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अछूत राज बिछुड़े दुख पाइया, सो गति भई हमारी - गुरु रविदास जी महाराज

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नरपति एक सिंहासन सोया,  सुपने भया भिखारी। अछूत राज बिछुड़े दुख पाइया,  सो गति भई हमारी ।।  उपरोक्त दोहे में सतगुरु, संत ,महानायक रविदास जी एक उदाहरण के साथ बड़ा संदेश दे रहे हैं तथा दुखों को समूल खत्म करने का तरीका बता रहे हैं । इस दोहे में सतगुरु जी देश के बहुजनों के दुखों का कारण बता रहे हैं ,जैसा कि बुद्ध ने बताया था कि दुनिया में दुख है ,दुख का कारण है ,कारण को जानकर दुखों का निवारण किया जा सकता है ,बगैर कारण जाने किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता । अतः सतगुरु रविदास जी बहुजनों के दुखों का कारण और निवारण बता रहे हैं ।  सतगुरु रविदास महाराज जी कहते हैं कि एक राजा सिंहासन पर सोया हुआ था वैसे सिंहासन सोने के लिए जगह नहीं होता। मगर वह राजा था।  राज सिंहासन पर बैठा था और नींद आ गई। नींद में सपना आया कि उसका राज पाट दुश्मन ने छीन लिया है और वह दर बदर की ठोकरें खाता फिर रहा है और भिखारी का जीवन जी रहा है।  वह जोर-जोर से रो करके हड़बड़ा कर के उठ गया । सभी सभासदों ने रोने का कारण पूछा तो राजा और जोर जोर से रोने लगा और बोला कि मेरे सपने में मेरा राज पाठ किसी ने मुझसे छीन लिया। मैं भिखारी

ऐसा चाहू राज मैं,जहां मिले सबन को अन्न।

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Guru Ravidas ji  ऐसा चाहू राज मैं,जहां मिले सबन को अन्न। छोट-बड़ सब सम बसै,रविदास रहे प्रसन्न।।  व्याख्या संतो के ज्ञान को खाली दार्शनिकता तक ही सीमित रखना ग़लत है । यह समाज के बड़े चिंतक और मार्ग दाता भी थे। संतजन राज पाट की कामना भी करते थे । कहते थे कि आप का अपना  राज होना चाहिए , ताकि अपने प्राचीन धम्म को सलामत रखा जा सके।  सभी वर्गों के लोगों को , बगैर भेदभाव से,  समान अधिकार हासिल हो । उनको सलामत रखने के लिए राजसत्ता का होना निहायत जरूरी है । इसलिए सतगुरु रविदास साहब राज प्राप्ति की कामना करते हैं और साथ में एक शर्त रखते हैं कि उस राज के अंदर की प्रजा के सब लोगों को खाने को भोजन उपलब्ध हो । कोई छोटा - बड़ा नहीं होना चाहिए। सभी समानता के आधार पर बसेरा करें । सतगुरु रविदास साहब कहते हैं उसी में मेरी प्रसन्ता है ।  इस दो लाइन के इस दोहे के अंदर सतगुरु रविदास जी भारतीय संविधान की उद्देशिका के न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता का समर्थन करते है।  मैं हूं अमर, कबूह नहीं मरता ,खड़ग विज्ञान चलाउ रे साधो,  सामर्थ साहिब कहलाउ।।  बिरमा, बिसनु का शीश काट मैं, शिव को मार भगाऊँ। आदि शक्ति को पै

