बहुजन समाज पार्टी की समस्या और समाधान- बहन जी को पत्र



बहन कुमारी मायावती जी के नाम एक खुला पत्र 

'मान्यवर साहब के मिशन को बचाने के लिए अंतिम संदेश'


आदरणीय बहन मायावती जी, 


आपको हज़ारों बार सादर प्रणाम, मैं आपके संघर्ष, त्याग  और आत्मसम्मान की लड़ाई के इस दुनिया के करोडों प्रशंसकों में से एक हूँ। मुझे नहीं पता आपको कैसे संबोधित करूँ, क्योंकि मेरे दादा जी, पिता जी दोनों आपको बहिन जी ही करते हैं। खैर पत्राचार के लिहाज से आपको मायावती जी ही लिखूंगा।


1980 में जब आपने मान्यवर साहब के साथ दलितों, अति पिछड़ों के अधिकारों के लिए घर छोड़ कर संघर्ष का रास्ता अपनाया वह भारत के रुढ़िवादी और पुरुषवादी समाज के इतिहास में सबसे क्रांतिकारी घटना थी, वह भी तब जब मान्यवर साहब खुद संघर्ष कर रहे थे, उनके रहने खाने का ठिकाना खुद नहीं था ऐसे में उन मान्यवर साहब के साथ समाज में क्रांति करने के लिए निकलना तब ही नहीं बल्कि आज के समाज के लिए भी बहुत बड़ी बात होगी।


मैं अक्सर सोचता हूँ, उस समय घर छोड़ने से पहले आपके दिमाग में क्या चल रहा होगा, कैसे आपने इतना बड़ा निर्णय लिया होगा, आपको तब ये आभास भी नहीं होगा कि जिस मिशन पर आप निकल रहीं हैं उसमें मुख्यमंत्री बनेंगी या इतनी बड़ी पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष। इस सफर में संघर्ष, असफलताओं और अपमान के बीच कितना मुश्किल रहा होगा लगातार हौसला बनाए रखना...! आप अच्छी तरह जानती थीं कि आपके घर छोड़ने के निर्णय को समाज कैसे देखेगा। आप पर, आपके माता-पिता पर कैसे आरोप लगाएगा, तब भी आपके मन में समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का जीवन बदलने की, उसे शासक बनाने की कितनी तीव्र ललक रही तब जा कर आप उस समय घर छोड़ पाईं होंगीं। 1980 तो छोड़िए आज 2022 में भी कोई अपनी बेटी क्या बेटे को भी राजनीति के लिए घर छोड़ने की इज़्ज़त ना दें।

आपकी उस समय की मनःस्थिति के बारे में सोच कर आँशु आ जाते हैं। आपके ज्यादा बड़ा संघर्ष आपके माता पिता का रहा होगा, वे समाज को कितनी मुश्किलों में फेस कर पाएं होंगे, कैसी कैसी बातें, ताने तब उन्होंने सुने होंगे। मुझे लगता है कि आपके इस निर्णय की जितनी तारीफ समाज मे होनी चाहिए वो ये जातिवादी समाज नहीं करता।


मायावती जी, 1998 में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के समय आप और मान्यवर साहब भांडेर (जिला दतिया) आये थे। उस समय मेरी उम्र 4,5 वर्ष रही होगी पर वह भीड़ और पिता जी- माता जी का उत्साह मैं आज तक नहीं भूलता। उस दिन हमारे घर सुबह 8 बजे ही खाना बन गया था और खाना ले कर हम पूरे परिवार सहित सभा स्थल पर सुबह 10 बजे ही पहुँच गए थे, ताकि आपको करीब से देख सकें। जब आप और मान्यवर साहब आये तो पापा ने मुझे कंधे पर बैठा कर आपको और मान्यवर साहब को दिखाते हुए कहा था "सम्राट ये सामने हमारे असली देवता हैं....." मैं पापा के वो शब्द आज तक नहीं भूलता। 

उस चुनाव में कांग्रेस से मेरे परिवार से ही ताऊ जी खड़े थे जो सिटींग विधायक होने के साथ साथ मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री भी थे तब भी मेरे माता जी- पिता जी ने बसपा को वोट दिया था और अन्य लोगों को भी बसपा को वोट देने को प्रेरित किया था।


