संत शिरोमणि गुरू रविदास जी महाराज - एक क्रांतिकारी भिक्षु


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1. वैखरी
2 . मध्यमा
3. पशयन्ति
4. परा


संतो  की चार प्रकार की बाणी होती है। परा, पश्यन्ती ,मघ्यमा और वैखरी।


वैखरी बाणी जिनमें आम बातें बताई जाती है उन्हें आप चेतावनी भी कह सकते हैं ।इसमे शब्द न होकर अक्षर होते हैं।और जब शब्द ,अक्षर में बदलते है तो इन्द्रियों का प्रसार बढ़ जाता है। इसकी अवस्था जाग्रत होती है मगर ज्ञान बगैर यह बाणी और अवस्था दोनो भरम में रहती हैं।

मध्यमा बानी के शब्द कंठ तक होते है अवस्था स्वपन सी होती हैं। मिथ्या स्वपन आते हैं। दुख और दुख को ज्यादा मानने  व करुणा प्रज्ञा न होने से भरम स्थिति होने की वजह ज्ञान रहित बाणी है।

पश्यंती बाणी में शब्द ह्रदय तक पहुचते है और इसकी अवस्था सुखोपति होती है। मनुष्य गलत, ठीक का आंकलन कर सकता है। वह शीलवान और चेतन मानव हो जाता है मगर पूर्ण मुक्त नही हो सकता।

परा की बाणी शब्द ही रहतीं हैं अक्षर नही बनती तथा नाद प्रकट करती है। भरम और तृष्णा को खत्म करती है। इसमें चेतन चिंतन की अवस्था होती है जिसे तुरिया कहते हैं  पर हमें आने के बाद तुरिया अवस्था में जिव से हंस हो जाता है विवेकशील होकर के पारख बन जाता है और मैं (सवयं) प्रज्ञावान , शीलवान,बैरागी होकर के भवसागर से पार हो जाता है और परा की बाणी  में इतिहास पाया जाता है ।

परा की बाणी धूर ( बुद्ध ) की बाणी होती है। क्रन्तिकारी संत शिरोमणि गुरु रविदास जी महाराज की अमृत विचारों का कुछ संग्रह आचार्य धर्मवीर सौराण जी द्वारा उपलब्ध करवाया गया है और आम जन मानस के लिए इनकी व्याख्या की है

                                 शील सम्पदा छीन कै, शरमण किऐ बेकार !
रैदास मनु में रम रहे,कौन करै उद्धार !!

सतगुरु रैदास महाराज  जी दुखी होकर फरमाते हैं कि हमारे लोगों का अर्थात गरीबों का सब कुछ छीन लिया , बौद्धों के पंचशील,धन सम्पति छीन कर उनको बेकार कर दिया है गुरु जी कहते हैं कि सभी मनुवाद,पाखंडवाद मे उलझा दिये गये इनका कैसे उद्धार होगा ? उठो मनुवाद को समझो यही आपकी गुलामी का मुख्य कारण है !

                               पराधीन   का  दीन   क्या, पराधीन  बेदीन !
रैदास दास पराधीन को,सब ही समझैं हीन !!

सतगुरु रैदास जी फरमाते हैं कि गुलाम का कोई धर्म नहीं होता गुलाम को तो सभी हीन,नीच ही समझते हैं !दूसरे के अधीन लोग अपने मालिक के आदेश का ही पालन करते हैं उनकी खुद की कभी इज्जत नहीं होती ! उठो इन जंजीरों को काट डालों और आज़ाद होकर जीओ !

 
                                             

                          नरपति एक सिंहासन सोया, सपने भया भिखारी ।

अछूत, राज बिछड़े ,दुख पाया ,सोई दशा भई हमारी ।।

                           ऐसा चाहूं राज मैं,जहां मिले सबन को अन्न !
छोट-बड़ो सब सम  बसैं,रैदास रहे प्रसन्न !!


एक राजा अपने सिंहासन पर बैठा था और  बैठे-बैठे वह सिंहासन पर ही सो गया । उसी  समय उसे सपना आया जैसे उसका राजपाट चला गया है और वह भिखारी हो गया और जब उसकी आंख खुली तो वह बहुत जोर जोर से रोने लगा ।तो गुरु जी बताते हैं कि देखो उस राजा की हालत ,उसका सपने में राज गया तो,  वह भिखारी बन गया, कितना रोया ?
अछूतों का राज तो सचमुच में चला गया और अछूत राज बिछड़े दुख पाया मतलब ,अछूतों का राज चला गया, इसलिए दुख पाया इसलिए हमारी यह दशा हो गई !
सतगुरु रैदास जी फरमाते हैं कि मैं ऐसे राज की कामना करता हूं जहां सबको खानपान को मिले अर्थात कोई भूखा ना  रहे ,न कोई छोटा हो न कोई बडा हो अर्थात समता,समानता,भाईचारा हो तभी मुझे खुशी होगी !


