पूना पैक्ट - ज़्यादा सीट ,कम अधिकार, बिना ताक़त के साथ

round table conference,poona pact
round table conference 

गोलमेज सम्मलेन 
1930 में पहला गोल मेज सम्मलेन हुआ जिसमे भारत के राजाओं , विशिष्ट हस्तियों ,कांग्रेस व् महात्मा गाँधी को भी आमंत्रित किया था मगर गाँधी व् कांग्रेस ने इस सम्मलेन का बहिष्कार किया जिसमे महात्मा गाँधी ने भाग नहीं लिया  ! बाबा साहेब ने दलितों का व् सम्पूर्ण राष्ट्र्र का प्रतिनिधित्व किया !डॉ बी॰ आर॰अम्बेडकर ने  माँग रखी की अछूतों की हालत बहुत ही दयनीय और मानवीय अधिकारों से वंचित है ! हिन्दू  समाज ने कभी इनको मानवीय अधिकार नही दिए ।उनको गाँव से बाहर रखा , पीने के लिए पानी, खाने के लिए रोटी नही ,मजबूरन झूठन व् मरे  हुए जनावरों का मांस खाकर गुज़ारा करते हैं । उनको बसों रेलगाड़ियों व  सार्वजनिक गाड़ियों में यात्रा करने की मनाही हैं और हिन्दू लोगों के डर से अपनी आवाज़ भी नही उठा सकते । ब्रिटिश भारतीय सरकार ने भी उन अभागे अछुत्तों के लिए कुछ नहीं किया , मैं उन अछूतों का प्रतिनिधित्व करता हुँ ! बाबा साहेब ने दोहराया की हमें आज़ादी चाहिए ,हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं  सम्पूर्ण आज़ादी का पक्षधर हूँ आप भारत छोड़े ! बाबा साहेब के भाषण को  यूरोप के अखबारों ने प्रमुखता से छापा और पूरी दुनिया को मालूम लगा की एक बहुत बड़ी जनसँख्या जो यूरोप की जनसँख्या के बराबर है मानवीय अधिकारों से वंचित है ! धर्म के आधार पर उनको शोषित किया जा रहा है  बाबा साहेब  ने  ब्रिटेन में ही अन्य देशो के दूतावास जैसे अमेरिका , ऑस्ट्रेलिया , जर्मनी ,फ्रांस , स्पेन , इटली , रूस  आदि में जाकर भारतीय दलितों की स्थिति से अवगत कराया और तत्कालीन ब्रिटिश सरकार पर दबाव डाला की दलितों को अलग से अधिकार दिए जाएं !

1931  में दूसरे  गोल मेज  सम्मलेन में कांग्रेस व् महात्मा गाँधी ने जाने का निर्णय किया क्योंकि पहले गोल मेज सम्मेलन की  सफलता व् बाबा साहेब द्वारा दलितों के पक्ष को जिस तरह यूरोप के अखबारों ने प्रशंसीय ढंग से  प्रकाशित किया  महात्मा गाँधी व् कांग्रेस को परेशान करने लगी !डॉ बी॰ आर॰अम्बेडकर ने पूर्व की भांति जब दलितों का पक्ष रखा तो गाँधी जी ने तुरंत बाबा साहेब का बहिष्कार किया, मुझसे बड़ा अछूतों का कोई नेता नही है  मैं ही अछूतों का असली नेता हुँ ।  अम्बेडकर हिन्दुओं को बाँटना चाहता हैं और अछूतों को हिंदू धर्म से अलग करना न्यायसंगत नही है ! भारत में वर्ण वयवस्था है जिसका मैं पक्षधर हूँ ! कांग्रेस ने दलितों  की  स्थिति को सुधारने के लिए अपने राष्ट्रीय कार्यक्रम  में जगह दी है ! यह  एक सामजिक समस्या है जिसका हम हिन्दू मिल बैठ कर समाधान कर लेंगे ! बाबा साहेब ने दलित उत्पीड़न को राजनीती से पैदा हुई  समस्या कहा और इसका समाधान भी राजनीती में ही निहित है ! दलितों को हिन्दुओं से अलग राजनैतिक अधिकार से कम  कुछ भी मंजूर नहीं है ! गोलमेज सम्मलेन में बड़ोदा के महाराज  स्य्जीराव गायकवाड़ भी मौजूद थे जिनकी छात्रवर्ती से बाबा साहेब विदेश में पढ़े उन्होंने अपने आपको बहुत गौरवान्वित महसूस किया की मैंने डॉ आंबेडकर को पढ़ाने का निर्णय लिया वो नेक व् उचित था और बाबा साहेब की सम्मलेन में बहुत प्रशंशा की !

कम्युनल अवार्ड 
16अगस्त 1932 को तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री Ramsay McDonald ने अछूतों के लिये कम्युनल अवार्ड  की घोषणा की जिसमें मुख्य माँगों को मान लिया गया जो इस प्रकार थी ।
1. अछूतों को अल्पसंख्यक का दर्जा और साथ में 71 चुनाव क्षेत्र सीट जिनमे दलित ही ,दलित उम्मीदवार को वोट डालकर चुनेंगे ।
2.दो वोट का अधिकार, दूसरे वोट को सामान्य उम्मीदवार के चयन में उपयोग करना ।

महात्मा गाँधी  ने इन माँगो का ज़बरदस्त विरोध किया और देश में पैदल मार्च करके बाबा साहेब के ख़िलाफ़ माहौल खड़ा कर दिया की अम्बेडकर ने हिंदुओं को विभाजित कर दिया है और बाबा साहेब के  पुतले जलाए जाने लगे। क़ानून व्यवस्था बिगाड़ने  की स्थिति में गाँधी को गिरफ़्तार कर लिया गया  और पूना  की केंद्रीय एरवड़ा जेल में डाल दिया गया !