आज बड़े दुःखी और भारी मन से आपको ये पत्र लिख रहा हूँ। मायावती जी विगत 10 मार्च को आये परिणाम के बाद मान्यवर साहब का राजनीतिक मिशन लगभग शून्य पर है (यहाँ यह ध्यान रखना जरूरी है कि मान्यवर साहब का सामाजिक मिशन आज भी सफल है)। ये हार केवल आपकी या बसपा की नहीं है बल्कि देश के उन करोडों मान्यवर साहब के अनुयायियों की है जो आपको CM की कुर्सी पर देख कर गर्व से फूले नहीं समाते थे। ना मुझे या देश के अन्य करोडों समर्थकों को आपके cm बनने से कोई प्रत्यक्ष लाभ होता लेकिन हमारे अंदर जो आत्मसम्मान और गर्व का भाव पैदा होता वो दुनिया की किसी भी खुसी से बहुत बड़ा होता। जैसे आप शेर की तरह अकेले मंच पर बैठती हैं और आसपास मंच पर बाकी सबलोग आपके सामने हाथ जोड़े खड़े रहते हैं ये तस्वीर देश भर के समर्थकों का सीना गर्व से चौड़ा कर देती है। मायावती जी, बहुजन समाज के वे लाखों लोग जो मेहनत मजदूरी करते हैं, जिनके शाम के खाने का भी ठिकाना नहीं होता, तन ढकने को पूरे कपड़े भी नही होते वे भी आपके cm बनने से सीना फुलाए घूमते हैं। पर बसपा की इस चुनावी हार ने लाखों अम्बेडकरवादियों के आत्मसम्मान को तोड़ा है।


मायावती जी, 2022 की असफलता हम सब के लिए असहनीय रही, कई लोगों ने उस दिन खाना नहीं खाया, उस हार ने जैसे हम सब अम्बेडकरवादियों के सीने पर चोट की है। ये मिशन एकाएक यहां नहीं पहुचा, बल्कि इसके पीछे लंबी प्रक्रिया और तमाम कारण रहे हैं जिन्हें मैं बिंदुवार यहां उल्लेखित कर रहा हूँ-


1- जब तक आप बाहर सड़क पर थीं पार्टी सत्ता में थी पर जब से आप बंगले के अंदर हैं पार्टी सत्ता के बाहर है। ये बसपा की असफलता का सबसे बड़ा कारण है। 2007 कि बाद आप धीरे धीरे जनता से कटती चलीं गईं। आपकी जनता से दूरी होने के कारण आपकी राजनीति में समय के साथ अपेक्षित बदलाव नहीं हो रहा है जिससे बसपा मोदी-अमित शाह के युग में राजनीतिक रूप से अप्रासंगिक होती जा रही है। आपके पास अब जो गांव और आम कार्यकर्ता का फीडबैक आ रहा है वो गिने चुने लोगों के माध्यम से आ रहा है जो कि आपको सही स्थिति नहीं बता रहे।

आप ध्यान दीजिएगा 2012 के बाद से लगातार गिरावट और आपका बाहर ना निकलना दोनों के बीच 'कार्य कारण' का संबंध है। आपका जनता से सीधा संबंध ही खत्म है। इस बार आपने केवल 19 सभाएं की जबकि अखिलेश, योगी जी, अमितशाह जी ने कम से कम 100-100 सभाएं की। मोदी- अमित शाह जी 24 घण्टे चुनावी मोड़ में रहते हैं और आप मतदान के 8 दिन पहले एक्टिव होती हैं।


2- दूसरा सबसे बड़ा कारण बसपा के खत्म होने का है, पार्टी के कैडर चलना बंद हो गए। बसपा के समर्थकों में वो  जोश नहीं रहा जो 1996 से 2012 तक था, क्योंकि बिना कैडर के अब नए जुनूनी वोटर निकल नहीं रहे।

 जो आपके और मान्यवर साहब के कैडर लिए स्थापित वोटर हैं, वही 12% वोट के रूप में आपको इस चुनाव में दिखे। कैडर से वोटर ही नहीं हर समाज के कैडेराइस नेता भी निकलते थे जो गांव गांव जा कर पार्टी से सभी समाजों को जोड़ते थे। 