                          घर्म राज की नींव है,राज धर्म शमशीर !
पहल कबीरा राज को,धर्म ध्वज प्राचीर !!

कबीर साहेब फरमाते हैं घर्म राज की नींव होती है राज प्राप्त करके धर्म की रक्षा की जाती है कबीर साहेब कहते हैं पहले अपना राज कायम कर लो फिर आपके धर्म की ध्वजा सबसे ऊंची ईमारत पर लहराऐगी !
जिस प्रकार बीजेपी ने हिन्दू हिन्दू करके या हिन्दुओं को मुसलमानों का डर दिखा कर या यों कहो पिछडों को धर्म का कैपसूल खिलाकर राज पर कब्जा कर लिया और सिर्फ सामान्य वर्ग या पूंजीपतियों को छोड़कर किसी को कुछ दिया हो तो बताएं ? बल्कि मजदूर,किसान व छोटे व्यापारी को तो बर्बाद ही कर दिया !

                            रैदास मनुष करी बसन कूं,सुख कर है दुई ठाँव !
एक   सुख   स्वराज   मही,  दुसर  मरघट गाँव !!

सतगुरु रैदास महाराज फरमाते हैं कि इस संसार में मनुष्य के लिए सिर्फ दो जगह सुख है एक अपने स्वराज में और दुसरा मरने के बाद कोई दु:ख रहता ही नहीं !
इसलिए अगर आप लोग सुख-समृधी और मान सम्मान की ज़िन्दगी जीना चाहते हो तो अपना राज स्थापित करने के लिए हर संभव प्रयास करें और बहुजन समाज पार्टी को मजबूत करें 

                             जन्म    के   कारणे ,     होत    न   कोई   नीच !
 तो कू नीच करि डारी है ! ओछे कर्म की कीच !!

 गुरु रविदास जी गरीबों को सम्बोधित करते हुए समझा रहें हैं कि जन्म के कारण कोई नीच नहीं होता, जन्म के समय सब एक समान होते है इंसान जैसे कर्म करता है वैसे ही उसका भविष्य निर्माण हो जाता है ! गलत कर्म नहीं करने चाहिए जिससे आपका समाज में अपमान हो अर्थात सब कुछ कर्म पर निर्धारित है अच्छे कर्म करें ,नीच कर्मो से दुरी बनाए रखें ! साधू साधू साधू 

                               रविदास ब्रहामण मत पुजिये जो होवे गुण प्रवीण
पुजिये  चरण  चंडाल  के  जो  होवे  गुण  हीन


                                हर सु हीरा छाड़ के, करें गैर की आश।
ते नर दोजख जाएंगे, सत भाखै रविदास


गुरु रविदास जी मानवाधिकार से वंचित लोगों को सम्बोधित करते हुए समझा रहे है  जो व्यक्ति (हर ) स्वयम पर भरोसा ना करके, किसी और के आने का इंतजार करता है ऐसे लोगों का जीवन नर्क के समान गुजरेगा । जीवन में अपनी मदद खुद करनी चाहिए अपने लिए रास्ते खुद तैयार करने की जरूरत है !

                                 सतयुग सुने द्वापर बोले,  तरेत् का है सकल पसारा।।
 कलयुग में दीदार निरखियो, नेक लंक शाह नजारा।।


 इसमें गुरु जी फरमाते हैं कि सतयुग में हम सिर्फ सुनते थे हमें बोलने का अधिकार नहीं था मगर संघर्ष जारी था ।  द्वापर में हमने बोलना शुरु कर दिया हमारा कत्लेआम मचा मगर हम बोलते गए। हमारा संघर्ष जारी था । हमारा चारों तरफ प्रचार हो गया ।हमारे बड़े बड़े आश्रम बने ।बड़े-बड़े बौद्ध मठ बने। हमारे शंभूक महान ऋषि का कत्ल कर दिया गया फिर भी संघर्ष जारी था।अब मैं चेतावनी देकर कह रहा हूं कि कलयुग में ऐसा नजारा आएगा जिसमें हमारा साम्राज्य होगा और एक लंका जैसे अनेक राज्यों में हमारा राज होगा।

