बाबा शाहेब की पिछड़े वर्ग में स्वीकार्यता बढ़ रही है —चंद्रभूषण यादव

चन्द्रभूषण सिंह यादव सर की वाल से...

ज्यों ही पिछड़े वर्गों में बाबा साहब की स्वीकार्यता चरम पर पँहुची त्योंही यह नारा चरितार्थ हो जाएगा कि  "बाबा तेरा मिशन अधूरा,हमसब मिलकर करेंगे पूरा"....
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      बाबा साहब डॉ भीम राव अम्बेडकर ने लखनऊ में पिछड़ा वर्ग सम्मेलन में बड़ी पीड़ा के साथ 1950 के दशक में देश का कानून मंत्री रहते हुये कहा था कि "जिस दिन इस देश का पिछड़ा-दलित एकजुट हो गया उस दिन इस देश का अभिजात्य वर्ग मसलन पंडित गोविंद बल्लभ पंत (तत्कालीन यूपी के मुख्यमंत्री) जैसे लोग इनके जूते की फीतियाँ बांधने में गर्वानुभूति करेंगे।"बाबा साहब को पीड़ा थी कि अभिजात्य तो अभिजात्य,पिछड़ा वर्ग भी उनसे दूरी बनाकर रहता है जबकि वे चाहते थे कि पिछड़े उनकी मुहिम में शामिल हो और अपने हक की लड़ाई को अंजाम तक पँहुचाएँ।
      एक लंबे काल-खंड के बाद आज 14 अप्रैल 2020 को जब अल सुबह मैंने अपना फेसबुक खोला तो यह देखकर दंग रह गया,मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं और कलेजे को अजीब तरह का सकून व ठंडक मिला कि बहुत बड़े पैमाने पर पिछड़े वर्गों के लोग अम्बेडकर जयंती पर एक दूसरे को बधाइयां पोस्ट किए हुये हैं।पिछड़े वर्गों में एक खास जाति"अहीर" जो बाबा साहब के जाने-अनजाने उतनी शिद्दत से अपना नही मानती थी जितना मानना चाहिए,आज वही बाबा साहब को श्रद्धासुमन अर्पित करने में सबसे आगे दिखी।
      विगत समय में जैसे डॉक्टर लोहिया तीन तरह के गांधीवादी बताते थे,एक सरकारी गांधीवादी, दूसरे मठी गांधीवादी व तीसरे कुजात गांधी वादी जिनमें से वे खुद को कुजात गांधीवादी की श्रेणी में रखते थे वैसे ही मैं जब आज से कुछेक वर्ष पूर्व अम्बेडकर साहब पर लिखता व बोलता था तो मुझे लोग बसपाई घोषित कर डालते थे जिस नाते मैं खुद को कुजात समाजवादी कहता था लेकिन आज मुझे बड़ी खुशी हो रही है कि वे लोग जो मुझे कभी खरी-खोटी सुनाते थे,वे भी बहुत बड़ी तादात में अपने वास्तविक पुरखा को जान व पहचान लिए हैं तथा उन्हें याद कर रहे हैं।
      बाबा साहब के परिनिर्वाण के लगभग 64 साल बाद पिछड़े वर्गों में उनके प्रति जगी वैचारिक चेतना ने अब एक नए तरह के सामाजिक गठबन्धन व परिवर्तन की पटकथा लिखनी शुरू कर दी है।2017 में विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद मैंने तत्काल पोस्ट किया था कि "बहुजन का अब है निर्देश,मिले मायावती और अखिलेश",ये दोनों 2019 में मिले भी लेकिन अफसोस बहन जी ने एकतरफा घोषणा कर दिया कि गठबन्धन तोड़ रही हूं,दोनों तरफ के लोग शॉक्ड हुये,अफसोस हुवा लेकिन आज लग रहा है कि गठबन्धन बहन जी ने भले तोड़ दिया लेकिन बाबा साहब का जो सपना था कि दलित-पिछड़ा एकजुट हो वह गठबन्धन के बाद हुवा था और गठबन्धन टूटने के बाद दल व दलों के नेता भले ही अलग-अलग हुये हैं लेकिन जमीन पर जो गठबन्धन हुवा था वह और मजबूत होकर सामने आ खड़ा हुआ है।पिछड़ों और उनमें में खासकर यादवों में अम्बेडकर साहब के प्रति बहुत पूर्वाग्रह था लेकिन यादवों में जितनी तीब्रता से अम्बेडकर साहब के प्रति स्वीकार्यता व दीवानगी बढ़ी है वह आगे सामाजिक परिवर्तन व सोशल जस्टिश की लड़ाई को धधकते हुये ज्वालामुखी का रूप देने का संदेश प्रसारित कर रहा है।
      धन्यवाद साथियों!अब लग रहा है कि जो कल्पना एक समय लोहिया व अम्बेडकर साहब,मुलायम सिंह यादव जी व कांशीराम साहब तथा मायावती जी व अखिलेश यादव जी एक साथ हो कर पूर्ण करने की किये थे वह अब बिना किसी गठबन्धन के जमीनी स्तर पर आई सामाजिक चेतना के बाद मूर्त रूप लेने की दिशा में अग्रसर है।बस जरूरत अम्बेडकर साहब को पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ उनके साहित्य व 22 प्रतिज्ञाओं को जानने व मानने की है।
     जय भीम!जय भारत!!जय सँविधान!!!
-चंद्रभूषण सिंह यादव
कंट्रीब्यूटिंग एडिटर-"सोशलिस्ट फ़ैक्टर"/प्रधान संपादक-"यादव शक्ति"

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