बुराई करने वालों से ना डरे अपना काम करते रहें- संत पलटु दास जी
Sant Paltu das ji |
मान्यवर साहब कहां करते थे कि आपकी बुराई करने वाला भी होना चाहिए । अगर कोई आपकी बहुत ज्यादा बुराई कर रहा है तो इसका मतलब आप सही काम कर रहे हैं ।इसलिए बुराई करने वाले से ना डरे और अपना काम करते रहे।
निंदक जीवै जुगन-जुग , काम हमारा होए ।
काम हमारा होय, बिना कौड़ी का चाकर।।
कमर बांध कर फिरे, करै तिहुं लोक उजागर ।
उसे हमारी सोच , पलक भर नहीं बिसारी।।
लगा रहे दिन रात , प्रेम से देता गारी ।
संत कहे ,दृढ करे , जगत का भरम छुड़ावै।।
निंदक गुरु हमार, नाम से वही मिलावे ।
सुनि कै निंदक मर गया, पलटू दिया है रोए ।
निंदक जिवै जुगनू जुग, काम हमारा होय।।
इस बाणी में सतगुरु पलटू दास जी फरमाते हैं कि हमारी बुराई करने वाला होना चाहिए क्योंकि वह बुराई कर रहा है तो मान लो हम कुछ अच्छा काम कर रहे हैं अतः हमारी बुराई करने वाला युगों युगों तक जीवित रहे क्योंकि वह हमारा काम करता है । वह हमारा बगैर पैसे का नौकर होता है । निंदक हमारी बुराई करने के लिए कमर कस लेता है और हमें तीनों लोकों में प्रसिद्ध कर देता है । उसका ध्यान हर वक्त हम पर होता है । वह हमें एक पल के लिए भी नहीं भूलता है बेचारा निंदक रात दिन लगा रहता है और हमें प्रेम से गालियां देता रहता है। संत की बुराई करने से संतो को मजबूत करता है और उसकी निंदा की बजह से हमे ज्ञान यानी मंजिल मिलती है। निंदक की मौत सुनकर के पलटू दास जी रो पड़ते हैं यानी बुराई करने वाले मर जाएंगे तो हमारा प्रचार-प्रसार कौन करेगा अतः निंदक युग युग युग तक जीवित रहे ताकि हमारा काम बन जाए ऐसे सतगुरु पलटू दास जी फरमाते हैं।
Sant Dadu Das ji |
संतों की वाणी अर्थात अतः दीपो भव
दादू कहत पुकारी, कोई मान्य नहीं हमारी। पंडित ,काजी बेद कितेबे, पढ़ पढ़ मूए लबारी।।
वे तीरथ, वे हज को जाते,बूदे भव जलधारी।
इसाई सब खोया खाया, पढ़ अंजील बिचारी।। हिंदु तुर्क ईसाई तीनों, कर्म धर्म पच हारी।
नूर जहूर खुदा हम पाया, उतरे भौजल पारी।।
उपरोक्त वाणी में दादू साहब जी कहते हैं कि हम सच बता रहे हैं मगर हमारी सच्चाई को लोग नहीं मानते हैं। ब्राह्मण मौलवी आदि वेद और कुरआन पढ़कर लबारी यानि गप्प हाँकने वाले हो गए हैं। हिंदू तीर्थ जाते हैं और मुसलमान हज को जाते हैं और इस तरह से वे आवागमन में , भवसागर में डूब के मर जाते हैं। ईसाई भी गुमराह करने में पीछे नहीं हैं ।वे अंजीर नामक ग्रंथ पर अपने विचार पेश करते हैं । हिंदू, ईसाई, मुसलमान तीनों ही कर्म -धर्म के नाम पर गुमराह करते हैं क्योंकि इनके पास सच्चा ज्ञान नहीं है। हमने अपने शरीर में नूर यानी ज्ञानरूपी खुदा को पा लिया है और हम पाखण्ड और झूठ के भवसागर से पार उतर गए हैं ।।
उपरोक्त वाणी में सतगुरु दादू साहब ने हिंदुओ, मुसलमानों व ईसाइयों पर लोगों पर गुमराह करने का इल्जाम लगाया है । तो प्रश्न पैदा होता है कि फिर कौन से धर्म अच्छा और सच्चा था जिसे दादू साहब मानते थे। दादू साहब कौन थे। उत्तर होगा, "बौद्ध धर्म" यानि धम्म।
संग्रह मान्यवर धर्मवीर सौरान जी
आप भी मान्यवर, कमाल करते हैं।
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