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बौद्ध दर्शन समझना आवश्यक है - आचार्य धर्मवीर सौरान

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प्रिय अम्बेडकर बंधुओ आपने जो स्क्रीनशॉट भेजा है उसको देख कर या पढ़ कर कोई भी जवाब बौद्ध दर्शन के बारे में देना मुश्किल है क्योंकि बुद्ध की मृत्यु के मात्र सौ साल बाद ही धर्म के विद्वान आपस में लड़ने लगे थे जब कि सच यह है कि बौद्ध धर्म दुखों से मुक्ति का मार्ग है और यही बुद्ध का दर्शन है मगर बुद्ध के जाने के पश्चात बुद्ध दर्शन को लोगों ने अपने-अपने ढंग से पेश किया।  बुद्ध धर्म में ब्राह्मण घुसपैठ कर चुके थे और अब उन्होंने बुद्ध धर्म को पुनः परिभाषित किया जिससे बुद्ध धर्म की असली परिभषा छूट गई थी बुद्ध के महापरिनिर्वान के  कुछ साल बाद ही वैशाली में थेरवादी बुद्धो ने  दितीय संगीति का आयाजन किया और पाखंड व बुद्ध धर्म के विरोध में किया जाने वाले क्रियाकलापों को रोकने के लिये संघ के कुछ कायदे कानून तय गए थे और जो इन कायदे कानूनों के विरोध में थे उन्हें संघ से निकाल दिया गया था निकले हुए लोगों ने अपना अलग  संघ बनाकर उसको महासंघ तथा दूसरों को हीन ( नीच ) संघ का नाम दिया 249 ई पूर्व सम्राट अशोक ने पाटलीपुत्र में  तीसरी संगीति का आयोजन किया और उसमें बुध धर्म की रूप रेख तय करने के लिए

बाबा शाहेब का जनदिवस मना लिया । लेकिन जानना ज़रूरी है -उठो पढ़ो- परमिंदर सिंघ

बाबा साहेब का जन्मदिवस मना लिया ? शाबास बहुत अच्छे, लेकिन अब क्या ? अब क्या ? मना तो लिया, अगले साल फिर मनाएंगे, और धूम-धड़ाके से। चलिये ठीक है, लेकिन क्या बहुजन महापुरुषों का मिशन साल में उनका एक दिन जन्मदिन मनाना भर है ? क्या उन्होंने अपना जीवन इसी जन्मदिन को मनवाने के लिए लगाया था या आपके पीछे अपना खून-पसीना लगाने का उनका कुछ और बड़ा मकसद था ? कहीं ऐसा तो नही कि साल में महज एक दिन जन्मदिन मनाकर आप सामाजिक जिम्मेदारी का बोझ उतारकर फेंक देना चाहते हैं ? कहीं ऐसा तो नही आप ऐसा करके उन महापुरुषों, समाज, देश, घर-परिवार तथा स्वयं को धोखा दे रहे हैं ? क्योंकि यदि ऐसा है तो फिर जन्मदिन भी मत ही मनाइए, क्योंकि इसके बाद साल भर फिर आपको कुम्भकर्णी नींद में ही चले जाना है। लेकिन यदि आपको वास्तव में समाज का दर्द है तो कमर कसकर तैयार हो जाइये बहुजन विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए, हर रोज। मिशन चलाना मुर्दा लोगों का काम नही है, ये तलवार की धार पर नंगे पैर चलने के समान है। इसमें हर रोज आपको समय, बुद्धि, हुनर, श्रम और पैसा लगाना होगा। कहीं आपको सम्मान मिलेगा और कहीं अपमान भी, और यहीं आपक

धूम धाम से मनाई बाबा शाहेब की जयंती- निखिल गौतम जिला प्रधान बसपा गुरुग्राम

✍️जय भीम # जय भारत 🕯🕯🕯🕯🕯🕯🕯🕯🕯🕯🕯 बाबा साहब के जन्मोत्सव पर बहुजन समाज के लोगों ने परमपूजनीय बाबा शाहेब अम्बेडकर जी की जयंती बहुत  धूम धाम से मनाई । लोगों ने अपने घरों पर दीपक जलाकर सम्पूर्ण lockdown में बाबा शाहेब को याद किया । आस पास के लोग ने दूरी का पालन करते हुए एक दूसरे को मुबारक भी दी । युवा प्रधान निखिल गौतम ग़रीबों में ख़ासे लोकप्रिय है । COVID 19 महामारी में निखिल गौतम खूब लोगों में खाने का सामान बाँट रहे ताकि कोई गरीब आदमी भूखा ना सोये । आज ही के दिन 14  April 1984  को  बहुजन महानायक साहेब श्री कांशीराम जी ने बहुजन समाज पार्टी का गठन किया था ।  बाबा साहब विश्व के सबसे ज्यादा विद्वानों में से एक थे और उनके अनुयायियों ने भी अपनी विद्वता साबित कर दी !! सामाजिक कार्यकर्ताओं को 14 अप्रैल को अपने घर 🏠में परिवार के साथ जयंती मनाने का अवसर नहीं मिलता था परंतु अब की बार सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपने घर 🏠में और आस पड़ोस में बाबा साहब का प्रचार प्रसार किया !! साथियों बाबा साहब के जन्मोत्सव 🎂की सफलता पर मैं आप सभी को बधाई देता हूं । 🕯🕯🕯🕯🕯🕯🕯 सर्वजन सुखाय सर्व

Dr.Ambedkar Times

बाबा साहेब डॉक्टर आंबेडकर एक क्रान्ति चौदह  अप्रैल  1891 को बाबा साहेब महू छावनी में माता भीमा बाई  व् पिताजी सूबेदार रामजी सकपाल के  घर ऊँच आदर्श परिवार में पैदा हुए । बाबा शाहेब के दादा जी भी भारतीय सेना में कार्यरत थे । बाबा शाहेब का परिवार ऊँच विचारों के साथ साथ  संवेदनशील, ग़ज़ब का राष्ट्र प्रेम लिये हमेशा ग़रीबों शोषितों को जागरुक करने में लगा रहता था । उस समय में भारतीय समाज जात पात के घोर अंधकार में डुबा हुआ था लोग एक दूसरे इंसान से घृणा करते थे और पुरी मानवता अमानवीय होकर चोरी लूट खसोट अनैतिकता में डुबी हुईं थी । जात पात का ऐसा तांडव था की लोग एक दूसरे की परछाई से भी नफ़रत करते थे । सूर्य छुपने के बाद कोई भी अपने घरों से नही निकलता था ।  शिक्षा सिर्फ़ पुरोहित  ले सकता था और क्षत्रिय  व वैश्य  को  दे सकता था । क्षत्रिय  शिक्षा ले तो सकता था मगर वो किसी को शिक्षा दे नही सकता था ऐसे ही वैश्य शिक्षा ले सकता था मगर दे नही सकता था । सूद्र को 6743 जातियों में विभाजित किया हुआ था वो न ही तो शिक्षा ले सकते थे और न ही शिक्षा दे  सकते थे !  किसान और मजदूर वर्ग नर्क की जिंदगी जी रहा था