किसान आंदोलन - झूठ पर सच्चाई की जीत
दिनांक 11/01/2021 को सुप्रीम कोर्ट ने चार सदस्य की कमेटी बनाकर आंदोलन को विफल करने का अप्रत्यक्ष षडयंत्र रचाया है। चारो सदस्य पहले से ही अखबार लेख के माध्यम से एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से तीनों किसान विरोधी कानून के पक्ष मे अपनी राय जाहिर कर चुके हैं। किसानों की मांग है कि सरकार ने कानून बनाए हैं तो सरकार ही इनको वापिस ले मगर सरकार किसानों को थका कर परेशान करके आंदोलन खतम करने की कोशिश कर रही है। किसान भारी ठंड में खुले आसमान के नीचे रात बिताने पर मजबूर है ।वर्तमान बीजेपी सरकार अपने ही नागरिकों, अपने ही समर्थक वोटर को विवश कर रही है ! भारत के इतिहास मे ये आंदोलन सुनहरे अक्षरों मे लिखा जाएगा जिसको कामयाब करने के लिए अब तक साठ से ज्यादा किसान अपनी जान गंवा चुके है और शहीदी को प्राप्त हो चुके हैं ।सरकार गरीबों की नहीं कुछ पूंजीपतियों साहुकारों की सोच को भारत के आम जनमानस पर थोपने का काम कर रही है। आम गरीब किसान मजदूर का विश्वास वर्तमान बीजेपी की सरकार ने खो दिया है। अविश्वास की स्थिति एक ही दिन में पैदा नहीं हुई इसको पैदा होने में लगभग सात साल लगे हैं । सरकार गेंहू चावल की ज्यादा भंडारण से उत्पन हुई स्थिति से निपटने के लिए और भंडारण की सरकारी लागत को कम करने के लिए ये तीन कृषि कानून लेकर आई है। सरकार का ये मानना है कि अब कृषि घाटे का सौदा नहीं है इसलिए इसमें निजी कंपनी का निवेश और खुले बाजार की पक्षधर है । ग्रामीण सरकारी अनाज मंडियों को धीरे-धीरे बिना सुविधाओं के रखकर निजी मंडियों का शुरुआती दौर मे आधुनिकीकरण करके किसानो को लुभाने के पूरे प्रयास किए जाएंगे। किसान को शंका है कि ये चकाचौंध कुछ दिनों की होगी जैसे ही सरकारी मंडी जर्जर हो जाएंगी निजी मंडियां किसान का शोषण करना शुरू कर देंगी इसलिए किसान अपनी फैसलों के दाम को न्यूनतम समर्थन मूल्य की सरकारी लिखित गारंटी चाहता है । सरकार के पास 98 लाख मेट्रिक टन अनाज भंडारों में हैं जबकि सरकार को सुरक्षित भविष्य के लिए 41 लाख टन अनाज की जरूरत है ।
100 स्मार्ट शहर अब तक नहीं बने
Bullet ट्रेन अभी तक नहीं चली
दो करोड़ सालाना रोजगार नहीं मिले
नोट बंधी से आतंकवाद नहीं रूका
काला धन अभी तक नहीं मिला
पुलवामा हमले का सच सामने नहीं आया
ऐसे अनेक काम है जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था खतरे के निशान से ऊपर जा रही है बेरोजगारी चरम पर है । 2020 की नई शिक्षा नीति के दुष्परिणाम पांच साल बाद आने शुरू हो जाएंगे। माता-पिता और ऊँच शिक्षा पाने वाले छात्र-छात्राओं को लोन पर शिक्षा लेने पर मजबूर होना पड़ेगा। शिक्षा का सरकारी वार्षिक बजट साल दर दर साल घटता जा रहा है। पांच साल बाद भारत की अर्थव्यवस्था शिक्षा स्वास्थ्य किसान मजदूर सब कोमा में होंगे जिनका ईलाज करना मुश्किल हो जाएगा।
निकलो बाहर मकानों से
ज़ंग लड बेइमानौ से
किसानो की ये लड़ाई देश को नई दिशा देगी इस आंदोलन में समाज के सब घटकों को अवश्य भाग लेना चाहिए क्योंकि भारत के ऊपर अचानक उसके ही लालची लोगों ने सत्ता और पूंजीपति साथ मिलकर उसकी आत्मा को छलनी कर दिया है।
मान्यवर जगबीर पुलिया जी !
जवाब देंहटाएंआपने बहुत सुंदर लेख लिखा है ।शत प्रतिशत हकीकत बयान की है। मैं आपको दाद देता हूं कि आपने इस क्रांतिकारी अध्याय को गुमनामी में जाने से रोक दिया है। इस तरह के लेख ही आगे चलकर के इतिहास बनते हैं जो आने वाली पीढ़ियों को मार्ग दिखाते हैं तथा आने वाली पीढ़ियों मार्ग दर्शन के लिए ये लेख प्रकट होते हैं ।आप साधुवाद के पात्र हैं।
मुझे बहुत खुशी होती है जब आप उत्साहित करते हैं आपका सहयोग मिलता रहे
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