मूलनिवासी अधिकारों से वंचित बेसहारा बेचारा- आचार्य धर्मवीर सौरान

मैं मूलनिवासी, पर बेगाना, गिरवी देश हमारा है।
सारे जहां से अच्छा, फिर भी, भारत देश हमारा है।।

अर्थात:- मैं मूलनिवासी हूँ पर अपने हि देश मे सौतेला व्यवहार झेल रहा हूँ क्योंकि कुच्छ गद्दारो ने मेरे देश को मनुवादियों के यहाँ गिरवी रख दिया हैं। में अपने देश को आज़ाद करवाना चाहता हूँ

भीख मांगने में हम आगे, शर्म हमे नही आती है।
हम ग़ुलामी के मतवाले, हमे आज़ादी नही सुहाती है।
अपनों से अच्छे गैर लगे, गैरों की फिक्र सताती हैं।
अपनो से दगा, ग़ैरों से वफ़ा, ग़ैरों की प्रीत सुहाती है।
सुअर कुत्ते सी जिंदगी, सब कुछ हमे गवारा हैं।
सारे जहां से अच्छा-----------/

अधिकारों के खातिर लड़ना, बाबा ने हमे सिखाया था।
शिक्षित हो, संघर्ष करो, संगठित रहना हमे सिखया था।
कर्म सही हो, धर्म सही हो, ये मुक्ति मरहम बताया था।
राज बिना नही काज सवरते, ऐसा भेद बताया था।
मक्कारों ने आगे जाना, कहा कि बाबा गलत इसारा है।
सारे जहां से अच्छा---------

जो भी होगा, वाज़िब होगा, ऐसा ज्ञान सिखाते हैं।
कर्म करो और फल मत मांगो, बंधुआ मजदूर बनाते हैं।
दुनिया पहुची मंगल चँदा पर, हम अर्श फर्श की गाते हैं।
पढ़े लिखे वैज्ञानिक युग मे, हम मानव बलि चढ़ाते हैं।
शर्म हमे नही आती है, क्योंकि बढ़कर ज्ञान हमारा हैं।
सारे जहां से अच्छा----------

मंदिर, गिरजा पूजाघरों में, इज्जत तार तार की जाती हैं।
घुसने का अधिकार नही, कौशिश बार बार की जाती है।
नीच कमीना कह ठोकर मारे, इज्जत शर्मसार की जाती है।
ठोकर मारो, चाहे इज्जत लूटो, कहिं ओर नही गुजारा हैं।
सारे जहां से अच्छा ------

ये लाइनें उन गद्दार मिशनरियों के लिये जो अपना कीमती वोट गलत जगह देते है और ओरो को भी  गुमराह कर रहे हैं:-

राज सजाके, ताज सजाके, रख थाली में दे देते हैं।
अपने खातिर रखे गुलामी, वाह वाही ले लेते हैं।
आज़ादी बेची सस्ते में, बदले में दारू ले लेते हैं।
सात पीढ़ियाँ, रख दी गिरवी, ग़ैरों से शिक्षा लेते हैं।
धर्मा क्यो पीड़ा हुए, क्या तुम बिन नही गुजारा है।
सारे जहां से अच्छा---------

आखिर में सस्ता और टिकाऊ इलाज-:

लानत है जो ,अब भी ना समझे, बच्चों को क्या बतलाओगे।
मौक़ा गया , फिर नही मिलना, हाथ मल पछताओगे।
इतिहास की, पोथी पन्नों में, तुम गद्दार कहलाओगे।
लग गया जे ,दाग कर्म पर, फिर कैसे समझाओगे।
सत्ता सौंपो बहना को, फिर जीवन सफल तुम्हारा हैं।
सारे जहां से अच्छा--------

  आचार्य
  धर्म वीर सौरान

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