एक ओंकार ,सतनाम
सतगुरु नानक देव जी फरमाते हैं गुरु नानक एक ओंकार ,सतनाम ,करता पुरख, निर्भय, निरवैर ,अकाल मूरत ,अजूनी स्वैमं गुरु प्रसाद जप ,आद सत, जुगाद सत, नानक होसि वी सत,सतनाम श्री वाहेगुरु , वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी दि फतेह , राज करणगे खालसा, याकि रहै ना कोय। अर्थात:- एक ओंकार:- एक स्वयम का स्वरूप सतनाम:- सच्चा ज्ञान ( बुद्धत्व ) कर्ता पुरुख: सब करने वाला व्यक्ति निरर्भैय:- भय रहित ( जो कभी गलत कर्म न करे, वही निर्भय) निर्मोह: - विकार रहित ( भय, भाष, तृष्णा ) निरवैर: - जिसका का कोई शत्रु न हो ( जैसे बुद्ध का ) अकाल मूरत:- जिसकी छवि हर काल मे हो। अजूनी: - ...