मंदिर में दान करने से पहले अपने समाज को देख ले,शायद आपके दान की ज़रूरत आपके समाज को हो सकती हैं
दुनिया जो इतनी खूबसूरत है इसके पीछे महान लोगों की सोच है इसको सुंदर बनाने में बहुत वज्ञानिको ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया । अकर्मण्यकारी लोगों ने दुनिया दुखी है इसके कारण व निवारण खोजे बिना दुःख को धर्म से जोड़कर उसका धंधा निर्माण करके शोषण करने के मार्ग प्रशस्त किये । आज भारत धार्मिक अंधविश्वास से धन उत्पादन करने में विश्व का पहला शक्तिशाली देश है । ग़रीबी को सीधे भगवान की अवहेलना और अज्ञानता का फ़ायदा उठाकर धार्मिक अर्थव्यवस्था को मज़बूत किया गया इसमें राजनीतिक लोगों ने भरपूर इन धार्मिक वयपारियों का साथ दिया ।
धार्मिक धंधे की शुरुआत में पहले भावनाओं को पैदा करके फिर उनको भड़काने की विधि और उत्पादन की मार्केटिंग किसी अदृश्य शक्ति के होने की गारंटी देकर , ग़रीबी को कुछ ही समय में ख़त्म करने के लालच के साथ लोगों के सामने बेचने को भेजा जाता है । धन दौलत अर्जित करने के तरीक़े अपनी धार्मिक प्रयोगशाला में तैयार किये जाते है । ग़रीबी उन्मूलन के इस फ़ोर्मूले में भारत की भोली भाली जनता फँसती चली गई और भारत कुछ ही समय में विश्व में धर्म से अर्जित करने वाला महान धार्मिक आर्थिक महाशक्ति बन गया । इसी विधि का परिणाम है भारत के मंदिरों में लगभग तीस साल का भारत सरकार का जनकल्याणकारी बजट बिना आयकर काले धन के रूप में पड़ा है जिसको विदेशों में बताकर आम जन को गुमराह करने के षड्यन्त्र तैयार किए जा रहे हैं ।
जो भी इंसान मेहनत से धन कमाने लग जाता है धार्मिक धंधे बाज उसके आसपास मंडराने लग जाते हैं उसको बहला फुसलाकर धार्मिक सथलों पर दान करने की प्रेरणा देने लग जाते हैं । उसके दिमाग़ को किसी अदृश्य शक्ति के भय व लालच से नियंत्रित करके,समाज के कल्याण को अदृश्य शक्ति से करवाने का झाँसा देकर ,धन हड़पने का और भविष्य में मंदिर में दान देने का वचन लेते हुए, जन कल्याण को पीछे छोड़कर , गुमराह कर लेते हैं ।एक सामान्य आदमी नौटंकियों के चक्कर में पड़कर अपने मेहनत की कमाई किसी गरीब जरूरतमंद को ना देकर ,मंदिर मस्जिद गिरिजाघर आदि में ग़रीबों का शोषण करने के लिये अज्ञानतावश दान देते रह्ते हैं और गरीब इन धार्मिक सथलों के बाहर कटोरा लेकर भगवान के नाम पर भीख माँगने के अपमानित काम करते रह्ते हैं ।
धार्मिक आर्थिक शक्ति अब इतनी मज़बूत हो गई है ग़रीबों के नाम पर दान दक्षिणा लेकर बड़े बड़े स्थल तैयार किए गए और अब भिक्षा को ग़ैर क़ानूनी दंडात्मक बना दिया ।ग़रीबी का मुख्य कारण इंसानो द्वारा इंसानो की मदद ना करने से इसका जन्म हुआ है । अपने आसपास की दुनिया को ना देखकर मरने के बाद स्वर्ग मे अफसराओ के लालच से वशीभूत होकर ,धार्मिक स्थलों पर दान पारमिता का चलन एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है । धार्मिक स्थल पर दान करने से पहले अपने समाज को देख कोई भूखा तो नही उसके बच्चों की फ़ीस किताब का प्रबंध कर ।बाबा रामपाल, बाबा से अभिनेता बने राम रहीम सिंघ इंसा व बाबा आसाराम जनता के मानसिक व शारीरिक शोषण के साबित जुर्म में जेल में हैं । एक बात बिल्कुल समझ में नही आई जो ग़रीबों के हक़ के लिये लड़ते हैं ,लड़ते लड़ते अमीर कैसे हो जाते हैं ?
ग़रीबी मिटाने के कार्यक्रम अगर सफल होते देखना है तो मंदिरों ,धार्मिक स्थलों में दान ना देकर अपने समाज की प्रतिभाओं को निखारने में आर्थिक संघदान देना ही मानवता के लिये बेहतरीन रास्ता तैयार करेगा । सरकार को ग़रीबी उन्मूलन के लिए ग़रीबी को आधार से जोड़ देना ज़रूरी है जिनको एक बार मिल गई उनको दोबारा ना मिले । अपने होनहार बच्चों की वैज्ञानिक शिक्षा का प्रबंध करना ही ग़रीबी उन्मूलन का सफलतम बिंदु है ।
मैं कड़ी धूप में चलता हुँ इस यक़ीन के साथ , मैं जलूँगा तो मेरे घर में उजालें होंगे ।
धर्म का धंधा था ,उसमें पुरा देश अंधा था, थोड़ी सी रोशनी हुई तो पता चला ,आधा देश भूखा था और आधा देश नंगा था ।
अगर आप सहमत हैं आगे अवश्य भेजो !