आमरण अनशन 

महात्मा  गांधी 20 सितंबर 1932 को जेल में ही अनिश्चितकालीन भूखहड़ताल  पर बैठ गए और घोषणा की, पृथक निर्वाचन की मांग को  वापिस लेना ही होगा वरना मैं अपनी जान दे दूगा !गाँधी की शारीरिक हालत बिगड़ती गई और बाबा साहेब पर दबाव बढ़ता गया हिंदुओं ने बाबा साहेब के खुले आम गालियाँ व पुतले फूंकने शुरू कर दिए । ब्रिटिश सरकार ने अपने निर्णय को बदलने से मना कर दिया और  कहा हमारी सरकार अपने निर्णय पर क़ायम है ! हिन्दू नेता पंडित मदन मोहन मालवीय,सर तेज बहादुर सप्रू ,ऍम आर जायकार , सी गोपालाचारी आदि ने  मनाने का प्रयास किया मगर बाबा साहेब ने सहमति नहीं दी !

स्वाभाविक रूप से गाँधी की घोषणा ने देश को आपत्तिजनक स्थिति में डाल दिया ! अम्बेडकर जानते थे गाँधी के आमरण अनशन तक आने वाले संकट का महत्व और परिणाम क्या होगा ! आंबेडकर के खिलाफ एक उग्र प्रदर्शन शुरू कर दिया गया !  अम्बेडकर को समस्या समझ में आ रही थे अगर गाँधी मर गया तो पुरे भारत के गांव में दलितों को नरसंहार होगा !

पूना करार 
23 सितम्बर 1932 को गाँधी की हालत नाजुक हो गई और आवाज मध्यम हो रही थी ! महात्मा गाँधी की पत्नी श्रीमती कस्तूरबा गाँधी व्  बेटे ने नम आँखों से आंबेडकर को अपने पति की जान बचाने की याचना की ! सर तेज बहादुर सप्रू ने आंबेडकर के सामने प्रस्ताव रखा की आप ज्यादा चुनावी क्षेत्र के साथ संयक्त चुनांव प्रणाली को अपनाओ जिसमे दलित अपने उम्मीदवारो का का चयन कर सकें और बाबा साहेब ने बहुत ही भारी मन से इस प्रस्ताव को मंजूर कर  लिया !बाबा साहेब कम्युनल अवार्ड जो बहुत मुश्किलों के बाद  मिला था को मजबूरी में विवश होकर छोड़ना पड़ा ! 24 सितम्बर 1932 को दलितों की और से बाबा साहेब व् हिन्दू  पक्ष से महात्मा गाँधी की उपस्थिति में  पंडित  मदन मोहन मालवीय ने हस्ताक्षर किये ! बहुत ही प्रभावी ढंग से गाँधी ने दलितों के अधिकारों को कुचल दिया जो अम्बेडकर आजीवन वंचित रहा और अंत में वंचित कर दिया ! वैसे ही जैसे कर्ण  को युद्ध क्षेत्र में !
पूना में निम्नलिखित बातों पर सहमती हुई ।
1. प्रांतीय विधानसभाओं में 71 से  बढ़ाकर 147 सीट एवं केंद्रीय विधानमंडल में 18% सीट निश्चित की गई ।
2. हर प्रांत में दलितों के लिए शिक्षा की उचित व्यवस्था करना और संस्थाओ को अनुदान देना ।
3. सरकारी नौकरियों में जनसंख्या के अनुपात के अनुसार परतिनिधित्व क़ानून रूप से लागू करना ।
4. संयुक्त निर्वाचन क्षेत्र के साथ एक वोट का अधिकार ।

1935 में पुना पैक्ट को ही अनुसूचित जाति व् अनुसूचित जन जाति कानून के रूप में शामिल किया गया जो बाद में भारतीय संविधान में 1950 में  अंगीकार कर लिया गया !

फिर षड्यंत्र 
Dr. Ambedkar was not happy about the poona pact. He commented -" If the poona pact increased the fixed quota of seats its also took away the right to the dual vote ( double vote). The increase in seats can never be deemed to be a compensation for the loss of double vote. The second vote given by the communal award was a priceless privilege. It value as a political weapon was beyond reckoning. "

बाबा साहेब संसदीय लोकतंत्र में कम ही विशवास करते थे खासकर जंहा पर अल्पसंख्यक ज्यादा हो ! क्योंकि   संसदीय प्रणाली में सभी  को अनुपातिक रूप में प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा सकता ! एक आदमी एक वोट का सिद्धांत  शायद वंहा पर ठीक होगा जंहा पर सामजिक  व् आर्थिक स्तर पर समानता हो सभी नागरिकों में, परन्तु भारत में जाति के आधार पर ऊंच नीच है  यंहा संभव नहीं है !  बाबा साहेब का विशवास था एक वोट से दलित हिन्दुओं के गुलाम बने रहेंगे और आरक्षित क्षेत्र से हिन्दू उन उम्मीदवारों को ही चुनेगे जो उनकी इच्छा के अनुरूप काम करे ! पूना पैक्ट ने दलितों को ज्यादा सीट, कम अधिकार और बिना शक्ति के साथ मतलब चने तो दिए मगर दांत निकाल लिए गए !

बाबा साहेब ने कहा की बलपूर्वक एवंम छलपूर्ण रवैये से  गाँधी ने उन सभी राजनैतिक अधिकारों को छिन्न लिया जिनको मैं बहुत मुश्किलों से अंग्रेजों से अपने लोगों के लिए लेकर आया था !


(बहुजन नायक साहेब कांशीराम जी ने पूना पैक्ट को समझने के बाद बामसेफ व बहुजन समाज पार्टी का गठन किया )



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