आपके और मान्यवर साहब के जिन लोगों ने कैडर लिए हैं या आपको संघर्ष करते देखा है वे आज लगभग 50 से 65 वर्ष की आयु में पहुच चुके हैं, उनके बच्चे आज युवा वोटर के रूप में हैं, इन युवा वोटरों ने आपको केवल चुनावी सभाओं में या ट्वीट करते देखा है जबकि उनके सामने मोदी, योगी, अखिलेश जी एकदम एक्टिव पॉलिटिक्स लड़ते हैं, वे उन्हें रोज tv पर सड़क पर कुछ ना कुछ करते दिखते हैं, फिर सोचिए ये युवा वोटर कैसे आपको वोट दें। एक तो ये कैडेराइस भी नहीं हैं दूसरा उन्हें आप संघर्ष करती भी नहीं दिख रहीं। हालाकिं कागजों में आपको कैडर लगते दिख रहे होंगे पर जमीन पर कुछ भी नहीं है, दूसरा पदाधिकारी ये समझ चुके हैं कि आप तो ग्राउंड पर निकलेंगी नहीं तो वे खुले मन से आपसे झूठ बोल लेते हैं, उन्हें पकड़े जाने का डर नहीं रहा।


3- मान्यवर साहब और आपने 'बहुजन' समाज पार्टी बनाई थी। बहुजन मतलब दलित, आदिवासी, पिछड़े, गरीब सवर्ण, अल्पसंख्यक और महिलाएं। लेकिन पिछले कुछ समय से मीडिया ने सडयंत्र के तरह बसपा को 'जाटवों' की पार्टी के रूप में प्रचारित किया और समय के साथ दुर्भाग्यवस पार्टी में मौर्य, पासी, राजभर, वाल्मीकि, कोरी, धोबी, पाल समाज के बड़े नेता पार्टी छोड़ कर चले गए और इनकी जगह नए नेता तैयार भी नहीं हुए क्योंकि जमीन पर नेता बनाने की मशीन अर्थात कैडर ही बंद हैं। इसलिए अधिकांश लोग बसपा को केवल जाटवों की पार्टी ही मानने लगे हैं। ये बहुत खतरनाक टैग है पार्टी के ऊपर, यही कारण हैं कि 2022 के चुनाव में बसपा का वोट प्रतिशत घटा है।


4- मायावती जी आकाश से अभी तो नहीं पर आनंद कुमार से जरूर लोगों को समस्या है। वे भारत की किसी भी पार्टी के एकमात्र उपाध्यक्ष हैं जो मंच पर तो बैठते हैं पर 50 लोगों की सभा में मिशन के बारे में 2 बातें नहीं बोल सकते। अगर वे काविल होते, मिशनरी होते तब तो उनसे किसी को समस्या नहीं होती पर उनका बिना योग्यता के मंच और पार्टी के इतने बड़े पद पर रहना आम मेहनती कार्यकर्ता को बुरा लगता है, ये गांव गांव में जा कर मेहनत करने वाले कार्यकर्ता का अपमान है।


5- इस समय बीजेपी के अलावा बसपा ही है जिसके पास स्पष्ट विचारधारा और पूरे देश में कैडर है। एक समय जम्मू कश्मीर, हिमाचल, गुजरात, बिहार, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब जैसे राज्यों में भी पार्टी की सीट आया करती थीं, लेकिन आज इन राज्यों में हम लगभग खत्म ही हो चुके हैं। यहां तक कि राजस्थान और मध्यप्रदेश में तो बसपा को सत्ता का दावेदार भी माना जाने लगा था लेकिन इन राज्यों में स्थानीय नेतृत्व उभरने ही नहीं दिया जा रहा, आप उत्तरप्रदेश से प्रदेश प्रभारी के तौर पर नेता भेजतीं हैं जो बिना इन राज्यों की जमीनी हकीकत समझें अपने मन से इन राज्यों में पार्टी चलाते हैं और स्थानीय हितों को कुचल देते हैं।

अपनी विचारधारा और कैडर के दम पर आज बसपा पूरे देश में कांग्रेस की विकल्प बन चुकी होती लेकिन आज बसपा के ही तमाम दल विकल्प बनने की सोच रहे हैं।


6- दूसरी बड़ी समस्या पार्टी के ढांचे में है। वर्तमान समय में पार्टी का संगठन एकदम गुथा हुआ है, जो जिम्मेदारी का स्पष्ट विभाजन नहीं दिखाता। मसलन अगर किसी व्यक्ति को समस्या है तो वह पहले किसके पास जाए, ज़िला अध्यक्ष, सेक्टर प्रभारी, जोन प्रभारी,मण्डल प्रभारी या किसी अन्य पदाधिकारी के पास...?