धार्मिक गुरु का चुनाव करते वक़्त कुछ बातों का रखे ध्यान

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spirtual quotes यंहा गुरु का मतलब धार्मिक  है इसका मतलब स्कूल की शिक्षा से नहीं है स्कूल में अध्यपक हैं जो अध्ययन करवाते है और छात्र के दिमाग को जीवन में आगे बढ़ने के लिए तैयार करते हैं जैसे एक किसान फसल तैयार होने से पहले अच्छी तरह खेत को तैयार करता है और अच्छी फसल के सपने के साथ बीज रोपण करता है मगर बेमौसम बारिस , प्राकर्तिक आपदा और अन्य बहुत सी दुर्घटनाए होती है जिसकी  वजह से किसान अपने आपको निसहाय महसूस करता है ऐसे ही जीवन में कुछ लोग गरीब शोषित भोले भाले लोगों का परमात्मा अल्लाह गॉड के नाम पर  पंथ बनाकर शोषण करते है ! अध्यात्म व्यक्तिगत विषय है इसलिए किसी भी  विश्विद्यालय में नहीं पढ़ाया जा सकता !   गुरु का होना जरूर होता है ? चेतन पुरुष के लिए गुरु का होना कोई जरूरी नहीं है क्योंकि उसका गुरु खुद का ज्ञान होता है । इसलिए संत कहते हैं कि कौन गुरु कौन चेला रे साधौ, कौन गुरु कौन चेला।।  शब्द गुरु चित् चेला रे साधौ,  शब्द गुरु चित् चेला।। जब इंसान प्रज्ञा की ऊंचाइयों को छूता है तो वह स्वयं का गुरु हो जाता है उसको गुरु की जरूरत नहीं होती है मगर मनुवादी क

हिन्दू धर्म और बौद्ध धम्म में क्या अंतर है?

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gautam buddha  हिन्दू धर्म और बौद्ध धम्म में क्या अंतर है? परिभाषा हिन्दू धर्म में धर्म की परिभाषा दी गई है कि धर्म वह है जिसे धारण किया जा सके। जैसे अच्छाई, बुराई, जनेऊ, भगवा, माला, अंगूठी आदि। जबकि बौद्ध धर्म कहता है कि धर्म एक स्वभाव है। जैसे पानी का धर्म है बहना, बर्फ का धर्म है शीतलता, वायु का धर्म प्राण है, अग्नि का धर्म जलाना आदि। बनावटी ईश्वर 2) हिन्दू धर्म मे ईश्वर की संकल्पना की गई है। वही बौद्ध धर्म ने ईश्वर की सत्ता को नकारा है। वह कहता है कि यदि ईश्वर है तो उसे किसने बनाया? साथ ही ईश्वर को प्रमाणित भी नही किया जा सकता। यदि कोई मर रहा है या कष्ट मे है तो ईश्वर को बुलाओ, वह कँहा है। गतिशीलता 3) हिन्दू धर्म जगत को मिथ्या मानता है। वही बुद्ध कहते है कि जो चीज तुम्हारे सामने है वह मिथ्या कैसे हो सकती है। पहाड़ है, नदियां हैं, झरने हैं, यह सब मिथ्या कैसे? कारण सिद्धांत 4) अब यह प्रश्न उठता है कि यह सब किसने बनाया? बुद्ध कहते है कि यह सब स्वमेव है, हो रहा है। इसके पीछे कारण सिद्धांत है। यदि कोई भुखमरी से मर रहा है तो उसे खाना दे दो, बच जा

आत्मविश्वास हासिल करने का सबसे अच्छा तरीका है ,आप वह करें ,जो आप करने से डरते हैं

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भूमिका  आत्मविश्वास का टूटना एक मानिसक रोग है!आत्मविश्वास मानव की उन्नति में सबसे सार्थक अंग है खुद से लगाव जो रखता है उसमे कुछ विशेष  गुण विध्यमान होते हैं और विश्वास अन्य लोगों से कईं  गुणा ज्यादा  होता है ! विश्वास  और आत्मविश्वास दोनों एक दूसरे के पूरक हैं दोनों अपने ढंग  से प्रयोग किये जाते हैं विश्वास  बाहरी आवरण है जो बाहरी वयवस्था एवंम  सौन्दर्यकरण पर ज्यादा जोर देता है ! आंतरिक मजबूती व् सौन्दर्यकरण को आत्मविश्वास अपने अधीन रखकर पुरे जीवन को आनंदमय बना देता है !और मानव  बाहरी चीजों को  ज्यादा व्यवस्थित करने में अपना आंतरिक आत्मविश्वास को कमजोर कर लेता है  जिसका अहसास नहीं होता ! जब वो विशवास हमारी आंतरिक शक्तियों को कमजोर करने लगे औऱ  विशेष गुण अपने ही विशवास से खतरा महसूस करे  उसको ही  हम आत्मविश्वास का टूटना कहते हैं ! आत्मविश्वास को दोबारा हासिल करने के कुछ निरंतर तरीके अपनी दिनचर्या में अपनाकर दोबारा हासिल किया जा सकता है जैसे : आलस का त्याग  जब आत्मविश्वास कमजोर होता है तो पुरे शरीर से ऊर्जा शक्ति गायब हो जाती है और आलस चारो तरफ से घेर लेता है !अकर्मण्यता कुछ भ

