बहुजन समाज पार्टी की विचारधारा

Samajik Parivartan Sthal

बहुजन समाज पार्टी की विचारधारा देश व सर्वसमाज के हित मे हैँ! भारत मे मनुवादी व्यवस्था के तहत जो गैर बराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था बनी है, उसे बदलकर " समतामूलक-समाज-व्यवस्था"बनाना चाहती है! इस व्यवस्था परिवर्तन मे यदि स्वर्ण समाज मे से जो लोग अपनी मनुवादी मानसिकता को छोड़कर, इसमे सहयोग देते हैं, ऐसे लोगों का पार्टी मे स्वागत किया जाएगा, अर्थात्‌ उन्हें बहुजन समाज की तरह, हर मामले  मे  उनकी लगन व कार्यक्षमता एवं विश्वसनीयता को ध्यान मे रखकर, पूरा आदर-सम्मान भी दिया जाएगा  ! 

लेकिन बसपा की  विचारधारा के बारे मे एक सोची-समझी  राजनीतिक साजिश के तहत मनुवादी पार्टियों के लोग अक्सर यह प्रचार-प्रसार करते हैं कि यह पार्टी जातिवादी है, जबकि इसमे रत्ती बराबर भी कोई सच्चाई नहीं  है  !

वैसे बहुजन समाज को बनाते समय,उनको झकझोर के  लिए हम  जाति की बातें जरूरत करते हैं, परंतु इसका मतलब यह नहीं कि इस पार्टी को बनाने वाले  लोग जातिवादी है  ! सच तो यह है कि इस समाज के लोग ही जातिवाद के शिकार है और  जो जातिवाद के शिकार हैं, वे जातिवादी कैसे हो  सकते  हैं ? वे जातिवादी कभी  नहीं हो सकते हैं  ! हम  तो अंततः जाति रहित समाज चाहते हैं!

जातिवादी तो वे लोग हैं  जिन्हें जाति के आधार पर फायदा पंहुचा है!जिन्हें जाति के नाम पर मान और सम्मान मिला  है, इन्होने ही  इसे  टिकाए रखने की हर कोशिश की  है  तथा उन्होंने अपनी-अपनी पार्टियां बनाईं  हुई  है  , जिसके माध्यम से  इस जातिवाद को  नए ज़माने के  हिसाब से  वे लोग टिकाये रखना चाहते  हैं!

लेकिन बहुजन समाज के लोग, जिनको जातिवाद से नुकसान पंहुचा है, घोर तकलीफें व अपमान मिला  है, वे तो  जातिवाद को समाप्त करना चाहते हैं  ! जाति की  बात  तो  हम  इसलिए  करते  हैं कि हमें इस असलियत से,जो  हमारे सामने  हैं, जिससे  हमें  नुकसान पंहुचा  है, इसे समझना, बारीकी  से, गहराई से  समझना हमें बहुत जरूरी  है  ! यह ध्यान मे रखकर ही हमे इस बीमारी का इलाज करना है,जिसका  मुख्य कारण, यहां व्यापत "मनुवाद" है  और  इसी के इलाज के लिए  यह  पार्टी  बनाईं गई  है ! उपरोक्त से अब यह स्पष्ट हो  गया  है कि  बसपा  किसी जाति व धर्म के खिलाफ  नहीं  है, बल्कि  "जातिवाद " के खिलाफ  है  ! 

दूसरा, बहुजन समाज पार्टी  जब  जातिवाद को  खत्म करने  की  बात  करती है तो  मनुवादी समाज के लोगों  को हमारी यह बात अच्छी नहीं लगती  है  और इतना ही  नहीं, फिर ये लोग अपने  बुजुर्गों की कमजोरियों को छिपाने के लिए हमारे ऊपर ही यह गलत आरोप लगाते हैं कि बहुजन समाज पार्टी जातिवादी पार्टी है, जिससे देश मे  जातिवाद को बढावा मिलता है  ! वैसे इसमें  कोई संदेह नहीं  है कि जिन बहुजन समाज के  लोगों को  जाति के आधार पर तोड़ा गया है, उन्हें जाति के आधार पर ही  जोड़ा  जाएगा  ! 