संगठन में पदसोपानिकता स्पष्ट ना होने के कारण 'सामूहिक जवाबदेही, सामूहिक अवहेलना' में बदल जाती है।


7- पार्टी के अधिकांश बड़े पदों पर बैठे व्यक्ति जननेता नहीं हो कर ऊपर से थोपे गए हैं। जब तक जमीन से संघर्ष करके बार्ड/प्रधान, विधानसभा या संसद का चुनाव लड़ा व्यक्ति बड़े पद पर नहीं होगा वो आम कार्यकर्ता की समस्या समझ ही नहीं सकता। जो व्यक्ति खुद कभी चुनाव नहीं जीता वो कैसे अन्य राज्यों या सीटों पर चुनाव लड़ने वाले को सही तरह से निर्देशित कर पाएगा। यहां मेरा सीधा संबंध आपके अभी के बनाये तमाम प्रदेश प्रभारियों और महासचिवों को ले कर है। जैसे आकाश आनंद, रामजी गौतम, मेवालाल गौतम, मित्तल साहब आदि। ये लोग किसी नौकरशाह की तरह आम कार्यकर्ताओं से संवाद करते हैं।


8- प्रभारी, कोऑर्डिनेटर किसी बड़े शहर में महंगे होटलों में पार्टी की मीटिंग लेते हैं। जबकि आपने और मान्यवर साहब ने रात दिन गली चौराहों में मीटिंग ले कर इस पार्टी को खड़ा किया है।


9- अब बसपा के पदाधिकारियों से मिलने से लोग कतराने लगे हैं। मैं मध्यप्रदेश के उदाहरण से कह सकता हूँ आज कल लोग बसपा के पदाधिकारी से बचते हैं क्योंकि उनका काम पैसे मांगने (चंदा इकट्ठा करना) के अलावा कुछ भी नहीं है, संघर्ष के समय इन मे से कोई नहीं दिखता। ये चुनाव के समय एक्टिव होते हैं और चुनाव के बाद फिर गायब हो जाते हैं, आपके पदाधिकारी बरसाती मेंढक की तरह हैं।


10- भारत में सबसे ज्यादा दुष्प्रचार बसपा के खिलाफ होता है, इस चुनाव में भी कई फेक पर्चे बसपा के नाम से जारी हुए जिसमें बीजेपी को समर्थन देने की बात कही गयी थी, आपके कई फेक वीडियो चले, मुख्यधारा की मीडिया ने एकदम बसपा का बायकॉट ही कर दिया, लेकिन इन सब के प्रतिउत्तर में पार्टी की प्रतिक्रिया बहुत निराशाजनक रही। पदाधिकारी आपको ये समझा ही नहीं आये की सोशल मीडिया के जमाने में अपवाह तो तेज़ी से हर किसी के मोबाइल पर पहुच जाती है लेकिन उसका प्रतिकार कभी नहीं पहुचता। इस दुष्प्रचार के खिलाफ पार्टी के पास कोई रणनीति नहीं थी, ये up चुनाव के हार का बड़ा कारण रहा।


हां ये तमाम समस्याएं तो हैं ही पर मायावती जी हल भी बहुत आसान हैं। जिसके लिए विशेष मेहनत और धन की आवश्यकता नहीं है। आपको केवल वही करना है जो करते हुए आपने राजनीति शुरू की थी।


1- जब तक आप खुद आगे आ कर मान्यवर साहब की तरह रथ ले कर पूरे उत्तरप्रदेश की हर विधानसभा सीट पर 2024 से पहले नहीं पहुचेंगी तब तक आप कितने ही पदाधिकारी लखनऊ या दिल्ली में बैठ कर बदल लीजिए, नेता निकाल दीजिए परिणाम बदलने वाला नहीं है। आपको खुद दोबारा से कार्यकर्ताओं के साथ पहले जैसा संपर्क बनाना होगा।