धार्मिक अंधविश्वास में शक्ति की खोज ?

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           धार्मिक अंधविश्वास में शक्ति की खोज  अभी सारी मानवता का  एक धम खड़ा नहीं हो सका  है इसलिए धम की हार हो रही है रोज , इसलिए नहीं कि मानवता  कम ताकतवर है बल्कि इसलिए कि मानवता का खेमा आपस में बंटा हुआ है तो सवभावतय   अधर्म की शक्तिया अपने  आप बड़ी हो उठती हैं कुछ सवार्थी लोगों ने मानवता को हिन्दू मुसलमान ईसाई जैन बौद्ध पारसी आदि में बाँट दिया और पूरी मानवता को मानवता के ही विरोध में खड़ा कर दिया ! विज्ञानं का कसूर नहीं है कसूर है तो अधर्मी लोगों का !  विज्ञानं का बुनियादी सम्बन्ध वस्तुओं को अधिकतम सुविधापूर्ण बनाने से है और धम का समबन्ध मानवता को अधिकतम आंनद प्रदान करने से है विज्ञानं के बिना धर्म तो अधूरा ही रहेगा !  विज्ञानं के बिना धर्म एक ेंदिन मानवता के लिए घातक सिद्ध होगा ! इस लिए तो विज्ञानं  विश्ववि द्यालयों  में  पढ़ाया जा सकता है ! धर्म नहीं पढ़ाया जा  सकता ! पढ़ाने का कोई उपाय नहीं है ! विज्ञानं  सामूहिक सम्पति बन जाता है ! धर्म निरंतर वयक्तिगत अनुभव है ! और जब भी हम इसे सामूहिक सम्पति बनाते हैं तब धर्म के रूप में मुसलमान हिन्दू ईसाई  जैन पारसी इत्यादि 

50 की उमर के पार सुखमय जीवन जीने का आधार

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50 वर्ष से अधिक उम्र वाले इस पोस्ट को सावधानी पूर्वक पढें, क्योंकि यह उनके आने वाले जीवन के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण है : अब वो ज़माना नहीं रहा की पिछले जन्म का कर्जा अगले जन्म में चुकाना है आधुनिक युग में सब कुछ हाथों हाथ हैं l ** सु:खमय वृद्धावस्था ** --------------------------------- 1:-  अपने स्वंय के स्थायी आवास पर रहें ताकि स्वतंत्र जीवन जीने का            आनंद ले सकें ! 2 :- अपना बैंक बैलेंस और भौतिक संपति अपने पास रखें, अति प्रेम में            पड़कर किसी के नाम करने की ना सोंचे ! 3 :- अपने बच्चों के इस वादे पर निर्भर ना रहें कि वो वृद्धावस्था में       आपकी सेवा करेंगे, क्योंकि समय बदलने के साथ उनकी प्राथमिकता       भी बदल जाती है और कभी-कभी न चाहते हुए भी वे कुछ नहीं कर       पाते हैं ! 4 :- उन लोगों को अपने मित्र  समूह में शामिल करें जो आपके        जीवन को प्रसन्न देखना चाहते हों, यानी सच्चे हितैषी हों ! .. 5 :- किसी के साथ अपनी  तुलना ना करें और ना ही किसी से कोई        उम्मीद रखें ! 6 :- अपनी संतानों के जीवन में दखल अन्दाजी ना करे , उन्हें अपने       त