                           सांच शील तहाँ सतयुग होइ। द्वापर गयान करुणा सोई ।
त्रेता है त्रिवेणी धाम और कलयुग करे सब की पहचान ।।


फिर से  गुरु जी  चारो युगों के बारे में फरमाते हैं की जहां पर शील है अर्थात पंचशील है  ।सच्चाई है और  जहां शील है यानी बुद्धो की शील है पंचशील है। उसे हम सतयुग मान सकते हैं जहां पर ग्यान और करुणा का भाव है हम उसे द्वापर कह सकते हैं।जहां पर त्रिशरण का पालन होता है हम उसे त्रेता कह सकते हैं । मैं बताना चाहता हूं कि कलयुग के अंदर हम अपने एक एक दोस्त और दुश्मन को पहचान लेंगे यानी कलयुग में किसी की मनमानी नहीं चलेगी

                           हर हर करके हीरा परख ले ,समझ पकड़ नर मजबूती ।
अष्टकमल पर आओ मेरे अवधू ,और वार्ता सब झूठी।।


 गोरख के शिष्य , जिसका नाम कंनप्पा नाथ था और वह अलख की बात करते हैं , तो गुरु रविदास  जी कहते हैं कि हर-हर करके हीरा पकड़ ले , हर-हर का अर्थ है अत्त दीपो भव यानी बुद्ध की शिक्षा पकड़ ले  मतलब बहुत ऊंची ज्ञान की बात कर और समझ पकड़ नर मजबूती, अपनी बुद्धि को शक्ति से पकड़ ले , यानी बुद्धि पर टिक जा और मेरे से अगर बात करनी है तो अष्ट कमल यानी अष्टांगिक मार्ग पर आ कर बात करते हैं । नहीं तो सारी की सारी वार्ता आवधू झूठी है

                          ऐसी लाल तुझ बिन कउन करे ।
                           गरीब निवाज गुसईया मेरा ,माथे छत्र धरै।
 जा की छोती जगत कउ लागै, ता पे तुही धरै।
 नीचे से ऊंचे करें मेरा गोविंद काहु तेना डरे ।
                            नामदेव कबीर त्रिलोचन सधना सैन तरै।
                            कह रविदास सुनो रे संतो ,हरि जीव तै सभी सरै।


अर्थात  सतगुरु रविदास जी फरमाते हैं की हे  हरि(खुद) तुम बिन मेरी ऐसी लाज कौन रख सकता है जो तुमने मेरे सिर पर इज्जत का ताज रख दिया है  गरीबों के मसीहा आप ने मेरे माथे पर छत्र धर दिया यानि  मुझे स्वाभिमान  आत्मसम्मान दिया ।मुझे इतनी इज्जत बख्श दी जिस व्यक्ति की जाति इतनी छोटी थी जिस के नजदीक जगत के लोग नहीं आते थे आपने उसी पर कृपा की मुझ नीच व्यक्ति को आपने उच्चा कर किया। और अब मुझे किसी से डर नहीं लगता। आपकी वजह से नामदेव कबीर त्रिलोचन साधना और सैन का कल्याण हो गया कह रविदास संतो सुनो हरि के बगैर( अत्त दीपो भव)  हमारा काम नहीं चल सकता

                                हम बड़, कवि कुलीन ,हम पंडित ,हम जोगी सन्यासी ।
                                ज्ञानी, गुनी, सुर ,हम दाते ,इह बुद्धि कबउ ना नासी।
कह रविदास सभी नहीं समझी , भूल पड़े जैसे बऊरे ।
मोहि आधारु नाम नारायण ,जीवन प्राण धन मोरे

सतगुरु रविदास जी यहां अपने खोए हुए राज पाठ को पाने के लिए बात कर रहे हैं वो कहते हैं कि 
हम लोग बहुत बड़े ही महान हैं। इस देश के उच्चे कुल के लोग भी हम हैं और  हम पंडित हैं यानी विद्वान हैं ।योग साधना को भी हमने ढूंढा है सन्यास भी हमने ही दिया है ।हम प्रज्ञा वान लोग हैं ।हम गुणी है ।हम सूरमा है हम ही दानवीर हैं ।इतिहास उठा कर के देख लो यह सब हम ही है और खास बात यह है कि हमने बुद्धि यानी शिक्षा का साथ नहीं छोड़ा है हमने बुद्धि का नाश नहीं किया है हमे सब कुछ याद है।रविदास जी कह रहे हैं जैसे मैं समझा रहा हूं कोई और नहीं समझाएगा,क्योंकि हमारे लोग मदहोश ( बऊरे) हो कर अपना इतिहास भूल बैठे हैं  मेरे नाम को उतारने वाले यानी मेरे इतिहास को बताने वाले ही मेरे जीवन के  प्राण प्यारे हैं

