पुल बांध रहे हो दूसरी ओर साहब की उत्तराधिकारी की आप टांग खिंचाई कर रहे हो ? यह दोहरा मापदंड कहीं न कहीं आपको संदेह के घेरे में खड़ा करने का काम करता है ?
अब दूसरी बात जो आपको पुनः संदेह के घेरे में घेरने का काम करती है । वह यह की अब आप बाबा साहेब को तो खूब पढ़ रहे हो व पढ़ा भी रहे हो यह सब क्यों किया जा रहा है ।
"ये पब्लिक( बहुजन समाज )है सब जानती है।"
वहीं साहब ( कांशीराम ) को बिल्कुल ही नज़रांदाज़ कर रहे हो ? अगर ऐसा न होता तो आपको मालुम होना चाहिए कि साहब ( कांशीराम ) के आरक्षण पर क्या विचार थे ? अगर नहीं मालुम तो मैं अपने विद्यालय से बता रहा हूँ ? जरा गौर फरमाएं , साहब का जो 85/15 का फार्मूला है वह 1931ब्रिटिश पीरियड की जनगणना पर आधारित है । क्योंकि उसके बाद लगभग 90 सालों यानी कि एक सदी बीतने को आई जातिवार जनगणना इस मुल्क में नहीं हुई है ? क्यों नहीं हुई ?? यह भी किसी से छिपा नहीं है ? अंग्रेजों के बाद हुकूमत काले अंग्रेजों के हाथ में आ गई और वह अच्छी तरह से जानते हैं की अब 15 फीसदी वाले इन नब्बे सालों में घटकर 10 फीसदी से भी तादात में कम रह गए हैं और 85 फीसदी वाले इन नब्बे सालों में 90 फीसदी से ज्यादा हो चुके हैं । और बहुजन समाज पार्टी का नारा है कि
जिसकी जितनी संख्या भारी /
उसकी उतनी हिस्सेदारी//
इधर इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार केस के मुताबिक आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा किसी भी सूरत में नहीं होना चाहिए क्योंकि अगर आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा होता है तो फिर वह आरक्षण न होकर भक्षण हो जाएगा ? इधर न्यायालय आरक्षण पर रोक के नए नए तरीके इज़ाद करता है । इसी में एक तरीका है क्रीमीलेयर भी है । इस सब पर साहब ( कांशीराम ) काफी सोच विचार करते थे । साहब का पूरा बहुजन समाज आंदोलन बहुजन समाज तैयार करके सत्ता की चाबी अपने कब्जे में करके माँगने की जगह देने वाला समाज बनाने पर केंद्रित है नकि सामाजिक न्याय माँगने वालों की तरह हमेशा माँगते रहने पर ? जब बहुजन समाज देने की हैसियत में आ जाएगा तो इन 8 - 9 फीसदी वालों को एक दो फीसदी इनकी आबादी से ज्यादा ही, केवल इनके गरीबों को ही क्रीमीलेयर के इनके सिद्धांत को ही लागू करते हुए इनको 10 फ़ीसदी आरक्षण दे कर केवल दस फीसदी तक ही सीमित कर सकता है ।
यह सबहोगा सामाजिक परिवर्तन से नकि सामाजिक न्याय से ? न्याय आपको कोई क्यों देगा भई ? आप कितने हो न्यायालय में ?? इसमें अगर बहनजी 10 फीसदी सवर्ण गरीबों के लिए आरक्षण की वकालत करती हैं तो क्या गलत कर रही हैं ?, वह कहीं न कहीं मान्यवर कांशीराम साहब के सपनों को ही साकार कर रहीं हैं ? और आप झंडा बुलंद किये हो बहनजी के खिलाफ ही , उनके इस 10 फीसदी सामान्य गरीबों के आरक्षण के मुद्दे पर । जबकि आपको झंडा ही बुलंद करना था तो ये करना चाहिए की