संत पलटु दास जी- अपना दीपक स्वयं बनो








तुझे पराई क्या परी, अपनी ओर निबेर।

अपनी और निबेर, छोडि गुड़ बिष को खाए ।।

कुवां में तो तू परै, और को राह दिखावै।

औरन को उजियार,  मसालची जाए अंधेरे ।।

तयों ज्ञानी की बात, मया में रहते घेरे।

बेचत फिरे कपूर, आप को खारी खावै।।

घर में लागी आग, दौरि के धूर बुतावै।

पलटू यह सांची कहे , अपने मन का फेर।।

तुझे पराई क्या परी, अपनी ओर निबेर।। 

संत गुरु पलटू दास जी कहते हैं कि तुम्हें दूसरों की समस्याओं से क्या लेना । पहले अपनी समस्या का समाधान तो कर ले। पहले अपनी बात सुलझा ले , जिन बातों में तू खुद उलझा हुआ है । जो तू गुड़ (अच्छी बातों ) को छोड़कर विष (बुरी बातें ) खा रहा है।  खुद तो कुए की गर्त में पड़ा है औरों को रास्ता दिखा रहा है।  भला कुए में गिरा हुआ व्यक्ति दूसरों को कैसे राह बता सकता है।  जैसे मसालची दुनिया को उजाला दिखाता है मगर खुद अंधेरे में रहता है,  ठीक ऐसे ही तथाकथित ज्ञानी खुद तो माया यानी मनुवाद के जाल में फंसे रहते हैं और औरों को मुक्ति का मार्ग बताते हैं।  जैसे कपूर बेचने वाले को पता नहीं है की कपूर कितना गुणकारी होता है वह कपूर बेच कर नमक खरीद कर खा रहा है। घर की आग को बुझाने के लिए देहली यानी दरवाजे पर रेट फेंकने से कुछ नहीं होगा।  इस तरह विषय विकारों की आग को ऐसे नहीं बुझा पाओगे क्योंकि यह मन का खेल है । सारांश यह है कि मनुवादी लोग खुद गुमराह है औरों को रास्ता दिखाने का काम करके उन्हें भी गुमराह कर रहे हैं। 

इस बाणी का सही अर्थ इस प्रकार से है कि कोई क्या करता है, उसपर ध्यान मत करो। जो ठीक है वो करो। चाहे उस गलत काम को बहुत से लोग करते हो, तो भी , तुम ठीक काम करो। 









तुम्हारे घर मे लगी आग, सत्ता रूपी पानी से बुझेगी। सत्ता प्राप्ति के लिए सही जगह *वोट की चोट करो। कुवें में पड़े लोगो से कोई ज्ञान मत लो।* तुम्हारे वोट से, जीत हो या न हो मगर समाधान जरुर होगा। 

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