बौद्ध दर्शन समझना आवश्यक है - आचार्य धर्मवीर सौरान


प्रिय अम्बेडकर बंधुओ
आपने जो स्क्रीनशॉट भेजा है उसको देख कर या पढ़ कर कोई भी जवाब बौद्ध दर्शन के बारे में देना मुश्किल है क्योंकि बुद्ध की मृत्यु के मात्र सौ साल बाद ही धर्म के विद्वान आपस में लड़ने लगे थे जब कि सच यह है कि बौद्ध धर्म दुखों से मुक्ति का मार्ग है और यही बुद्ध का दर्शन है मगर बुद्ध के जाने के पश्चात बुद्ध दर्शन को लोगों ने अपने-अपने ढंग से पेश किया।

 बुद्ध धर्म में ब्राह्मण घुसपैठ कर चुके थे और अब उन्होंने बुद्ध धर्म को पुनः परिभाषित किया जिससे बुद्ध धर्म की असली परिभषा छूट गई थी

बुद्ध के महापरिनिर्वान के  कुछ साल बाद ही वैशाली में थेरवादी बुद्धो ने  दितीय संगीति का आयाजन किया और पाखंड व बुद्ध धर्म के विरोध में किया जाने वाले क्रियाकलापों को रोकने के लिये संघ के कुछ कायदे कानून तय गए थे और जो इन कायदे कानूनों के विरोध में थे उन्हें संघ से निकाल दिया गया था निकले हुए लोगों ने अपना अलग  संघ बनाकर उसको महासंघ तथा दूसरों को हीन ( नीच ) संघ का नाम दिया

249 ई पूर्व सम्राट अशोक ने पाटलीपुत्र में  तीसरी संगीति का आयोजन किया और उसमें बुध धर्म की रूप रेख तय करने के लिए त्रिपिटक ग्रंथो का संपादन किया था ताकि उन्हें वेदों और उपनिषदों से बचाया जा सके ।
इस तीसरी संगीति में सम्राट अशोक व अन्य बौद्धाचार्य ने कुच्छ नियम बौद्ध भीखूओ के लिए बनाए और जिन्होंने इन नियमो को मानने से इनकार किया उन्हें देश से निकल दिया गया।
बाद में कश्मीर में तिब्बतियों की सहायता से महायान की एक तन्त्र शाखा की स्थापना ,तारा नाथ तन्त्रयानी दवारा की गई।
इसके बाद में महायानियों की एक शाखा तन्त्र यान की स्थापना लामा तारा नाथ ने स्थापित की जिसमे ज्यादातर ब्राह्मण बौद्ध भिक्षु थे और उन्होंने अपने अलग अलग सम्प्रदाय स्थापित करके मूल बुद्ध धर्म व उसके दर्शन का मतलब ही बदल दिया।
वैभाषिक सम्प्रदाय के भिक्षु प्रत्यक्ष ज्ञान को सर्वोपरि मानते थे।
सौत्रान्तिक सम्प्रदाय के भिक्षु  चेतना के बाहरी व अंदरूनी दोनो रूपो को मानते थे तथा आत्मा व पुनर्जन्म में विश्वास करते थे।
योगाचार्य भिक्षु मनोविज्ञान व कर्मकांड में विश्वास करते थे इस के जनक मैत्रयनाथ थे
माध्यमिक सम्प्रदाय शून्यवाद में विश्वास के गहन ध्यान पर जोर देते थे जबकि शून्यवाद के जनक भंते आर्य नागार्जुन थे
क्षणिकवाद का रूप भी बिगाड़ दिया गया था जब कि बुद्ध कहते थे कि दुनिया की हर वस्तु  घटना आदि पल पल परिवर्तन शील है।

कुल मिलाकर आपका सवाल बुध दर्शन की बजाय तंत्रयान से संबंधित है जो घुमा फिरा कर बुध धर्म का बेड़ा गर्क करता है।
बुद्ध का दर्शन दुख निवारण के लिए उत्तम मार्ग है जो तृष्णा के कारण होता है।
बुद्ध का दर्शन अनीश्वरवादी व अनात्मवादी है व न जीव के पुनर्जन्म को नही बल्कि तत्वों के पुनर्जन्म को मानता है।
बुद्ध मन की चेतना को  ही विज्ञान कहता है तथा  हर घटना के पीछे कारण होता हैं।
बुद्ध दर्शन दुख के निवारण का मार्ग आष्टांगिक मार्ग को मानता है। और आष्टांगिक मार्ग का पालन करने के लिए प्रज्ञा शील करुणा का होना जरुरी हैं।
बुद्ध क्षणिकवाद को मानते हैं और सब कुच्छ परिवर्तन शील बतलाते हैं।
बुद्ध प्रतीत्य समुत्पाद के नियम को मानते हैं कि दुनिया की हर घटना के लिए कारण होता है तथ एक के विनाश के बाद दूसरे की उत्पत्ति होती है।
बुद्ध के अनुसार समाधि का अर्थ समाधान होता है। आंखे बंद करके बैठना नही।
बुद्ध दर्शन में बुद्धि सर्वोपरि है  तथा अतः दीपो भव ही सबसे बड़ा संदेश है ।

आचार्य
धर्मवीर सौरान


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