2- किसी भी घटना पर प्रतिनिधि मंडल को भेजना बंद करिए, आज राजनीति दिखावे के खेल है। देश में कहीं भी दलित,आदिवासियों, पिछड़ों के साथ कोई अप्रिय घटना हो आप खुद वहां पहुचें, उसके बाद स्थानीय प्रतिनिधि मंडल घटना के बाद कि पुलिस कार्यवाही की मॉनिटरिंग करे, आपको आगे रिपोर्ट दे।


3- हर राजनेता के विकास की एक क्रमिक प्रक्रिया होती है। आपसे अब उस तेवर की उम्मीद करना गलत है जो आपके अंदर 2007 तक हुआ करते थे। जब आपके बोलने में जोश, आक्रोश और जातिवादी उत्पीड़न के प्रति घृणा साफ दिखती थी इसीलिए बहुजन समाज के लोग आपसे जुड़े। अब आप वैसे नहीं बोल सकतीं लेकिन आपके समर्थकों को वैसा नेतृत्व चाहिए इसलिए ये आवश्यक है कि एक आपकी तरह युवा नेता हो जिसके भाषण और तेवर में उसे आपकी पहले वाली छलक मिले, जो बूढ़े हो चुके कैडर में फिर से जान डाल पाए। 


4-आकाश को सीधे इतना बड़ा राष्ट्रीय पद देना ठीक नहीं है। उसे अपनी तरह गांव गांव, शहर- शहर भेज कर जमीन पर संघर्ष कराइये अभी उसकी पहचान केवल आपके भतीजे के तौर पर है और इसी बात से उसकी इज़्ज़त है पर बिना संघर्ष के लंबे समय कार्यकर्ता उसकी इज़्ज़त नहीं करेंगे। जब तक आकाश जून जुलाई की में बुंदेलखंड के गांव गांव में गर्मी की तपन महसूस नहीं करेगा और पूर्वी उत्तरप्रदेश की शर्दी नहीं झेलेगा तब तक उसे कोई नेता के तौर पर स्वीकार नहीं करेगा। 

दूसरा आकाश गांव, शहर में जातिवाद झेलते दलितों का दर्द आपकी तरह नहीं समझता ये बात आप अच्छी तरह जानती हैं क्योंकि उसने खुद वो झेला नहीं है, दूसरा उसकी पढ़ाई भी भारत मे नहीं हुई, इसलिए उसे दलित युवाओं की समस्याओं का अंदाज़ा भी नहीं है, ये बात बहुत खतरनाक है उसके भविष्य के लिए। उदाहरण के लिए चौधरी चरणसिंह जी बहुत बड़े नेता थे, देश के प्रधानमंत्री भी रहे पर उनके पुत्र चौधरी अजीत सिंह जी अपने पिता की विरासत को आगे नहीं ले जा पाए और खुद चुनाव हारते रहे, इसका कारण है अजीतसिंह जी जो अमेरिका में पढ़े और वहीं जॉब करते थे वे भारत के किसानों की समस्याओं को अपने पिता की तरह नहीं समझते थे, यही कारण रहा उनकी असफलता का। मुझे आकाश इसी ओर जाता लग रहा है जिस तरह वह अभी राजनीति कर रहा है, उसका हाल भी श्री राहुल गांधी जी की तरह होगा। कृपया उसे फील्ड पर भेजिए

(आकाश के संदर्भ में मैंने इससे पहले एक खुला पत्र और लिखा है, उसको अलग से जरूर पढा जाए)


5- इमेज मैनेजमेंट आज राजनीति में सबसे महत्वपूर्ण तत्व बन गया है। पढ़ कर भाषण आप भी देतीं हैं और मोदी जी भी देते हैं लेकिन सबको ये पता है कि आप पढ़ कर भाषण देती हैं मोदी जी बिना पढ़े। कारण है आप सीधा कागज पढ़ती जातीं हैं और मोदी जी टेलेप्रोमटन का प्रयोग करते हैं जो कैमरे में दिखता नहीं है। 