ये सवर्ण पीढ़ी दर पीढ़ी नौकरपेशा के परिवार वाले ही नौकरियों पर काबिज क्यों हैं ?, अपने गरीब समाज के लिए इन्हें स्वेच्छा से नौकरियां छोड़ देनी चाहिए ? नौकरियां केवल गरीब सवर्णों को ही मिलनी चाहिए ?? साहब ने इन गरीबों के लिए सफाई वालों की नौकरियों के बारे में सोच रखा था । बहनजी के कार्यकाल में उत्तरप्रदेश में ऐसा हुआ भी है और यह दूसरी बात है कि उन सफाई कर्मियों ने कुछ पैसे देकर सफाई वाले दूसरे रख लिए हैं ।
बहुजन समाज अगर अपनी बहुजनों की सरकार बना कर इन 10 फीसदी केवल समान्य गरीबों को ही आरक्षण दे दे, तो बाकी 90 फीसदी बहुजनों के लिए स्वतः ही रह जाता है । लेकिन 10 फीसदी को क्रीमीलेयर के सिद्धांत के साथ केवल 10 तक ही सीमित करना होगा जब तक ये 10 फीसदी से ज्यादा है तब तक इनकी भर्तियों पर कड़ाई से रोक लगाने की भी जरूरत रहेगी । इस तरह इंदिरा साहनी केस की 50 फीसदी की सीमा का कभी भी उल्लंघन नहीं हो सकेगा । लेकिन यह सब आप बहुजनों की सरकार बना कर ही कर सकते हैं और वर्तमान में बहुजन समाज की देश में सबसे बड़ी एकमात्र नेता बहनजी ही नज़र आती है । अतः ऐसे नाजुक मौके पर हर हाल में बहुजन समाज को बहनजी का सहयोग करना चाहिए वरना इतिहास किसी को कभी माफ नहीं करेगा । मुल्क बड़े ही नाज़ुक लम्हें से गुज़र रहा है, कहीं ऐसा न हो -
#लम्हें_ने_खता_की_सदियों_ने_सज़ा_पाई_है😢
आपको मालुम होना चाहिए कि उत्तरप्रदेश में जब बसपा सपा गठबंधन की सरकार हुआ करती थी तो दक्षिण भारत के कोई पंडित जी सुब्रमण्यम करके प्रमुख सचिव हुआ करते थे । साहब ने श्री मुलायम सिंह जी से कहा था कि बहुजनों की सरकार में ब्राह्मण प्रमुख सचिव का क्या काम , एक पखवाड़े में ही केंद्र से बहुजन श्री माताप्रसाद जी को लाकर के प्रमुख सचिव नियुक्त किया जाता है । यह देखकर तमाम आईएएस उत्तरप्रदेश से दिल्ली यानी कि केंद्र में जाने लगे थे। इस पर साहब ( कांशीराम ) की प्रतिक्रिया थी कि कल को हम केंद्र में भी आने वाले हैं तब आप लोग कहाँ जाओगे ? और आपकी जानकारी के लिए बताता चलूँ यही वह मायावती मुलायम का दौर था जिसमें कि तमाम सवर्ण आईएएस ने अपने नाम के आगे से जाति सूचक पूँछ भी गायब करना शुरू कर दिया था और मिडिया को ये सब जातिवादी राजनीति दिखाई देने लगी थी यानी कि पहली बार मुल्क में जाति के नाम पर लाभान्वित लोग नुकसान उठाने की स्थिति में पहुचें थे । इसी सब कांशीराम के #बहुजन शब्द से घबराकर मूलनिवासी दलित जमात वंचित इत्यादि शब्दों की भरमार हुई है ?
ऐसा आत्मविश्वास था हमारे साहब ( कांशीराम ) का और एक आप है की बहनजी के 10 फीसदी गरीब सामान्य वर्ग के आरक्षण की वकालत का मतलब भी नहीं समझ पा रहे हैं ? बहनजी को सहयोग करने की जगह विरोध कर रहे हो ? आप अपनी जगह ठीक हो सकते हो क्योंकि आपने तो सामाजिक न्याय की पढ़ाई पढ़ी है , सामाजिक परिवर्तन से तो आपका दूर दूर का रिश्ता भी नहीं रहा है ?