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बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर ने "जाति" के आधार पर ही अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोगों को उनके सामाजिक और राजनीतिक अधिकार दिलाए ! जाति का सहारा लेकर ही  इन्होंने सन "1930-1932" मे अंग्रेजों के शासनकाल मे हुए राउन्ड टेबल कॉन्फ्रेंस मे  इन वर्गों के लिए पृथक निर्वाचन की  व्यवस्था करवाई! लेकिन इस मुद्दे पर गांधी जी के आमरण अनशन के कारण इन वर्गों को " प्रथक निर्वाचन " का अधिकार खोना पड़ा!

लोग हमसे अक्सर यह पूछते हैं कि जिस तरह बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर ने " प्रथक निर्वाचन " के लिए संघर्ष किया, उसी प्रकार संघर्ष आप भी शुरू क्यों  नहीं  करती  ? वास्तव मे आज तक हमने अपना एक भी मिनट " प्रथक निर्वाचन " के मामले पर खराब नहीं  किया है! अगर प्रथक निर्वाचन का अधिकार बाबासाहेब द्वारा ब्रिटिश शासन के दौरान भी सम्भव नहीं  हो सका तो आज यह हमारे लिए कैसे सम्भव हो सकता  है, जबकि देश मे मनुवादी समाज के लोगों का राज  है  ? आज यह एकदम असम्भव है! 

1992 में अन्य पिछड़ा वर्ग को भी जाति आधारित राजनीतिक अधिकार देकर,बहुजन समाज पार्टी के संघर्ष एवं अथक प्रयासों की वजहों से आगे बढ़ने का मौका मिला! भारतीय संविधान के अनुच्छेद 340  के तहत बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर जी ने कुछ शेष जातियों को भी राजनीतिक अधिकार देने की पुरजोर कोशिश की थी मगर तत्कालीन मनुवादी सभासदों ने इसका विरोध किया ! संविधान मे,भविष्य मे आयोग बनाकर सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर प्रतिनिधित्व देने की सिफारिश की गई! मगर मनुवादी सरकारों ने इसको भी आजादी के  45 सालों तक लागू नहीं होने दिया ! बहुजन नायक मान्यवर  कांशीराम  के दबावों के बाबजूद 1992 मे मंडल आयोग की सिफारिशों को आधा अधूरा  52% जनसंख्या को, 27% सिर्फ नौकरियों मे प्रतिनिधित्व देकर शांत कर दिया गया! जो आज तक पूर्णता लागू नहीं हुआ है! बहुजन समाज पार्टी इसके पीछे मनुवादी सोच पर आधारित सामाजिक व्यवस्था को दोषी मानती है! 

जाति के विशेषज्ञ बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर ने अनुसूचित जाति व जनजाति के  लोगों को जाति के हथियार का इस्तेमाल अपने पक्ष मे करने लायक बनाया था! इसी कारण वे ब्रिटिश हुकूमत से  इन वर्गों के लिए कईं सुविधाएं जुटाने मे सफल रहे  ! हमारे अन्दर "जाति विहीन " समाज का निर्माण करने की भावना हो सकती है, लेकिन इसके साथ यह भी सत्य है कि अभी निकट भविष्य मे जाति के विनाश की संभावना लगभग नहीं के बराबर  है  !

अब सवाल यह  पैदा होता है कि जब तक " जाति " का पूरी तरह विनाश न  हो जाये, तब तक हमें क्या करना चाहिए?

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इसके बारे मे हमारा यह मानना है कि जब तक हम एक " जाति विहीन " समाज की स्थापना करने मे सफल  नहीं  हो  जाते, तब तक हमे जाति का उपयोग करना होगा! अगर मनुवादी जाति का उपयोग अपने फ़ायदे के लिए कर सकते  हैं तो क्या हम इसका उपयोग बहुजन समाज के हित मे नही कर सकते  ?