धार्मिक धंधे की शुरुआत में पहले भावनाओं को पैदा करके फिर उनको भड़काने की विधि और उत्पादन की मार्केटिंग किसी अदृश्य शक्ति के होने की गारंटी देकर , ग़रीबी को कुछ ही समय में ख़त्म करने के लालच के साथ लोगों के सामने बेचने को भेजा जाता है । धन दौलत अर्जित करने के तरीक़े अपनी धार्मिक प्रयोगशाला में तैयार किये जाते है । ग़रीबी उन्मूलन के इस फ़ोर्मूले में भारत की भोली भाली जनता फँसती चली गई और भारत कुछ ही समय में विश्व में धर्म से अर्जित करने वाला महान धार्मिक आर्थिक महाशक्ति बन गया । इसी विधि का परिणाम है भारत के मंदिरों में लगभग तीस साल का भारत सरकार का जनकल्याणकारी बजट बिना आयकर काले धन के रूप में पड़ा है जिसको विदेशों में बताकर आम जन को गुमराह करने के षड्यन्त्र तैयार किए जा रहे हैं ।
जो भी इंसान मेहनत से धन कमाने लग जाता है धार्मिक धंधे बाज उसके आसपास मंडराने लग जाते हैं उसको बहला फुसलाकर धार्मिक सथलों पर दान करने की प्रेरणा देने लग जाते हैं । उसके दिमाग़ को किसी अदृश्य शक्ति के भय व लालच से नियंत्रित करके,समाज के कल्याण को अदृश्य शक्ति से करवाने का झाँसा देकर ,धन हड़पने का और भविष्य में मंदिर में दान देने का वचन लेते हुए, जन कल्याण को पीछे छोड़कर , गुमराह कर लेते हैं ।एक सामान्य आदमी नौटंकियों के चक्कर में पड़कर अपने मेहनत की कमाई किसी गरीब जरूरतमंद को ना देकर ,मंदिर मस्जिद गिरिजाघर आदि में ग़रीबों का शोषण करने के लिये अज्ञानतावश दान देते रह्ते हैं और गरीब इन धार्मिक सथलों के बाहर कटोरा लेकर भगवान के नाम पर भीख माँगने के अपमानित काम करते रह्ते हैं ।
धार्मिक आर्थिक शक्ति अब इतनी मज़बूत हो गई है ग़रीबों के नाम पर दान दक्षिणा लेकर बड़े बड़े स्थल तैयार किए गए और अब भिक्षा को ग़ैर क़ानूनी दंडात्मक बना दिया ।ग़रीबी का मुख्य कारण इंसानो द्वारा इंसानो की मदद ना करने से इसका जन्म हुआ है । अपने आसपास की दुनिया को ना देखकर मरने के बाद स्वर्ग मे अफसराओ के लालच से वशीभूत होकर ,धार्मिक स्थलों पर दान पारमिता का चलन एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा है । धार्मिक स्थल पर दान करने से पहले अपने समाज को देख कोई भूखा तो नही उसके बच्चों की फ़ीस किताब का प्रबंध कर ।बाबा रामपाल, बाबा से अभिनेता बने राम रहीम सिंघ इंसा व बाबा आसाराम जनता के मानसिक व शारीरिक शोषण के साबित जुर्म में जेल में हैं । एक बात बिल्कुल समझ में नही आई जो ग़रीबों के हक़ के लिये लड़ते हैं ,लड़ते लड़ते अमीर कैसे हो जाते हैं ?
ग़रीबी मिटाने के कार्यक्रम अगर सफल होते देखना है तो मंदिरों ,धार्मिक स्थलों में दान ना देकर अपने समाज की प्रतिभाओं को निखारने में आर्थिक संघदान देना ही मानवता के लिये बेहतरीन रास्ता तैयार करेगा । सरकार को ग़रीबी उन्मूलन के लिए ग़रीबी को आधार से जोड़ देना ज़रूरी है जिनको एक बार मिल गई उनको दोबारा ना मिले । अपने होनहार बच्चों की वैज्ञानिक शिक्षा का प्रबंध करना ही ग़रीबी उन्मूलन का सफलतम बिंदु है ।
मैं कड़ी धूप में चलता हुँ इस यक़ीन के साथ , मैं जलूँगा तो मेरे घर में उजालें होंगे ।
धर्म का धंधा था ,उसमें पुरा देश अंधा था, थोड़ी सी रोशनी हुई तो पता चला ,आधा देश भूखा था और आधा देश नंगा था ।
अगर आप सहमत हैं आगे अवश्य भेजो !
Good to see
जवाब देंहटाएंनमो बुद्धाय जय भीम जय मान्यवर साहब कांशीराम जी
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