धर्म निरपेक्ष राज्य में ही पिछड़े हिंदुओं का विकास संभव


भारत मे 1925 में स्थापित आरएसएस (राष्ट्रीय संवयम सेवक संघ) और विश्व हिंदू -परिषद एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है ।जिसका विश्व के बहुत देशों में कारोबार फैला है इसके तीन मुख्य उद्देश्य हैं

1)  सभी हिंदुओं को चाहे वो किसी भी सम्प्रदाय के हों संगठित करना
2) वर्तमान हिंदू समाज में प्रतिष्ठित भ्रष्टाचार तथा बुराइयों को खतम करना
3)  समाज के दलित पिछड़े आदिवासी वर्गों की सेवा करना

निहसंदेह उपरोक्त सभी उद्देश्य बहुत प्रशंसनीय हैं- बहुत ऊँचे हैं सबको इनका सम्मान व स्वागत करना चाहिये । यँहा पर सिक्ख ,ईसाई कथोलिक और प्रोटेस्टंट ,मुस्लिम शिया और सुन्नी , जैन विशेषकर तीर्थंकर महावीर के अनुयायी ,यहूदी,पारसी,बौद्ध जिनकी संख्या बहुत कम है सैंकड़ों अलग अलग पंथ,उन पंथो की शाखाएँ-उपशाखाए और उनकी हज़ारों परम्पराएँ  हैं, साथ साथ रह्ते हैं । इन सभी धर्मों का यँहा अस्तित्व है ।

 यह ठीक है कभी कभी आपस में लड़ाई झगड़े हो जाते हैं मगर शांति से रहने का उपाय निकाल ही लेते हैं । यह इसलिए सम्भव है की भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है । धर्म निरपेक्ष राष्ट्र वह है जंहा कोई भी एक विशिष्ट धर्म शासन द्वारा अनुगृहीत नही किया जाता है और किसी भी धर्म के बारे में पक्षपात नही किया जाता है । धर्म निरपेक्ष राज्य में मानव का विकास ही सर्वोपरी है और यही राज्य का अंतिम लक्ष्य होता  है  । राज्य धर्म के कारोबार से दूरी बनाकर रखेगा ऐसा संविधान सरकारों को आदेश देता है । संविधान आदेश देता है की सरकार को अपने नागरिकों की शिक्षा, चिकित्सा, मान सम्मान की रक्षा बिना भेदभाव के करनी है ।

ईसाई धर्म में आपको रोमन कथोलिक या प्रोटेस्टंट या कोई और पंथ का ही ईसाई होना पड़ेगा ।United kingdom में जंहा पूर्ण रूप से धर्म निरपेक्ष राज्य नही है राजा का ईसाई होना व प्रोटेस्टंट के साथ साथ उसको church of England का होना चाहिये अगर वो धर्म परिवर्तन कर लेते हैं तो वो राजा की कुर्सी पर नही बैठ सकता । सामान्य नागरिक के लिए धर्म की पूर्ण आज़ादी के साथ साथ धर्म ना मानने ( नास्तिक ) का क़ानूनी अधिकार है ।
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका सरकारी तौर पर धर्म निरपेक्ष राज्य है राज्य व्यक्ति के धर्म के मामलों में हस्तक्षेप नही करता
इसलिए अमेरिका आज दुनिया में एक महाशक्ति है ।

मुस्लिम धर्म में जंहा पर इस्लाम राष्टीय धर्म है वँहा धर्म परिवर्तन करने की इजाज़त नही है जैसे मलेशिया, United अरब एमिरात , पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान इस्लामिक राज्य  है इस्लाम वँहा का राज्य धर्म है ऐसी परिस्थिति प्रायः मुस्लिम देशों में पाई जाती है । इस्लाम के त्याग के लिये परम्परागत दंडविधान मृत्यु है । भारत में रहने वाला मुस्लिम आज़ाद है वह इस्लाम का त्याग करने के सवतंत्र है कोई भी दूसरा धर्म ले सकता है क्योंकि भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है । किंतु एक मुसलमान जो इस्लामी राज में रहता है ऐसा करने का पर्य्त्त्न किया तो प्राणदंड मिलेगा ।

थाइलैंड धर्म निरपेक्ष राज्य नही है बौद्ध धर्म शासकीय धर्म है और भिक्षु संघ शिक्षा विभाग द्वारा नियंत्रित किया जाता है बौद्ध धर्म शासकीय धर्म होते हुए भी सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता का वयवाहार करता है । थाइलैंड के राजा को “सभी धर्मों के सरंक्षक” की उपाधि प्राप्त है वाह केवल बौद्ध धर्म का ही नही सभी धर्म का सरंक्षक है ।