                                बेहद ब्रह्म बिचारा रे साधो,बेहद ब्रह्म बिचारा ।
ब्रह्म लखै बिन भरम ना भाजै, समझावे गुरु म्हारा ।।

गुरु सैन जी महाराज  समझा रहे हैं की भरम चारों तरफ फैला हुआ है उसको विचारना होगा यानी समझना होगा बगैर ब्रह्म को समझे इंसान का भरम नहीं भागता है यानी ब्रह्म ही ब्राह्मण का ब्रह्मजाल है।                                

                              जागृत अवस्था नैन में वसा इंद्री किया पसारा ।।
रूप देखकर खुद नै भूला, यू छाया अंधियारा ।।

 जब इंसान जाग रहा होता है तो जीव का प्रभाव उसकी आंखों में होता है और उसकी सभी इंद्रियों सक्रिय हो जाती है वह व्यभिचार की तरफ बढ़ जाता है वह अपने और परायो के रूप  को देखकर बड़ा लालायित होता है इसलिए उसके पास प्रकाश नहीं होता वह अंधकार में होता है

                                             शब्द, स्पर्श, रूप, रस ,गंध चित् मन बुद्धि,अंहकारा ।।
इनके रस में लीन हुआ ,फिर मिला गरभ अवतारा ।।

बचपन मे जब नवजात बच्चा होता है तो वह सिर्फ शब्द समझता है आंखें बंद होती है उससे कौन बोल रहा है आवाज की तरफ वह आकर्षित होता है थोड़ा सा बड़ा होता है तो स्पर्श को समझता है ।उसे कौन छू रहा है अपना है पराया है अपनी मां के स्पर्श को पहचान जाता है थोड़ा सा और बड़ा होता है तो वो रूप शक्ल सूरत को पहचानना शुरू कर देता है यह क्या चीज है यह खाना है यह चम्मच है यह कुत्ता है यह बिल्ली है ये माँ है। आदि जब उससे भी बड़ा होता है तो फिर रस लेने लग जाता है।उसे स्वाद का पता लग जाता है वह शारीरिक मानसिक और बौद्धिक तरह के रस लेने शुरू कर देता है ।उससे जब बड़ा होता है तो उसके अंदर गंध यानी की आकर्षित होने की प्रवृत्ति प्रबल हो जाती है उससे बड़ा जब होता है तो उसकी चेतना काम शुरू करते हैं उसका चित् चेतन हो जाता है जब चेतन होता है तो उसके मन में विचार प्रकट होने शुरू होते हैं तो बुद्धि का प्रयोग करता है और जब बुद्धि पैदा होती है तो उसमें अहंकार पैदा हो जाता है। मगर वह उन्ही में लीन हो जाता है इन से आगे नहीं बढ़ता है इसलिए फिर से गर्भ अवतारा मिलता है गर्भ अवतार का मतलब यह होता है कि वह कभी हिंदू बनता है कभी मुसलमान बनता है कभी राधास्वामी बनता है कभी साई का भगत बनता है तो कभी भक्त बनता है कभी ग्रेट चमार बनता है तो कभी कुछ बनता है वह अपने रूप बदलता रहता है इसलिए वह सही बात से बड़ा दूर रहता है।

                                            स्वपन अवस्था कंठ में रहता दुख-सुख बरतें भारा।।
 नौ तत्व का बना अखाड़ा ,जीव वहां भरमारा।।

जब इंसान सपने में होता सपने में भी बड़े दुख महसूस करता है उसे नौ तत्वों से बने हुए तरह-तरह के सपने आते हैं कभी वह रात को रो रहा है। कभी कोई उसका मर गया है या वह डूब रहा है कभी उसके पीछे कोई सांप लगा हुआ है और सपने में भी वह कभी बहुत सुखी होता है कभी बहुत दुखी होता है इसलिए जीव भ्रम की स्थिति में रहता है।

                                                          सुखोंपति का भेद बताउ, हरदे बीच समारा।।
 पिंड ब्रह्मांड में मिले पर प्राणा , ता में सिर्ज़नहारा ।।

पूर्ण सुख की  नींद में सोते हुए मनुष्य के जीव की प्रधानता हृदय में होती है पिंड और ब्रह्मांड यानी अंदर और बाहर उसके विचार एक जैसे होते हैं और वह नव निर्माण की बातें सोचता है