इस चुनाव में अखिलेश यादव जी मे भी इस फैक्टर का बहुत उपयोग किया आप खुद अखिलेश जी की कोई भी रैली की फ़ोटो देखिए उसमें जो भीड़ दिखेगी असल में वह कैमरा मैनेजमेंट का कमाल थी। अखिलेश जी ने हर सभा अपने रथ के ऊपर से की वो भी किसी रोड पर अपना रथ रोक कर। इसको ऐसे समझिए अगर मैं किसी चलती रोड  या चौराहे पर अपनी कार रोक कर खड़ा हो जाऊं और मेरे आगे पीछे मेरे कुछ दोस्तों की कार हो तो इससे जो रोड पर जाम लगेगा और मैं अपनी कार पर चढ़ कर फ़ोटो लूं तो दुनिया को यही लगेगा कि इतनी बड़ी संख्या में लोग मुझे सुनने आये हैं, जबकि वो भीड़ जाम में फसें लोगों की थी। ध्यान देने वाली बात थी कि ऐसी हर सभा की फ़ोटो सपा की तरफ से ही जारी की जाती थी। इस तरह अखिलेश ने दिखाया कि इस चुनाव में सपा की हवा है। जबकि आप 1970 के दौर की राजनीति कर रहीं हैं। जहां आपका खुद का फोटोग्राफर भी नहीं होता आपकी सभाओं में, उसमें भी मीडिया बड़ी चालाकी से केवल मंच की फ़ोटो दिखाता है ना कि जनता की भीड़ की। इस क्षेत्र में आपको सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।


6- 2017 के चुनाव में आपने मुसलमान वोटरों पर फोकस किया और 2022 चुनाव में ब्राह्मण वोटरों पर, आपकी ये रणनीति एकदम सही थी। आपका अंदाज़ा सही था कि 2017 में मुस्लिम सपा से नाराज है और 2022 में ब्राह्मण उत्पीड़ित हैं, लेकिन बसपा को इन दोनों वर्गों का वोट दोनों चुनाव में नहीं मिला, यहां तक कि 2022 चुनाव में विपक्षी भी आपके जातीय टिकट वितरण की तारीफ कर रहे थे तब भी बसपा को वोट नहीं मिला। इसका मूल कारण है कि अब राजनीति बदल चुकी है अब राजनीति में लोकलुभावन नीतियों का दौर है ये दिल्ली चुनाव 2014, 2019 पंजाब चुनाव 2022 में आप आदमी पार्टी की जीत और 2014, 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत देख कर समझ सकतीं हैं। हां इन दलों ने जातीय समीकरणो पर ध्यान दिया ही साथ में बहुत कुछ फ्री देने की बात भी कही और ऐसा भी नहीं है कि बीजेपी ने अपनी मूल विचारधारा त्याग दी हो, वे उस पर भी चल रहे हैं। कहने का अर्थ है आज की राजनीति में जातीय समीकरण सही रखना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि लोकलुभावन और सक्रिय राजनीति बहुत महत्वपूर्ण है। विचारधारा से प्रशासन चलता है राजनीति में तत्कालीन परिस्थितियां महत्वपूर्ण कारक होतीं हैं। ऐसे में घोषणा पत्र जारी करना, रोड शो करना बहुत जरूरी है।


7- गांव के स्तर पर बसपा औऱ बामसेफ के कैडर लगें और उनका औचक निरीक्षण आप कभी भी करें। इन कैडरों में विशेष तौर पर जाटव के अतिरिक्त अन्य जातियों को जोड़ने पर विशेष ध्यान हो। 


8- जाटव के अतिरिक्त वाल्मीकि, कोरी, पासी, कोरी, घानुक, पाल, धोबी समाज के बहुत से नेता 2027 तक आपके पास तैयार हों, पार्टी में महासचिव, सचिव,प्रदेश प्रभारी, मंडल और जोन प्रभारी जैसे पदों पर इन जातियों के लोगो का औसत 60% से ज्यादा हो, जिससे बसपा के ऊपर लगा जाटव पार्टी का टैग हटे व बसपा फिर से 'बहुजन' की अवधारणा के करीब नजर आए।


9- पंजाब में भले रिजल्ट बहुत अच्छा ना आया हो पर जशवीर सिंह गरी साहब ने बहुत मेहनत की ऐसे लोगों को राष्ट्रीय स्तर पर पद दीजिए आगामी मध्यप्रदेश और राजस्थान में चुनाव में उनको बड़ी जिम्मेदारी मिले।