कांशीराम साहब एक बात और कहते थे कि -
मांगे से कोई तुम्हें कोई राज न देवे ।
जो कुछ लो, अपने निज बल से लेवे ।।
जनाब श्री सादिक नवाज़ साहब भी बड़ी ही शर्मिदगी महसूस कर रहे थे ज्यादा भीड़ न इक्कट्ठा कर पाने के लिए, क्योंकि सादिक साहब ( वक्ता गजब के थे ) जब भाषण देते थे तो लाखों की भीड़ में भी पिन ड्राप साइलेंस ( एकदम खामोशी छा जाना ) हो जाती थी लेकिन फरुखाबाद में कहीं भी हमें कोई भीड़ भाड़ नहीं मिली जबकि हमलोग चार या पाँच जगह मीटिंग के लिए गए थे । इसी बीच जनाब श्री सादिक नवाज़ जी हमलोगों को एक बहुजन ( जाटवों ) की बस्ती में ले जाते हैं वहाँ कुछ और जगहों की अपेक्षा कुछ ज्यादा लोग मिलते हैं । वहाँ साहब को एक "अम्बेडकर वाचनालय एवं पुस्तकालय" दिखाया जाता है । वह बड़ा ही जीर्ण शीर्ण अवस्था में अपने हालत आप ही बायां कर रहा था । उसका बोर्ड जिस पर अंबेडकर वाचनालय एवं पुस्तकालय लिखा हुआ था । टेढ़ा लटक रहा था लिखावट लगभग मिटने के कगार पर थी । दरवाजों पर मकड़ियों ने जाले बना रखे थे जिनसे साफ पता चल रहा था की वह पुस्तकालय शायद ही कभी खुलता भी होगा ? साहब ने वहाँ के निवासियों से यह सब हालात देखकर जो सबसे पहला सवाल पूछा था वह यह था कि यह "अम्बेडकर वाचनालय एवं पुस्तकालय" कभी खुलता भी है ? या यूँही बंद ही रहता है साहब ने चाबी मंगवा कर खुलवा कर देखना भी चाहा था , लेकिन चाबी न मिल पाने के कारण वह खुल भी नहीं सका था । तब साहब ने दूसरा सवाल पूछा था कि , कोई यहाँ पढ़ने भी आता है या नहीं ?? सभी स्थानीय निवासियों की ख़ामोशी देखकर साहब ( कांशीराम ) खुद ही सब कुछ भांप कर कहा था कि इसे खुला रहने देना बंद नहीं करना , पढ़ने वाले #कांशीराम पैदा कर देगा । आज पैंतीस साल पहले कही साहब की बात बिल्कुल ही सौ फीसदी सही साबित हो गई ।
बड़े बड़े व्याख्याता अपनी कक्षा में में बाबा साहेब को पढ़ाते नज़र आ रहे हैं । लेकिन हमें शिद्दत से ये भी ध्यान रखना होगा कि बाबा साहेब को पढ़ते पढ़ाते कहीं हम साहब ( कांशीराम ) को न भूल जाएं ? क्योंकि इस पढ़ने पढ़ाने के कार्यक्रम में साहब की निर्मित पार्टी बहुजन समाज पार्टी को ही टार्गेट किया जा रहा है । कहा जा रहा है कि बहनजी ने ये कश्मीर पर क्या बयान दे दिया ? बाबा साहेब ने तो फलानी किताब के फलाने सफे की फलानी लाइन में यह कहा है ? एक ओर साहब की आप तारीफों के पुल बांध रहे हो दूसरी ओर साहब की उत्तराधिकारी की आप टांग खिंचाई कर रहे हो ? यह दोहरा मापदंड कहीं न कहीं आपको संदेह के घेरे में खड़ा करने का काम करता है ?
