वाल्मीकियो जागो कलम ✍️ पकड़ो

भारत में सफ़ाई करने वाले  विशेष जाति भंगी, मेहतर , वाल्मीकि के लोग होते हैं  । मगर क्यों होते हैं आज इसका शोध करना ज़रूरी है ? आदिकाल में सेना में रहकर देश को बाहरी ख़तरों से रोकते थे ,सीमाओं को सुरक्षित रखते थे ,उनको एक षड्यंत्र के तहत ग़ुलाम व घिनोना काम करने के लिए विवश किया  । भारत आज इसलिए गंदगी से भरा हुआ है क्योंकि 135  करोड़ लोगों का गंद एक जाति के लोग कैसे साफ़ कर सकते हैं ?  भारत में जातिगत भेदभाव व ऊँच नीच की भावना कुट  कुट कर भरी हुई है की सफ़ाई एक जाति का ही काम है अब एक घटिया रोज़गार का ज़रिया बना हुआ है ।

पीठ  पीछे सामान्य लोगों की मानसिकता दिखाई पड़ती है जब कोई सफ़ाईकर्मी आता है कुछ ज़्यादा नही बोलते क्योंकि उनको डर है अन्यथा वो गटर की दुर्गंध सूंघते रहेंगे । जाने के बाद अपमान करने और औक़ात दिखाने में कमी नही छोड़ते ।इस अमानवीय काम का त्याग ही समाज को गतिशील कर सकता है कुछ कारण व निवारण बाबा शाहेब के मिशन व भारत को एक महान राष्ट्र बनाने में उपयोगी होंगे । शारीरिक ताकतवर लोगों का इतना अपमान क्यों कब और कैसे हुआ और इससे उभरने के कुछ तरीक़ों पर चिंतन ही इस लेख का मुख्य उद्देश्य है ।



मूलनिवासी

शरीर और जोश को देखते हुए ये बहादुर प्रजाति के लोग गठीला बदन भारतीय साँवला रंग इनको देखते ही मूलनिवासी भारतीय की याद दिला देता है । इनकी बस्तियों में अन्य लोग ज़्यादा बकवास नही कर सकते थे क्योंकि उनको ऐसा लगता है कि ये सहन नही करेंगे । देहात में आज भी ये रोब विद्यमान है । आज कुछ मनुवादी लोग इस बुरी हालत को मुग़लों द्वारा बनाई व्यवस्था बताते हैं मगर बाबा शाहेब इसको मनुवादी शोध ग्रंथों द्वारा धार्मिक द्वेष भावना से पैदा किया हुआ एक षड्यंत बताते है ।

शिक्षाहीन एक साज़िश
मानव सभ्यता में भारत जैसा शोषण करने का तरीक़ा शायद ही दूसरा मिले ? किसी को सीधे तौर पर दोष भी नही दे सकते मगर खोज करेंगे तो समझ में आएगा एक सभ्य समाज जो नियम प्रिय था को  कुछ असभ्य जाहिल लोगों ने धोखे से कतले आम करके भय पैदा किया और फिर शिक्षा को छिन लिया । बहुत बड़ा अनर्थ तब हुआ जब ग़ुलामी ना स्वीकार करने पर, सामने ही बच्चों से अमानवीय काम करवाए गए और धीरे - धीरे ये सब काम एक परंपरा में तबदील हो गए ,उनको एक जाति का नाम देकर पक्का चट्टान की तरह ना टूटने वाला मुफ़्त में सफ़ाई कर्मी वर्ग का  निर्माण किया गया ।



गंदे  काम करवाए 
शिक्षा अगर एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ना जाए तो इंसान सोचने समझने की शक्ति खो बैठता है और उसको ग़ुलाम बनाना आसान होता है फिर भी जब ज़ालिमों के आदेश को अस्वीकार किया तो इनका बहिष्कार करके दुर बस्तियाँ  बनाई गई और जीवनयापन के लिये साफ़ सफ़ाई जैसे गंदे काम करने पर विवश किया गया ।ज़रूरत के अनुसार उपयोग किया और फिर धिक्कार दिया ।



सस्ते मजदूर 



पालतू जनावरों का गोबर मैला उठाना, जनावरों के बांधने वाली जगह की सफ़ाई करना और रात को बासी बचा हुआ भोजन माँग कर अपने किरसानो से लेकर खाना , पुराने फटे कपड़े मिल जाए तो पहनना मगर धन के रूप में कोई पगार ना देना ही इस सेवा का असली फल था और बहुत जगह तो ये दुर्दशा आज भी मौजूद है ।अब इसी तरह शहरों की सफ़ाई व्यवस्था में बारह घंटे काम करके बहुत ही कम मज़दूरी में विरोध ना करने वाला, बिना सुरक्षा उपकरण के , सस्ती जान वाला लाचार सफ़ाईकर्मी तैयार है ।