दूसरी ओर तेलंगाना के RS praveen kumar जैसे लोगों को भी राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी जिम्मेदारी मिले। वे चुनाव से ठीक 1 वर्ष पहले पूरे प्रदेश के भ्रमण पर निकल गए हैं उनकी तरह अन्य राज्यों के अध्यक्षों और प्रभारियों को भी ऐसा करने का आदेश दें। व्यापक तौर पर कहने का अर्थ है बसपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में केवल उत्तरप्रदेश के लोग ना रहें, अन्य राज्यों के काबिल लोगों को बसपा में पर्याप्त मौका मिले ।


10- अगले वर्ष राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव हैं। यहां युवाओं को कमान दे कर देखिए, जो ac रूम से बाहर निकल कर काम करें। इन दोनों राज्यों में कम से कम 20-20 विधानसभा सीट (छत्तीसगढ़ में 10) और लोकसभा चुनाव में कम से कम 3 से 5 सीट का स्पष्ट टारगेट दीजिए। मैं मध्यप्रदेश से हूँ तो बडी जिम्मेदारी से यह कर सकता हूँ कि ये बड़ा व्यवहारिक टारगेट है। बसपा का कैडर इन राज्यों में हर जिले में मौजूद है उसे बस एक्टिव नेतृत्व की आवश्यकता है।

मध्यप्रदेश का एक उदाहरण देता हूँ यहां 22% आदिवासी हैं और 16% अनुसूचित जाति के लोग जबकि प्रदेश बसपा संगठन में आदिवासियों की भागीदारी अगण्य है, ये इसलिए है क्योंकि आपके उत्तरप्रदेश से भेजे प्रभारी स्थानीय राजनीति और हित नहीं समझते उनका ध्यान केवल चंदा कलेक्शन पर होता है।


11- पार्टी के कोऑर्डिनेटर, मंडल प्रभारी, ज़िला अध्यक्षों को आदेश दीजिए साईकल से एक एक गांव पूरे उत्तरप्रदेश ही नहीं देश भर में जा कर आएं 2023 के खत्म होते होते।


12- कोऑर्डिनेटरस को आदेश दीजिए कि होटलों में रुकना बंद करें सप्ताह में एक दिन पार्टी के किसी कार्यकर्ता के घर रुकें वहीं खाना खाएं।


13- मीडिया पर प्रवक्ता भेजना सही फैलना नही है लेकिन नई जिम्मेदारी के तौर पर उनके यूट्यूब चैनल, fb पेज बनवाइये जहां वे पार्टी की विचारधारा और कार्य आसान शब्दो मे लोगों तक पहुचाएं और पार्टी के संदर्भ में  आने वाली हर फेक न्यूज़ को सही से एक्सपोज़ करें।


मायावती जी भेजने को ये पत्र में सीधा आपको भी भेज सकता था पर आप तक पहुचेगा नहीं इस बात का मुझे यकीन था। आप आम कार्यकर्ता के लिए सुलभ नहीं हैं। 

मैं खुद को इस काविल नहीं समझता कि आपको सलाह दूँ पर अब मान्यवर साहब के मिशन के हित में ये जरूरी हो गया था कि मिशन को बचाने के लिए एक समर्थक के तौर पर जो मैं कर सकता था वो किया। मैं और मुझ जैसे लाखों समर्थक ये नहीं चाहते कि आपका बहुजन राजनीति में ये अद्वितीय योगदान लोग भूल कर एक हारे हुए राजनेता के तौर पर आपको याद करें। आप हम जैसे लाखों दलितों का गौरव हो। जिस तरह शान और आत्मसम्मान के साथ शेर की तरह आपने आज तक राजनीति की है वह आगे भी चलती रहे।


 मान्यवर साहब के मिशन का अनुयायी और आपके संघर्ष का एक छोटा सा प्रशंसक

✍️ Samrat Bouddh 

samratbouddh@gmail.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बहुजन समाज पार्टी को आर्थिक सहयोग भारत हितैषी

पूना पैक्ट - ज़्यादा सीट ,कम अधिकार, बिना ताक़त के साथ

इंडिया नामक गठबंधन से मिल जाए तो सेकुलर न मिलें तो भाजपाइ- बहन कुमारी मायावती जी