कितनी खरी सलाहाकार की सलाह-विनोद सिल्ला


                                                                                    हमारे यहाँ हर व्यक्ति सलाहकार है। भले वह उस विषय का


विशेषज्ञ भी नहीं हो, तो भी सलाह दे ही डालता है। कई बार अनुभवहीन व्यक्ति भी विषय विशेषज्ञ को सलाह देने का जोखिम उठा लेता है। कुछ सलाहकार व्यवसायिक हैं तो कुछ गैरव्यवसायिक। व्यवसायिक में प्रशिक्षित और गैर-प्रशिक्षित दोनों प्रकार के सलाहकार होते हैं। कुछ सलाहाकार तो अनाड़ी सिरे के निखटु होते हैं। इन सलाहकारों में अधिक कामयाब गैरप्रशिक्षित व्यवसायिक सलाहकार ही होते हैं। भले ही ये कम पढ़े-लिखे हों, लेकिन इन से सलाह लेने वाले, उच्च शिक्षित, उच्चाधिकारी, कानूनविद, शिक्षाविद, चिकित्सक, इंजीनियर, मंत्री-संत्री तक होते हैं। सलाह भी मांगी जाती है निहायत साधारण जैसे कि परिवार में जन्मे नवजात बच्चे का नाम क्या रखना है? परिवार में प्रस्तावित शादी किस दिन करनी है? अपने नए बनाए मकान में प्रवेश कब करना है? नया वाहन खरीदना चाहते हैं कब खरीदें? ये तमाम सलाह 1100, 2100, 3100, 5100, 11000, 21000, 51000 रुपए शुल्क चुकाकर ही मिलती हैं। साथ में गैरप्रशिक्षित सलाहकार के पैर भी छूने पड़ते हैं। भले ही सलाहकार छोटी आयु का ही क्यों न हो। गैरप्रशिक्षित सलाहकार की आमदन भी कर मुक्त होती है। कोई आयकर रिटर्न फाइल सबमिट नहीं करनी। कोई जी. एस. टी. खाता नहीं, बस मौजां ही मौजां। इनके पास जाओ तो भी शुल्क चुकाओ, ये आपके पास आएं तो भी शुल्क चुकाओ। अगर आप सामजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े नहीं तो इनको अच्छे पकवान भी खिलाओ। प्रशिक्षित व्यवसायिक सलाहकार मात्र शुल्क तक ही सीमित हैं। गैरप्रशिक्षित की आमदन के दायरे असीमित हैं।

       भले ही व्यवसायिक सलाहकार निर्धारित शुल्क लेकर ही सलाह देता हो। परन्तु व्यवसायिक के अतिरिक्त यहाँ प्रत्येक व्यक्ति निशुल्क और बिन मांगे ही सलाह देता है। जब कोई बीमार होता है, तो सभी गैरव्यवसायिक सलाहकार, सलाह देने के लिए एक्टिव मोड में हो जाते हैं। कोई सलाह देता है, ये खा लो, कोई सलाह देता है ये पी लो, ये कर लो, वो कर लो, फलां बाबा से झाड़ा लगवा लो, फलां से ताबीज बनवा लो, उससे धागा बनवा लो। कई सलाहकार तो बाद में पूछते हैं मेरी सलाह मानी या नहीं। नहीं मानी तो क्यों नहीं मानी? न मानने पर, कई सलाहकार इतने बिगड़ जाते हैं कि उनको संवारना टेड़ा काम हो जाता है।

     किसी भी संस्था व संगठन का पुनर्गठन होता है तो उसमें सलाहकार बनाया जाना उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना शादी में दुल्हा। भले ही शादी में दुल्हा महत्वपूर्ण हो, हर बात तय तो दुल्हे का बाप करता है। संस्था व संगठन के पुनर्गठन के बाद सलाहकार की उतनी ही भूमिका रहती है, जितनी गुलाबजामुन में गुलाब और जामुन की रहती है। लाल कृष्ण आडवाणी कोग साक्षी मानकर  कहता हूँ कि संगठन में सलाहकार तो होते हैं, लेकिन जिनको सलाहकार नियुक्त किया जाता है, वे चले कारतूसों अधिक कुछ नहीं होते। असल तो वे इस योग्य ही नहीं होते कि कुछ सलाह दे सकें। हिम्मत करके सलाह दे भी दें तो उनकी सलाह का वही हाल होता है। जो पुलिस के पास-आऊट के समय ली गई शपथ का होता है। मंत्रि पद शपथ का भी वही हस्र होता। मैं कई संगठनों में सचिव जैसे महत्वपूर्ण पद पर भी रहा हूँ। कुछ संगठन में सलाहकार जैसे महत्वहीन पद पर भी हूँ।

      पांच राज्यों के चुनाव परिणाम के बाद सत्ता से दूर रहे राजनीतिक दलों को अनाप-शनाप सलाह दी जा रही हैं। जो निराधार हैं। दल हैं दो तीन, सलाह देने वाले सौ करोड़ से अधिक। किसी एक राजनीतिक दल द्वारा लाखों लोगों की सलाह मानना कैसे संभव हो सकता है। फिर वो सलाहकार भी सलाह दे रहे हैं। जिनका राजनीति से नजदीक दूर का कोई सरोकार नहीं है। जो अपना घर-परिवार भी चलाने में सक्षम नहीं वो भी कह रहें हैं कि बहन जी ने ऐसा करना चाहिए।  भइया ने ऐसा करना चाहिए। अब मेरी भी तमाम सलाहकारों को सलाह है कि अपनी सलाह फोकट में न देवे। व्यवसायिक गैरप्रशिक्षित सलाहकार की तरह शुल्क लेकर सलाह दें। फिर ये डर भी नहीं रहेगा कि पता नहीं मेरी सलाह मानी या नहीं। अपनी सलाहों को जाया न करें। अंत में मैं सबको सलाह दूंगा कि कोई किसी को सलाह न दे।


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