                                                  तुरिया अवस्था बना बैरागी ,सतगुरु नाम अधारा ।।
जिसने सैन लखी सोई पूरा ,भवसागर किया पारा।।

जब व्यक्ति चिंतन की अवस्था में होता है तो वह बैरागी यानी रागों से मुक्त हो जाता है उसमें वह भरम भय और तृष्णा को खत्म होकर के चेतन चिंतन बन जाता है  इसमें जीव ,हंस के रूप में बदल जाता है वह विवेकशील यानी चरित्रवान बुद्धि वाला हो जाता है  वह प्रज्ञावान शीलवान वैरागी हो करके भवसागर से पार हो जाता है उसमें उसका आधार उसका सतगुरु होता है इसलिए साइन साहब कहते हैं कि जिसने सैन को समझ लिया यानी इशारे को समझ लिया , वह मुक्त है                                         

                                                    फल कारण फुले बनवाय, उपजे फल तब पहप बिलाय।
 जानि कारण करम कराय, उपजे ज्ञान तो करम नसाय।।

ये ऊपर लिख लाइन गुरु ग्रंथ साहिब से ली गई है। जिसके अर्थ को जानने पर बता चलता है कि गुरु रविदास जी , बुद्ध की बात कह रहे हैं। इसका अर्थ है
फल लगने थे इसलिए पूरे जंगल में फूल आ गए यानी  फलों के कारण फूल आए और जब फल आए तो फूल गायब हो गए । ठीक उसी प्रकार से कारण की वजह से कर्म होते हैं कारण के बगैर कुछ नहीं होता और जब मनुष्य को अपना ज्ञान ( प्रज्ञा) मिल जाता है जब वह प्रज्ञावान हो जाता है और उसके कर्म गायब हो जाते हैं यानी वह गलत काम कर हि नही सकता।
असल में सन्तो की बाणी समझना थोड़े लिखे को ज्यादा समझना। बुद्ध ने कारण की खोज करके कहा कि दुनिया की हर बात, हर घटना,  हर त्रासदी , हर शोषण, हर पत्तन, हर उत्थान के लिये कारण जिम्मेदार है

                                             मैं हि हरि  अउर हरि भी मेरा ,भरम हटे तबहु ब्रह्म सवेरा ।
रविदास ब्रह्म ,भर्म का घेरा,  अंतर उजास नसे अंधेरा।।

 आप जानते हैं कि हरी बुद्ध को कहते हैं गुरु रविदास जी कह रहे हैं कि मैं खुद हरि हूं और हरि भी मेरा है ।जब ब्रह्म हटता है तब एक अलग सुबह निकलती है रविदास जी कह रहे हैं कि जिसे लोग ब्रह्म समझते हैं असल में वह ही भरम का घेरा है ।जो व्यक्ति इस धर्म के चक्कर से निकल जाता है उसके अंदर बहार का अंधेरा नष्ट हो जाता है।

                                                रविदास तू कावच फली ,तुझे ना छीजै कोय।
 मैं निजनाम ना जानिया ,भला कहाँ तै होय। 


गुरु रविदास जी खुद को कहते है कि
रविदास तू कावच की फली बन जा, फिर तुझे कोई नही छीलेगा। (क्योकि कावच को छूने से सारे बदन में खुजली हो जाती है) मैने निजनाम यानी अपना इतिहास तो जाना नही, इसलिए मेरा कल्याण नही हो सकता।

महान क्रन्तिकारी संत शिरोमणि गुरु रविदास जी महाराज ने गरीब लोगों के लिए संघर्ष किया और कल्पना की एक बेग़ुम पूरा शहर बसाने की जिसमे दुःख न हो ऊंच नीच न हो ! बाबा साहेब डॉ आंबेडकर जी ने सबको अधिकार दिए और कहा की सामजिक और आर्थिक गैर बराबरी को ख़त्म किये बिना बेग़म पूरा अर्थात भारत एक महान राष्ट्र नहीं बन सकता आइए हम सब मिलकर मनुवाद को खत्म करके अपने परिवार मे खुशहाली व् बुद्धि का विकास करें !

जय गुरु रविदास जी महाराज

टिप्पणियाँ

  1. सभी महापुरुषों को कोटी कोटी नमन,आचार्य धर्मबीर शोरण जी को बारम्बार प्रणाम आपकी वजय से बहुजन समाज का इतिहास हमे जानने को मिला।

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  2. Thank-you for this information this will be help to rise new bahujan generation

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