अघोषित पाबंदियाँ


ये अघोषित पाबंदियाँ लगाई गई की साफ़ सफ़ाई करना ही इनका कर्म है और इनसे इस काम के इलावा कोई और अन्य काम ना लिया जाए । अब मैला उठाना एक नियती बन गई और  हर समय गंद में रहने पर गंदगी का अहसास होना बंद हो गया । एक महान रक्षक जाति को अछूत बनाके मनुवादी जातियों ने  अपने काम मुफ़्त में कराने का एक शोध कर लिया और सदियों तक शोषण किया । भारत में मनुवादियों ने जातियों का शोध किया इससे बड़ा शोषण करने का शोध दुनिया में और किसी देश में नही मिलता । मुफ़्त में नशे की लत डाली ताकि बिना वेतन के स्थाई सफ़ाई मज़दूर मिलता रहे और उसकी संतानो ने भी उन्ही कामों को धीरे धीरे अपने पूर्व जन्म के कर्मों का फल समझकर अपना लिया और विरोध करना छोड़ दिया ।

चमार जाति से बंधुत्व 
ऐसा ही काम मरे हुए पशुओं को उठाना उसका चमड़ा निकालना ,तैयार करके जुते बनाकर मुफ़्त में मनुवादियों के पैरों की रक्षा करना चमार जाति का क़ाम निश्चित किया हुआ था ! चमार जाति को  भी अछूत घोषित किया हुआ था अन्य कामों  की मनाही थी ।इसलिए कुछ भी ख़ाने को नही होता था और चमार जाति के लोगों ने मजबूरी में मरे हुए जनावरों का मास खाया । इतना बड़ा जातिगत अन्याय मानव सभ्यता में दूसरा नही है । संक्षिप्त में चमार जाति ने बाबा शाहेब की बात को मानकर  शिक्षा पर अपनी ताक़त लगा दी आज  चमार जाति के लोग 99% लोग मरे हुए जानवर नही उठाते और अन्य कामों का तो फिर सवाल ही नही उठता । आज देश के हर क्षेत्र में आगे बढ़ कर  चाहे सरकारी नौकरी, स्वरोज़गार , उद्योग ,राजनीति आदि में अग्रणी हैं ये सब सिर्फ़ बाबा साहेब का अनुसरण करने से प्राप्त हुआ है । आज़ादी के बाद दोनो समुदायों को बराबर अपमान झेलना पड़ता था । भाइयो उठो हाथ में हाथ डालो और आगे बढ़ो ।

Dr बी॰ आर॰ अम्बेडकर दर्शन
बाबा शाहेब अम्बेडकर जी ने अछूतों के लिए अपना पुरा जीवन उत्थान के लिए समर्पित कर दिया और उसके परिणाम भी सामने आ रहें हैं । बाबा शाहेब एक दार्शनिक, अर्थशास्त्री, समाज शास्त्री, वैज्ञानिक तर्कशील व्यक्तित्व , आधुनिक भारत के राष्ट्रपिता व दुनिया के सुशिक्षित महामानव  ने आप हम सब के लिए भारतीय संविधान में हक़ अधिकार दिए हैं की भारत का नागरिक किसी भी रोज़गार को छोड़ सकता है और किसी भी रोज़गार को अपना सकता है ।शिक्षित बनो कम रोटी खाओ अपने बच्चों को अवश्य पढ़ाओ ।  सफ़ाई कामगारों में तीव्रता से बदलाव नही आया है इसका मुख्य कारण है ऊँच शिक्षा प्राप्त ना करना । परम पूजनीय बाबा शाहेब ने कहा है शिक्षा शेरनी का दुध है जो पीएगा वो दहाड़ेगा ।


आप बदलेंगे भारत बदलेगा 


किसी को  कोई भी रोज़गार अपनाने का अधिकार है अगर आपने सफ़ाईकर्मी का काम छोड़ दिया अवश्य आप आगे बढ़ेंगे ये उदाहरण आपके सामने ही  दूसरी तत्कालीन अछूत जातियों  को देखकर शिखा जा सकता है । जब सामान्य जातियों के लोग सफ़ाईकर्मी होंगे तो भारत अवश्य बदलेगा । और ये अब आप पर निर्भर है  आप कब  घिनोने काम को छोड़ेंगे ? सरकार में ठेकेदारी प्रथा है और सामान्य जातियों के लोग सफ़ाई का ठेका सरकारी रसूख़ की वजह से ले  लेते हैं और सस्ते में मज़दूर मिलने की वजह से लाखों रूपे महीना कमाते हैं । मनुवादी  ताक़तों ने अब सफ़ाई के काम को एक वयपार  बना दिया और वो भी आपके भरोसे । आज सरकार स्वच्छता अभियान के तहत कर वसूलती है मगर सफ़ाईकर्मी को इसका कोई लाभ नही मिलता  । समय पर वेतन नही, सफ़ाई के काम का परित्याग ही वाल्मीकि जाति को आगे बढ़ाएगा  । वाल्मीकि समाज में बदलाव हुआ है मगर उसकी रफ़्तार बहुत  धीमी है , उठो जागो, शिक्षित बनो ,और कलम पकड़ो ।



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