अभिवयक्ति महापुरुषों का सम्मान

धर्म हजार हो सकते हैं, धम प्राकर्तिक एक ही होता है ! धर्म बीमारी है प्रकर्ति स्वास्थ्य है ! धम/प्रकर्ति  तो एक ही होता है जैसे  सूर्य सबको ताप देता है प्रकृति सबको एक समान आक्सीजन हवा पानी पेड़ पौधे सब कुछ देती है धम ही अच्छा जीवन जीने का मार्ग मानव जगत के महान वैज्ञानिकों महापुरुषों ने मानवता को खोज करके दिया  है ! धर्म कुछ षड्यंत्रकारी इंसानो  द्वारा निर्मित एक चाबुक है जो कमजोर वंचित असहाय अनपढ़  लोगों पर लगातार प्रहार करता रहता है 

आश्चर्य की बात है कि साधारण धार्मिक आदमी हिन्दू मुसलमान होता है , सो ठीक, सन्यासी भी हिन्दू मुसलमान ईसाई और जैन होता है ! कम से कम सन्यासी तो सिर्फ मार्गदाता हो ! वह भी संभव नहीं हो पाया है !
धम पैदा हुआ, कुछ थोड़े से व्यक्तियों के जीवन में उसकी अनुभूति गहरी थी ! लेकिन आम जन के जीवन में वह तब तक नहीं पंहुच सकता था जब तक कि विज्ञानं ठीक भूमि साफ़ ना कर दे ! अब विज्ञानं ने भूमि ठीक से साफ़ कर दी है ! और अब धम  अवैज्ञानिक ढंग से स्वीकृत नहीं हो सकता इसलिए बड़ी कठिनाई पैदा हो रही है !



जो लोग अंधविश्वासों को पकडे हुए हैं, वे सोचते हैं की सारी दुनिया अधार्मिक होती जा रही है ! वे बड़ी भ्रान्ति में हैं की सारी दुनिया अधार्मिक हो रही  है , हकीकत यह है कि सारी दुनिया अंधविश्वासों से मुक्त होने की कोशिश कर रही है और विज्ञानं में सम्भावनाओ को प्रकट कर रही है !
विज्ञानं अब धर्म के सभी भ्रांतीयों की  गाँठ को खोल रहा है ! आइंस्टीन ने मरने से पहले कहा कि जब मैंने विज्ञानं की खोज सुरु की थी ,तो मैं सोचता था कि आज नहीं कल सब जान लिया जाएगा ! और आइंस्टीन शायद मनुष्य -जाति में पैदा हुए उन थोड़े से लोगों में से एक हैं जिसने विज्ञानं को सर्वाधिक जाना है ! मरने के दो या तीन दिन पहले आइंस्टीन ने अपने मित्र को कहा कि जो भी मैंने जाना है , आज मैं कह सकता हूँ उससे सिर्फ मेरे अज्ञान का ही पता चलता  है ! मरने के पहले आइंस्टीन ने कहा कि मैं एक रह्स्य्वादी की तरह मर रहा हूँ , एक वैज्ञानिक की तरह नहीं ! जितनी ही मैंने खोज की हैं , उतना ही मैंने पाया है ,खोज करने के और आयाम खुल गए हैं !


एडिंग्टन ने  अपने संस्मरणों में लिखा है कि जब मैंने सोचना सुरु किया था , तो मैं समझता था जगत एक वस्तु है ! लेकिन अब मैं कह सकता हूँ की जगत वस्तु की तरह मालूम नहीं पड़ता , बल्कि एक विचार की तरह मालूम पड़ता है 

मीरा के भजन एक धम की अनुभूति से पैदा हो रहें हैं ! एक अनुभूति है भीतर से , और फिर अभिवयक्ति  हो रही है ! कुछ पाया गया है और अब बांटा जा रहा है ! आमतौर से लोग समझते हैं की मीरा ने भजन गा गा कर भगवान  को पा लिया है ! मैं नहीं समझता ! मीरा ने रविदास के विचारों से सहमत होकर भजन गाने सुरु किये हैं ! क्योंकि भजन को गाकर कोई भगवान को कैसे पा सकता है ! इतना सस्ता की आप भजन गाएं और ईश्वर मिल जाए ? नहीं भजन गाना मीरा  का भगवन को पाने का रास्ता नहीं है बल्कि गुरु रविदास ने जो ज्ञान दिया है उसकी अभिवयक्ति है , धन्यवाद है अपने मार्गदाता को ! मानव कल्याण के मार्ग को मीरा ने संगीत के माध्यम से लोगों को जागृत करके अपने मार्गदाता का सुक्रयादा किया !

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