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एक ओंकार ,सतनाम

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सतगुरु नानक देव जी फरमाते हैं  गुरु नानक  एक ओंकार ,सतनाम ,करता पुरख, निर्भय,  निरवैर ,अकाल मूरत ,अजूनी स्वैमं गुरु प्रसाद जप ,आद सत, जुगाद सत, नानक होसि वी सत,सतनाम श्री वाहेगुरु , वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी दि फतेह , राज करणगे खालसा, याकि रहै ना कोय। अर्थात:- एक ओंकार:-         एक स्वयम का स्वरूप सतनाम:-               सच्चा ज्ञान ( बुद्धत्व ) कर्ता पुरुख:            सब करने वाला व्यक्ति निरर्भैय:-                भय रहित ( जो कभी गलत कर्म न करे, वही निर्भय) निर्मोह: -                 विकार रहित ( भय, भाष, तृष्णा ) निरवैर: -                 जिसका  का कोई शत्रु न हो ( जैसे बुद्ध का ) अकाल मूरत:-         जिसकी छवि हर काल मे हो। अजूनी: -                 जो किसी योनि / जाती को न मानता हो। स्वैमं:-                     जो स्वयं हो यानी अतः डिपो भव। गुरु प्रसाद जप:-       गुरु के उपदेशों का पालन। आद सत: -               जो आदिकाल से सत्य है जुगादि सत:-             वो युगों युगों तक भी सत्य रहेगा ( ज्ञान ) होसि वी सत:-            वो आगे भी सत्य रहेगा।

बहुजन समाज पार्टी की विचारधारा

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Samajik Parivartan Sthal बहुजन समाज पार्टी की विचारधारा देश व सर्वसमाज के हित मे हैँ! भारत मे मनुवादी व्यवस्था के तहत जो गैर बराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था बनी है, उसे बदलकर " समतामूलक-समाज-व्यवस्था "बनाना चाहती है! इस व्यवस्था परिवर्तन मे यदि स्वर्ण समाज मे से जो लोग अपनी मनुवादी मानसिकता को छोड़कर, इसमे सहयोग देते हैं, ऐसे लोगों का पार्टी मे स्वागत किया जाएगा, अर्थात्‌ उन्हें बहुजन समाज की तरह, हर मामले  मे  उनकी लगन व कार्यक्षमता एवं विश्वसनीयता को ध्यान मे रखकर, पूरा आदर-सम्मान भी दिया जाएगा  !  लेकिन बसपा की  विचारधारा के बारे मे एक सोची-समझी  राजनीतिक साजिश के तहत मनुवादी पार्टियों के लोग अक्सर यह प्रचार-प्रसार करते हैं कि यह पार्टी जातिवादी है, जबकि इसमे रत्ती बराबर भी कोई सच्चाई नहीं  है  ! वैसे बहुजन समाज को बनाते समय,उनको झकझोर के  लिए हम  जाति की बातें जरूरत करते हैं, परंतु इसका मतलब यह नहीं कि इस पार्टी को बनाने वाले  लोग जातिवादी है  ! सच तो यह है कि इस समाज के लोग ही जातिवाद के शिकार है और  जो जातिवाद के शिकार हैं, वे जातिवादी कैसे हो  सकते  हैं ? वे जातिवादी कभी 

Unpublished Preface to Buddha and his Dhamma: A book by Dr• Ambedkar

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I was born in the community known in India as the "Untouchables." A question is always being asked of me "How I happened to take such high degrees of education?" Another question is being asked, ' Why I am a buddhist ?" This is the question which I feel that this  preface is the proper place to answer. This is the way it happened .My father was very religious person and he brought me up under a strict religious discipline. Quite early in my carrier, I found certain contradictions in my father religious way of life. He was a 'kabirpanthi'. As such he did not believe in " Moortipuja"(idol Worship). He read the books of his panth. At the same time. he compelled me and my elder brother to read every day before going to bed, a  portion of the 'Ramayana and the Mahabharta' to my sisters and other persons who assembled at my father's house for hearing the 'katha'. This went for a long time number of years. I passed the fourth