एक ओंकार ,सतनाम
सतगुरु नानक देव जी फरमाते हैं
गुरु नानक |
एक ओंकार ,सतनाम ,करता पुरख, निर्भय, निरवैर ,अकाल मूरत ,अजूनी स्वैमं गुरु प्रसाद जप ,आद सत, जुगाद सत, नानक होसि वी सत,सतनाम श्री वाहेगुरु , वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी दि फतेह , राज करणगे खालसा, याकि रहै ना कोय।
अर्थात:-
एक ओंकार:- एक स्वयम का स्वरूपसतनाम:- सच्चा ज्ञान ( बुद्धत्व )
कर्ता पुरुख: सब करने वाला व्यक्ति
निरर्भैय:- भय रहित ( जो कभी गलत कर्म न करे, वही निर्भय)
निर्मोह: - विकार रहित ( भय, भाष, तृष्णा )
निरवैर: - जिसका का कोई शत्रु न हो ( जैसे बुद्ध का )
अकाल मूरत:- जिसकी छवि हर काल मे हो।
अजूनी: - जो किसी योनि / जाती को न मानता हो।
स्वैमं:- जो स्वयं हो यानी अतः डिपो भव।
गुरु प्रसाद जप:- गुरु के उपदेशों का पालन।
आद सत: - जो आदिकाल से सत्य है
जुगादि सत:- वो युगों युगों तक भी सत्य रहेगा ( ज्ञान )
होसि वी सत:- वो आगे भी सत्य रहेगा।
सतनाम श्री वाहे गुरु:- गुरुओ के सच्चे नाम यानी ज्ञान की वाह वाह कार/ जै जै कार।
वाहिगुरू जी दा खालसा, वाहिगुरू जी दी फतह: - सच्चे गुरुओँ ( संतो ) के सिपाहियों की जय हो ,क्योंकि उन की वजह से संतो की जीत होती है।
राज करण गे खालसा, याकि रहै न कोय:- जब संत / खालिस लोग राज करेंगे तो कोई किसी का दुश्मन नही होगा। सब खुशहाल होंगे !
जय गुरुदेव धन गुरुदेव
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