अब दूसरी बात जो आपको पुनः संदेह के घेरे में घेरने का काम करती है । वह यह की अब आप बाबा साहेब को तो खूब पढ़ रहे हो व पढ़ा भी रहे हो यह सब क्यों किया जा रहा है ।
"ये पब्लिक( बहुजन समाज )है सब जानती है।"
वहीं साहब ( कांशीराम ) को बिल्कुल ही नज़रांदाज़ कर रहे हो ? अगर ऐसा न होता तो आपको मालुम होना चाहिए कि साहब ( कांशीराम ) के आरक्षण पर क्या विचार थे ? अगर नहीं मालुम तो मैं अपने विद्यालय से बता रहा हूँ ? जरा गौर फरमाएं , साहब का जो 85/15 का फार्मूला है वह 1931ब्रिटिश पीरियड की जनगणना पर आधारित है । क्योंकि उसके बाद लगभग 90 सालों यानी कि एक सदी बीतने को आई जातिवार जनगणना इस मुल्क में नहीं हुई है ? क्यों नहीं हुई ?? यह भी किसी से छिपा नहीं है ? अंग्रेजों के बाद हुकूमत काले अंग्रेजों के हाथ में आ गई और वह अच्छी तरह से जानते हैं की अब 15 फीसदी वाले इन नब्बे सालों में घटकर 10 फीसदी से भी तादात में कम रह गए हैं और 85 फीसदी वाले इन नब्बे सालों में 90 फीसदी से ज्यादा हो चुके हैं । और बहुजन समाज पार्टी का नारा है कि
जिसकी जितनी संख्या भारी /
उसकी उतनी हिस्सेदारी//
इधर इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार केस के मुताबिक आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा किसी भी सूरत में नहीं होना चाहिए क्योंकि अगर आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा होता है तो फिर वह आरक्षण न होकर भक्षण हो जाएगा ? इधर न्यायालय आरक्षण पर रोक के नए नए तरीके इज़ाद करता है । इसी में एक तरीका है क्रीमीलेयर भी है । इस सब पर साहब ( कांशीराम ) काफी सोच विचार करते थे । साहब का पूरा बहुजन समाज आंदोलन बहुजन समाज तैयार करके सत्ता की चाबी अपने कब्जे में करके माँगने की जगह देने वाला समाज बनाने पर केंद्रित है नकि सामाजिक न्याय माँगने वालों की तरह हमेशा माँगते रहने पर ? जब बहुजन समाज देने की हैसियत में आ जाएगा तो इन 8 - 9 फीसदी वालों को एक दो फीसदी इनकी आबादी से ज्यादा ही, केवल इनके गरीबों को ही क्रीमीलेयर के इनके सिद्धांत को ही लागू करते हुए इनको 10 फ़ीसदी आरक्षण दे कर केवल दस फीसदी तक ही सीमित कर सकता है ।
यह सबहोगा सामाजिक परिवर्तन से नकि सामाजिक न्याय से ? न्याय आपको कोई क्यों देगा भई ? आप कितने हो न्यायालय में ?? इसमें अगर बहनजी 10 फीसदी सवर्ण गरीबों के लिए आरक्षण की वकालत करती हैं तो क्या गलत कर रही हैं ?, वह कहीं न कहीं मान्यवर कांशीराम साहब के सपनों को ही साकार कर रहीं हैं ? और आप झंडा बुलंद किये हो बहनजी के खिलाफ ही , उनके इस 10 फीसदी सामान्य गरीबों के आरक्षण के मुद्दे पर । जबकि आपको झंडा ही बुलंद करना था तो ये करना चाहिए की ये सवर्ण पीढ़ी दर पीढ़ी नौकरपेशा के परिवार वाले ही नौकरियों पर काबिज क्यों हैं ?, अपने गरीब समाज के लिए इन्हें स्वेच्छा से नौकरियां छोड़ देनी चाहिए ? नौकरियां केवल गरीब सवर्णों को ही मिलनी चाहिए ?? साहब ने इन गरीबों के लिए सफाई वालों की नौकरियों के बारे में सोच रखा था । बहनजी के कार्यकाल में उत्तरप्रदेश में ऐसा हुआ भी है और यह दूसरी बात है कि उन सफाई कर्मियों ने कुछ पैसे देकर सफाई वाले दूसरे रख लिए हैं ।