नेपाल  हमारे ही पड़ोस में है वँहा धर्म निरपेक्ष राज्य नही वरन शासकीय  हिंदू राज्य था। जातिवाद वँहा पर केवल समाज द्वारा ही स्थापित नही थी आमतौर पर क़ानून लागू थी । यदि आपने अपनी जातिप्रथा का पालन नही किया तो गिरफ़्तार करके दंडित ही नही वरन जेल भी भेज दिया जाता था । बाद में नेपाल के लोगों ने आंदोलन किया और सरकार को जनता के झुकना पड़ा और भरत का अनुसरण करके एक धर्म निरपेक्ष संविधान की रचना की । नेपालियों ने जातिवयवस्था का बहिष्कार किया ।


अब हम हिंदू धर्म पर दृष्टि डालें तो प्रारम्भिक में ही कहा है एक व्यक्ति केवल हिंदू हो ही नही सकता आपको किसी विशिष्ट जाति का होना ही पड़ता है जैसे ब्राह्मण हिंदू, राजपूत हिंदू , बनिया हिंदू , जाट हिंदू, अहीर हिंदू, गुज्जर हिंदू, चमार हिंदू, नाई हिंदू, खटिक हिंदू, भंगी हिंदू , खाती हिंदू आदि । जाति स्वभावत जन्म पर आधारित होती है जो भारतीय संविधान के अनुसार 6743  हैं हर एक जाति दूसरी जाति से ऊँच होती है सिवाय उसके जो सबसे ऊपर और वह जो सबसे नीचे है । यह असमानता किसमें निहित है कुछ उदाहरण हैं । कुछ लोग शिक्षा से वंचित रखे गये थे वे धनसम्पत्ति अपनाने से वंचित रखे गये थे । सार्वजनिक कुओं से पानी लेने से भी वंचित रखे गये थे । यँहा तक की कुछ लोग तो अछूत कर दिए गये  थे । वस्तुतः पुरा विषय अत्यंत अरुचिपूर्ण और दुखदायी होने के कारण इस पर व्यर्थ की चर्चा करना उचित नही है।

एक धर्म निरपेक्ष,जाति निरपेक्ष  राष्ट्र में , ख़ासकर प्रजातांत्रिक राज्य  में , सभी बराबर होते हैं । राजनैतिक और नागरी अधिकार सबको एक जैसे ही होते हैं । हर एक शिक्षा ग्रहण कर सकता है , सम्पत्ति रख सकता है , सार्वजनिक कुएँ से पानी ले सकता है । किसी को भी अछूत नही रखा जा सकता । अब समानता और असमानता परस्पर विरोधी हैं । अंतः जाति व्यवस्था धर्म निरपेक्ष राज्य में नही रह सकती -कभी नही । दूसरे स्ब्दों में , हिंदू धर्म को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में रहते हुए विवश होकर बदलना ही पड़ेगा ।
बौद्ध ( बुद्धि) धर्म केवल स्वतन्त्रता चाहता है जो एक धर्म निरपेक्ष राज्य दे सकता है । बुद्धी का  धर्म मनुष्य का धर्म है सवतंत्रता,समता,न्याय, बंधुत्व का मार्ग है । यह अनिवार्य है की चिंतनशील हिंदू बौद्ध धर्म की और अधिक से अधिक उन्मुख हों । विशेषकर वे जो हिंदू समाज में से भ्रष्टाचार और बुराइयों को मिटाना चाहते हैं ।

वर्तमान में एक बार फिर भारत को धार्मिक व जाति के आधार पर बाँटने की कोशिश की जा रही है और विडंबना ये है  इस बार ये कोशिश सरकार में बैठे लोगों की तरफ़ से हो रही है जो भारत के भविष्य को अंधकरमय  बना देगा ।  ऐसा अनुभव  हमारे पास है । हमारे सामने धार्मिक आधार पर बने पाकिस्तान का उधाहरण है जिसके अस्तित्व पर  ख़तरा  बना हुआ है अराजकता बढ़ रही है , पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा गईं है हाथ में कटोरा लेकर उनके नेता दुनिया में भीख माँगते देखे जा सकते हैं चीन ने अपने उपनिवेश बनाकर अघोषित क़ब्ज़ा किया हुआ है ।  इसके विपरीत भारत के लोग आज़ादी के बाद आर्थिक तौर पर मज़बूत हुए हैं । इसका एक ही कारण है की भारत ने धर्म निरपेक्ष ,जाति निरपेक्ष संविधान अंगीकार किया है । धर्म निरपेक्ष व जाति निरपेक्ष संविधान ही भारत को एक महान राष्ट्र बना सकता है  इसकी रक्षा करना हम सबकी नैतिक ज़िम्मेदारी है ।  हमने आज़ादी के बाद भारतीय पिछड़े समाज में काम के आधार पर जाति बंधन को गिरते देखा है । अब भारत में कोई भी इंसान अपनी मर्ज़ी का रोज़गार चुन सकता है  और ये संभव सिर्फ़ जाति निरपेक्ष संविधान में ही निहित है वरना फिर वही ग़रीबी अछूतपन लाचारी भुखमरी ।

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