जंहा तक देश मे बहुजन समाज के  "आर्थिक पहलू " का  सवाल है, यह सवाल भी  सीधा इस देश के मनुवादी-समाज-व्यवस्था से जुड़ा है! जंहा मनुवादी-समाज-व्यवस्था के आधार पर जो गैर-बराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था बनी है,इसी के कारण ही,यहाँ आर्थिक  गैर-बराबरी भी कायम है और लगातार कायम  है!

इसलिए बहुजन समाज पार्टी आर्थिक गैरबराबरी को दूर करने के लिए सबसे पहले सामाजिक गैर-बराबरी  को दूर करना जरूरी समझती है और हमारा यह पूरा विश्वास है कि जिस दिन इस देश मे सामाजिक गैर-बराबरी दूर हो  जाएगी, उस दिन आर्थिक गैर-बराबरी काफी हद्द तक अपने आप ही समाप्त हो जाएगी! इसके लिए हमे ज्यादा संघर्ष नहीं  करना  पड़ेगा  !

आज बहुजन समाज की आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय है! बहुजन समाज के लोग जिन खेतों मे मेहनत करके फ़सल पैदा करते हैं उन ज़मीनों पर उनका मालिकाना हक नहीं  होता है तथा वे मनुवादी ज़मींदारों के अन्याय और शोषण के शिकार होते रहते हैं! इस स्थिति मे तंग आकर वे अपने गांव को छोड़कर रोजगार और सम्मानपूर्वक जिंदगी की तलाश मे बड़े-बड़े शहरों मे आ जाते हैं और फिर उन्हें गंदी-गंदी बस्तियों,अर्थात्‌ पुलों के नीचे,नालों तथा रेल की पटरी के किनारे और अन्य गंदे स्थानो पर जानवरों से भी ज्यादा बुरी जिंदगी जीने के लिए मजबूर होना पड़ता  है  ! 

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व्यवस्था से दुखी होकर पलायन के कारण लगभग 15 करोड़ से ज्यादा अपने गांवो को छोड़कर शहरों में आ गए हैं! हमें उन्हें "भारतीय शरणार्थी" कहते  हैं भारत सरकार को  इनकी समस्याओ का समाधान करना चाहिए! लेकिन दुख की बात यह है कि हमारे यहां  सन 1947 में पाकिस्तान से आए शरणार्थियों, जम्मू-कश्मीर से आए शरणार्थियों के लिए अलग विभागों तथा मंत्रालयों की व्यवस्था है तथा इन पर करोड़ो-अरबों रुपया खर्च भी  किया जाता रहा है, लेकिन अपने ही देश मे शरणार्थी बने, इन 15- 20 करोड़ से ज्यादा लोगों की और किसी भी सरकार का ध्यान नहीं जाता है!

क्योंकि, ये लोग अपने देहातों को छोड़कर केवल अपनी  "जाति " को साथ लेकर शहरों व महानगरों मे आकर बस गए हैं! सरकारी नौकरियों मे भी इन लोगों के साथ जाति के नाम पर अन्याय होता है और व्यापार के क्षेत्र मे तो ये लोग ना के बराबर नजर आते हैं! इन सबका मुख्य कारण, इस देश की मनुवादी समाज व्यवस्था है, जो जीवन के हर क्षेत्र मे शोषण की पोषक है  !

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बिना सामाजिक लोकतन्त्र के राजनीतिक लोकतन्त्र सफल होना असम्भव है बहुजन समाज पार्टी भारत मे लोकहित को सर्वोपरि मानते हुए "सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय " की नीति के आधार पर जाति के आधार पर तोड़े गए लोगों को सामाजिक जीवन मे एकजुटता लाकर भारत को विश्व  शक्ति एवं नागरिकों की खुशहाली के लिए वचनबद्ध है!

आप हमारा साथ दीजिए हम भारत मे गैर-बराबरी एवं जाति विहीन समाज की स्थापना करेंगे !




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