बहुजन समाज अगर अपनी बहुजनों की सरकार बना कर इन 10 फीसदी केवल समान्य गरीबों को ही आरक्षण दे दे, तो बाकी 90 फीसदी बहुजनों के लिए स्वतः ही रह जाता है । लेकिन 10 फीसदी को क्रीमीलेयर के सिद्धांत के साथ केवल 10 तक ही सीमित करना होगा जब तक ये 10 फीसदी से ज्यादा है तब तक इनकी भर्तियों पर कड़ाई से रोक लगाने की भी जरूरत रहेगी । इस तरह इंदिरा साहनी केस की 50 फीसदी की सीमा का कभी भी उल्लंघन नहीं हो सकेगा । लेकिन यह सब आप बहुजनों की सरकार बना कर ही कर सकते हैं और वर्तमान में बहुजन समाज की देश में सबसे बड़ी एकमात्र नेता बहनजी ही नज़र आती है । अतः ऐसे नाजुक मौके पर हर हाल में बहुजन समाज को बहनजी का सहयोग करना चाहिए वरना इतिहास किसी को कभी माफ नहीं करेगा । मुल्क बड़े ही नाज़ुक लम्हें से गुज़र रहा है, कहीं ऐसा न हो -
#लम्हें_ने_खता_की_सदियों_ने_सज़ा_पाई_है😢
आपको मालुम होना चाहिए कि उत्तरप्रदेश में जब बसपा सपा गठबंधन की सरकार हुआ करती थी तो दक्षिण भारत के कोई पंडित जी सुब्रमण्यम करके प्रमुख सचिव हुआ करते थे । साहब ने श्री मुलायम सिंह जी से कहा था कि बहुजनों की सरकार में ब्राह्मण प्रमुख सचिव का क्या काम , एक पखवाड़े में ही केंद्र से बहुजन श्री माताप्रसाद जी को लाकर के प्रमुख सचिव नियुक्त किया जाता है । यह देखकर तमाम आईएएस उत्तरप्रदेश से दिल्ली यानी कि केंद्र में जाने लगे थे। इस पर साहब ( कांशीराम ) की प्रतिक्रिया थी कि कल को हम केंद्र में भी आने वाले हैं तब आप लोग कहाँ जाओगे ? और आपकी जानकारी के लिए बताता चलूँ यही वह मायावती मुलायम का दौर था जिसमें कि तमाम सवर्ण आईएएस ने अपने नाम के आगे से जाति सूचक पूँछ भी गायब करना शुरू कर दिया था और मिडिया को ये सब जातिवादी राजनीति दिखाई देने लगी थी यानी कि पहली बार मुल्क में जाति के नाम पर लाभान्वित लोग नुकसान उठाने की स्थिति में पहुचें थे । इसी सब कांशीराम के #बहुजन शब्द से घबराकर मूलनिवासी दलित जमात वंचित इत्यादि शब्दों की भरमार हुई है ?
ऐसा आत्मविश्वास था हमारे साहब ( कांशीराम ) का और एक आप है की बहनजी के 10 फीसदी गरीब सामान्य वर्ग के आरक्षण की वकालत का मतलब भी नहीं समझ पा रहे हैं ? बहनजी को सहयोग करने की जगह विरोध कर रहे हो ? आप अपनी जगह ठीक हो सकते हो क्योंकि आपने तो सामाजिक न्याय की पढ़ाई पढ़ी है , सामाजिक परिवर्तन से तो आपका दूर दूर का रिश्ता भी नहीं रहा है ?
कांशीराम साहब एक बात और कहते थे कि -
मांगे से कोई तुम्हें कोई राज न देवे ।
जो कुछ लो, अपने निज बल से लेवे ।।
जून 2017 का एक वाक्या है साहब की 1985 में फरुखाबाद में कही बात के 32 साल बाद का, वह साहब की उस बात पर मोहर लगा रहे हैं जो बात साहब ने अब से 35 साल पहले मेरे द्वारा इस साहब की फ़ोटो खीचनें वाले दिन फरुखाबाद में "अंबेडकर वाचनालय एवं पुस्तकालय" के सामने कही थी कि इसे खोले रखना पढ़ने लिखने वाले कांशीराम पैदा कर देगा । सोचिए कितना आत्मविश्वास था साहब में।
आज की बात बस यहीं तक, इस सोच के साथ की हमारे बुद्धजीवी वर्ग में बहनजी के प्रति साहब की तरह का आत्मविश्वास पैदा होगा...
जयभीम नमोबुद्धाय 💐.
आभार
#Sobran_Singh
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
if you have any doubts, please let me know.