2022 का चुनाव लोकतन्त्र की जीत या तानाशाह ? आखिरी मौका
dictatorship |
जब जब भारत देश में ग़रीबी भुखमरी और शोषण होता है कोई ना कोई महापुरुष बन कर व्यवस्था परिवर्तन की जंग में कूद पड़ता है ! ऐसे बहुत से महारथी और योद्धा हैं जिन्होंने हमेशा अखंड भारत के मिशन को ज़िंदा रखा है लेकिन अब लड़ाई निर्णायक दौर में पंहुच गई है । घर पर नही युद्ध क्षेत्र में लड़ना सैनिक की असली परीक्षा है निर्णायक इसलिए भी है अगर 2022 मे विरोधियों के रथ को नही रोका तो 2024 के चुनाव के बाद वोट के अधिकार को ख़त्म कर दिया जाएगा ! ये अधिकार ख़त्म होते ही सभी निसहाय हो जाएँगे और आरएसएस के मनुवादी लोग युद्ध जीत जाएँगे ,जिनका समानता में विश्वास नही है । इस बात को पाठकों,नागरिकों और मतदाताओं को गहराई से विचार करने का समय आ गया है । “ना रहेगा बाँस ना बजेगी बांसुरी “ ये वक्त रूठों का मनाने का और सोये हुओं का जगाने का है ! अब कोई, ज्योति राव फूले जी, दीनबंधु छोटू राम जी ,बाबा साहेब dr अम्बेडकर जी, सरदार पटेल जी, ललई सिंह यादव चौधरी देवी लाल जी मान्यवर कांशीराम जी नही आएँगे । आप उन महारथियों की संतान है जिन्होंने युद्ध जीतें हैं जश्न मनाए है फिर आप कैसे मायूश हो सकते हैं ? उठ लड़ और जीत यही हमारी परंपरा है और यही हमारा उद्देश्य !
fundamental rights |
भारतीय संविधान जिसमें नागरिकों के लिए मौलिक अधिकार निहित है धर्म जाति क्षेत्र लिंग के आधार पर भेदभाव ना करने का संकल्प सरकार द्वारा भारत के हर एक नागरिक को लिखित रूप में दिया है! वर्तमान सरकार विश्वास में भरकर 50 साल तक शासन करने की बात कह चुकी है और जनता के विरोध के बाबजूद संविधान का उल्लंघन करके बिना राज्य सरकारों की अनुमति के कानून निर्माण कर चुकी हैं जैसे धारा 370 को जम्मू काश्मीर से हटाना, NRC और CAA और अब किसानों की बिना सहमति के तीन कृषि अध्यादेश को लोकसभा और राज्यसभा से विरोध के बाबजूद पास करना, राष्ट्रपति द्वारा उन बिल को कानून के रूप मे मंजूरी देना इससे ये साबित होता है कि सरकार ने जनता के प्रति जवाबदेही की प्रवाह किये बिना ये सब कदम उठाएं हैं !
लोकतन्त्र की प्राण वायु नागरिकों के विरोध की आवाज में बहती है! अगर प्राण वायु निकाल दी जाए तो लोकतंत्र का मृत्यु को प्राप्त होना निश्चित है! लोकतंत्र का खत्म होना एक विशेष प्रकार की सोच जिसमें असमानता, अविश्वास, अशिक्षा,जातिवाद,मनुवाद,बाहरी शक्तियों का आगमन और परतंत्रता को जन्म देगा ! इनके बिना भारत कैसा होगा सोच कर रूह कांप उठती है!
farmers protest |
किसान महीनों से ठिठुरती कंपकंपाती ठण्ड में अपने बच्चों बुजुर्गों महिलाओ के साथ देश की राजधानी दिल्ली मे कृषि काले कानूनो का विरोध कर रहें है सरकार सब कुछ देख कर अनदेखा कर रही है लगभग 800से ज्यादा किसान अपनी जान गंवा चुके है फिर भी सरकार संवेदनशील नहीं है! इससे साफ़ झलकता है कि सरकार तानाशाही की और बढ़ चुकी है और संविधान के संरक्षक राष्ट्रपति और सर्वोच्च न्यायालय चुप हैं ! इनकी सहमति के बिना ये सम्भव नहीं है ? ( चुनावी राजनीति के कारण तीनों कृषि कानून वापिस हुए हैं , खतरा टला नहीं है)
संविधान का शासन खत्म होते ही जनता के प्रति जवाबदेही को निरुत्तर कर दिया जाएगा ! अगर बिल्ली को ही दूध की रखवाली दे दी जाये तो आप परिणाम समझ सकते हैं ?
नागरिकों के ऊपर देश रक्षा की जिम्मेदारी आ गई है भारत की सरकार फिर एक बार नागरिकों के साथ छल करके अमानवीय व्यवस्था लागू करने पर आमदा है! बीजेपी सरकार कल्याणकारी राष्ट्र को खत्म करके पूंजीपतियों से मिलकर आर्थिक केन्द्रीकरण के माध्यम से अपनी जिम्मेदारी को निजीकरण से पूरा करना चाहती है!
नई शिक्षा नीति लागू कर दी गई है जिसमें गरीबों वंचितों के लिए कोई जगह नहीं है जबकि भारत मे अब भी 90% जनता गरीबी से जुझ रही है कुछ लोग मिडल क्लास बने थे मगर सरकार के बहुत तानाशाही निर्णय ने उनको भी परेशानी मे डाल दिया है!
आपको निर्णय लेने के जरूरत है और भारत के संविधान की रक्षा ही नागरिकों की सुरक्षा है! संविधान की सुरक्षा सर्वोच्च न्यायालय,मीडिया और सरकार की है मगर अब ये सभी सत्ता की गोद मे बैठ गए हैं इसलिए लोकतन्त्र को बचाने की जिम्मेदारी मतदाताओं और नागरिकों पर आ गयी है! 2022 का चुनाव आपके लिए अंतिम मौका है!
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